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सन्त कबीर के तत्वज्ञान पर आधारित एक आध्यात्मिक भक्ति मार्ग विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
कबीर पंथ (कबीर का पथ) कबीर साहेब के तत्वज्ञान पर आधारित एक आध्यात्मिक सत भक्ति मार्ग है। यह मुक्ति के साधन के रूप में सच्चे सतगुरु के रूप में उनकी भक्ति पर आधारित है।[1] इसके अनुयायी कई धार्मिक पृष्ठभूमि से हैं क्योंकि कबीर ने कभी भी धर्म परिवर्तन की वकालत नहीं की बल्कि उनकी सीमाओं पर प्रकाश डाला। कबीर के संबंध में, उनके अनुयायी उनका प्रकट उत्सव मनाते हैं।[2]
पवित्र वेदों में लिखा है कि हर युग में पूर्ण परमात्मा जिसके एक रोम कूप में करोड़ सूर्य तथा करोड़ चंद्रमा की मिली जुली रोशनी से भी अधिक प्रकाश है, अपने निजधाम सतलोक से स:शरीर आते हैं और आकर अच्छी आत्माओ को मिलते हैं। आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी किन किन आत्माओं को आकर मिले और फिर उन्होंने अपनी वाणियों में कैसे परमात्मा की गवाही दी। जिन-जिन पुण्यात्माओं ने परमात्मा को प्राप्त किया है उन्होंने बताया कि कुल का मालिक एक है। परमेश्वर का वास्तविक नाम अपनी-अपनी भाषाओं में कवि र्देव (वेदों में संस्कृत भाषा में) तथा हक्का कबीर (श्री गुरु ग्रन्थ साहेब में पृष्ठ 721 पर) तथा सत् कबीर (श्री धर्मदास जी की वाणी में क्षेत्रीय भाषा में) तथा बन्दी छोड़ कबीर (सन्त गरीबदास जी के सद्ग्रन्थ में क्षेत्रीय भाषा में) कबीरा, कबीरन, खबीरा या खबीरन् (श्री कुरान शरीफ़ सूरत फुरकानी 25, आयत 19, 21, 52, 58, 59 में अरबी भाषा में) बताया गया है।
गरीब जिसकुं कहत कबीर जुलाहा।
सब गति पूर्ण अगम अगाहा ।।
कबीर साहेब जी का पंथ अर्थात् मार्ग या रास्ता । जो मार्ग कबीर साहेब ने बताया उस पर चलने वाले को कबीरपंथी कहते हैं।[3]
बारह पंथ काल के माने जाते है। बारह पंथों का विवरण अनुराग सागर व कबीर चरित्र बोध पृष्ठ नं. 1870 से:-
1.नारायण दास जी का पंथ ( मृत्यु अंधा दुत)।
2. यागौदास (जागू) पंथ
3. सूरत गोपाल पंथ (काशी कबीर चौरा के पारखी सिद्धांत)
4. मूल निरंजन पंथ
5. टकसार पंथ
6. भगवान दास (ब्रह्म) पंथ
7. सत्यनामी पंथ
8. कमाली (कमाल का) पंथ
9. राम कबीर पंथ
10. प्रेम धाम (परम धाम) की वाणी पंथ
11. जीवा पंथ
कबीर साहेब के परम शिष्य थे सेठ धनी धर्मदास जी लेकिन धर्मदास जी का ज्येष्ठ पुत्र नारायण दास काल का भेजा हुआ दूत माना गया था। उसने बार-बार समझाने से भी परमेश्वर कबीर साहेब जी से उपदेश नहीं लिया। पुत्र प्रेम में व्याकुल धर्मदास जी को परमेश्वर कबीर साहेब जी ने नारायण दास जी का वास्तविक स्वरूप दर्शाया। संत धर्मदास जी ने कहा कि हे प्रभु ! मेरा वंश तो काल का वंश होगा इससे वे अति चिंतित थे। परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा कि धर्मदास वंश की चिंता मत कर।
मानव कल्याण के लिए तेरा बयालीस पीढ़ी तक वंश चलेगा। तब धर्मदास जी ने पूछा कि हे दीन दयाल! मेरा तो इकलौता पुत्र नारायण दास ही है। तब परमेश्वर ने कहा कि आपको एक शुभ संतान पुत्र रूप में मेरे आदेश से प्राप्त होगी। उससे तेरा वंश चलेगा। उसका नाम चूड़ामणी रखना। कुछ समय पश्चात् भक्तमति आमिनी देवी को संतान रूप में पुत्र प्राप्त हुआ उसका नाम श्री चूड़ामणी जी रखा गया। बड़ा पुत्र नारायण दास अपने छोटे भाई चूड़ामणी जी से द्वेष करने लगा। जिस कारण से श्री चूड़ामणी जी बांधवगढ़ त्याग कर कुदुर्माल नामक शहर (मध्य प्रदेश) में रहने लगे।[3][4]
कबीर परमेश्वर ने संत धर्मदास जी से कहा था कि अपने पुत्र चूड़ामणी को शिक्षा - दीक्षा देना जिससे इनमें धार्मिकता बनी रहेगी तथा वंश ब्यालिस चलता रहेगा। कबीर साहेब ने धर्मदास से कहा था कि आपकी सातवीं, ग्यारहवीं, तेरहवीं और सत्रहवीं वंश को काल फंसाने का प्रयास करेगा, उस वक्त चुड़ामनि शाखा के अन्य उपशाखा वाले संत महंत के द्वारा मानव का कल्याण होगा, उसका दस हज़ार शाखा होंगे और वह सभी सत पुरुष के अंश कहलायेंगे, लेकिन काल के दुत सब अपने मनगढ़ंत बुद्धि के द्वारा लोगों को कहेंगे कि वंश ४२ का नाश हो गया वंश ४२ समाप्त हो गया, लेकिन ऐसा नहीं है वंश ४२ चलता हि रहेगा। प्रमाण कबीर साहेब की लिखी वाणी से मिलता है।
सुन धर्मनि जो वंश नशाई, जिनकी कथा कहूँ समझाई।।
काल चपेटा देवै आई, मम सिर नहीं दोष कछु भाई।।
सप्त, एकादश, त्रयोदस अंशा, अरु सत्रह ये चारों वंशा।।
इनको काल छलेगा भाई, मिथ्या वचन हमारा न जाई।।
जब-2 वंश हानि होई जाई, शाखा वंश करै गुरुवाई।।
दस हजार शाखा होई है, पुरुष अंश वो ही कहलाही है।।
वंश भेद यही है सारा, मूढ जीव पावै नहीं पारा।।99।।
भटकत फिरि हैं दोरहि दौरा, वंश बिलाय गये केही ठौरा।।
सब अपनी बुद्धि कहै भाई, अंश वंश सब गए नसाई।।
उपरोक्त वाणी से स्पष्ट है ०७वां, ११वां, १३वां और १७वां वंश के समय में चुड़ामनि साहेब के जो दस हज़ार उपशाखा होंगे उसके द्वारा जीव पार होंगे और वंश ब्यालिस भी चलता रहेगा। [4]।[5]
कबीर सागर में कबीर वाणी नामक अध्याय में पृष्ठ 135-137 पर जो बारह पंथों का विवरण देते हुए वानी लिखी है वो मिलावटी व अधुरा है :-
सम्वत् सत्रासै पचहत्तर होई, तादिन प्रेम प्रकटें जग सोई।
साखी हमारी ले जीव समझावै, असंख्य जन्म ठौर नहीं पावै।
बारवें पंथ प्रगट ह्नै बानी, शब्द हमारे की निर्णय ठानी।
अस्थिर घर का मरम न पावैं, ये बारा पंथ हमही को ध्यावैं।
बारवें पंथ हम ही चलि आवैं, सब पंथ मेटि एक ही पंथ चलावें।
उपरोक्त बारहवां पंथ जो गरीबदास जी का चलेगा यह पंथ हमारी साखी लेकर जीव को समझाएगें। परन्तु वास्तविक मंत्र से अपरिचित होने के कारण साधक असंख्य जन्म सतलोक नहीं जा सकते। उपरोक्त बारह पंथ हमको ही प्रमाण करके भक्ति करेंगे परन्तु स्थाई स्थान (सतलोक) प्राप्त नहीं कर सकते। बारहवें पंथ (गरीबदास वाले पंथ) में परमात्मा कबीर साहेब जी ने कहा है कि बारहवें पंथ में हम ही आगे चलकर आएंगे ,सब पंथों को मिटाकर एक ही पंथ चलाऊंगा। संत रामपाल जी महाराज ही तेरहवें पंथ के प्रवर्तक हैं जो सकल अँधियारा मिटा रहे हैं। तेरहवाँ पंथ ही वास्तविक मंत्रों की दीक्षा दे रहा है इसलिए संत रामपाल जी महाराज ही वास्तविक तत्वदर्शी संत हैं जिनके पास वास्तविक सार शब्द है, और संत रामपाल जी ही वास्तविक कबीरपंथि गुरु हैं ।
बारह पंथों का विवरण कबीर चरित्र बोध (बोध सागर) पृृष्ठ नं. 1870 पर भी है जिसमें बारहवां पंथ गरीबदास लिखा है।[4][3] जिसमे परमात्मा कबीर साहेब जी की वाणी प्रकट हुई, लेकिन वाणी का सही अर्थ नहीं समझ सके।जब तक कि तेरहवें वंश में परमात्मा नहीं आये थे।
कबीर साहेब ने कबीर सागर में कबीर वाणी पृष्ठ 134 पर लिखा है:-
“बारहवें वंश प्रकट होय उजियारा,
तेरहवें वंश मिटे सकल अंधियारा”
कबीर साहेब ने अपने पंथ में होने वाली मिलावट के बारे में पहले ही बताया था। इसी क्रम में 12 पंथ तक पूर्ण मोक्ष के मार्ग के उजागर नही होने की बात कही थी और बताया था कि 12वे पंथ में खुद आएंगे। कबीर साहेब ने कहा था कि 12वें पंथ में वे सत्य आध्यात्मिक ज्ञान को पुनः प्रकट करेंगे लेकिन 12 पंथ तक के अनुयायी इन वाणियों का भेद नहीं समझ सकेंगे। वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज ने वाणियों का भेद समझाकर तेरहवां पंथ चलाया है जो फैलकर सम्पूर्ण विश्व भर में जायेगा।[4]
कबीर परमात्मा ने स्वसमवेद बोध पृष्ठ 171 (1515) पर एक दोहे में इसका वर्णन किया है, जो इस प्रकार है:-
पाँच हजार अरू पाँच सौ पाँच जब कलयुग बीत जाय।
महापुरूष फरमान तब, जग तारन कूं आय।
हिन्दु तुर्क आदि सबै, जेते जीव जहान।
सत्य नाम की साख गही, पावैं पद निर्वान।
सबही नारी-नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत।
कपट चातुरी छोडी के, शरण कबीर गहंत।
एक अनेक ह्नै गए, पुनः अनेक हों एक।
हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक।[6]
द्विवेदी कबीर पंथ की स्थापना की पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि, " कि सबसे पहले संतों में नानक ने ही पंथ रचना का सूत्रपात किया था और उन्होंने उसके कुछ नियम भी बनाये थे। संभवतः नानकदेव (संवत १५९५) के अनंतर ही कबीर पंथ की स्थापना हुई होगी।...दादूपंथी राघवदास ने अपने हस्तलिखित ग्रंथ भक्तमाल (१७१७) में धर्मदास को कबीर का शिष्य कहा है। छत्तीसगढ़ी शाखा का इतिहास प्रस्तुत करते समय आगे चलकर धर्मदास के आविर्भाव की तिथि सत्रहवीं शताब्दी के प्रथम चरण के लगभग सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। संभवतः धर्मदास ने ही पंथ को व्यापक बनाने के लिए सर्वप्रथम ठोस कदम उठाया था।"[8]
भारत में कबीर पंथ की कई शाखाएं है लेकिन कबीर सागर एवं गरीब दास जी की वाणियों के अनुसार के अनुसार यथार्थ कबीर पंथ जो कि तेरहवाँ पंथ होगा, दिल्ली मण्डल के निकट स्थित होगा। वर्तमान में यथार्थ कबीर पंथ धनाना धाम जिला सोनीपत में स्थित है। हरियाणा प्रांत के बनने से पूर्व जिला सोनीपत दिल्ली मण्डल के अंतर्गत आता था जिससे कबीर साहेब एवं गरीब दास जी महाराज जी की वाणियां प्रमाणित होती है।
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