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स्तनधारियों की जाती विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
ऊँट कैमुलस जीनस के अंतर्गत आने वाला एक खुरधारी जीव है। अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैक्ट्रियन ऊंट के दो कूबड़ होते हैं। अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। इसे रेगिस्तान का जहाज भी कहते हैं। यह रेतीले तपते मैदानों में इक्कीस इक्कीस दिन तक बिना पानी पिये चल सकता है। इसका उपयोग सवारी और सामान ढोने के काम आता है। यह 7 दिन बिना पानी पिए रह सकता है |
ऊँट | |
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एक कुबड़ ऊँट | |
दो कुबड़ ऊँट | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | जंतु |
संघ: | कौरडेटा (Chordata) |
वर्ग: | स्तनधारी (Mammalia) |
गण: | आर्टियोडैकटिला (Artiodactyla) |
कुल: | कैमलिडाए (Camelidae) |
वंश समूह: | कैमलिनाए (Camelini) |
वंश: | कैमेलस (Camelus) लीनियस, १७५८ |
चित्र:Afro-asiatic camelid Range.png | |
एक और दो कुब्बे वाले ऊँटों का विस्तार
कॅमलस बॅक्ट्रिऍनस |
ऊँट शब्द का प्रयोग मोटे तौर पर ऊँट परिवार के छह ऊँट जैसे प्राणियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, इनमे दो वास्तविक ऊँट और चार दक्षिण अमेरिकी ऊँट जैसे जीव है जो हैं लामा, अल्पाका, गुआनाको और विकुना।
एक ऊँट की औसत जीवन प्रत्याशा चालीस से पचास वर्ष होती है। एक पूरी तरह से विकसित खड़े वयस्क ऊंट की ऊँचाई कंधे तक 1.85 मी और कूबड़ तक 2.15 मी होती है। कूबड़ शरीर से लगभग तीस इंच ऊपर तक बढ़ता है। ऊँट की अधिकतम भागने की गति 65 किमी/घंटा के आसपास होती है तथा लम्बी दूरी की यात्रा के दौरान यह अपनी गति 40 किमी/घंटा तक बनाए रख सकता है। ऊट का गर्भकाल लगभग 400 दिनों का होता है
जीवाश्म साक्ष्यों से पता चलता है कि आधुनिक ऊँट के पूर्वजों का विकास उत्तरी अमेरिका में हुआ था जो बाद में एशिया में फैल गये। लगभग 2000 ई.पू. में पहले पहल मनुष्य ने ऊँटों को पालतू बनाया था। अरबी ऊँट और बैकट्रियन ऊँट दोनों का उपयोग अभी भी दूध, मांस और बोझा ढोने के लिये किया जाता है।
ऊंट राजस्थान के रेगिस्तान का एक महत्वपूर्ण पशु है। इसका उपयोग कई कार्यों में होता है। इसे सवारी करने, भार ढोने, हल जोतने, रहट चलाने, ईख पेरने तथा गाड़ियों में जोतने के काम में लाया जाता है। सवारी करने हल जोतने रहट चलाने व गाड़ी में भार ढोने के लिए रेगिस्तानी क्षेत्रों में इसे सबसे ज्यादा उपयुक्त माना गया है। पहाड़ी क्षेत्रों में भी इसे भार ढोने के लिए काम में लेते हैं। एक ऊंट एक बैल जोड़ी के बराबर काम कर सकता है। ऊंट के बालों से कंबल बनाए जाते हैं। ऊंट में बहुत विशेषताएं हैं। वह शुष्क क्षेत्रों में सुगमता से रखा जा सकता है। बारी बोझ ढो सकता है और कई दिन तक बिना पानी के भी रह सकता है। इन विशेषताओं के कारण सूखे क्षेत्रों में भारवाही पशु के रूप में बहुत उपयोगी है। सन 2012 में पशु गणना के अनुसार राजस्थान में ऊंटों की संख्या 0.32 मिलियन है। ऊंट दो प्रकार के होते हैं भारत में पाई जाने वाली ऊंटों की मुख्य प्रजातियां बीकानेरी, जैसलमेरी, मेवाड़ी, कच्ची और सांचौरी है। नर ऊंट का भार लगभग 500 से 700 किग्रा और मादा ऊंट का औसत भार लगभग 400-600 किग्रा. होता है। जन्म के समय बच्चे का बार 35 से 40 किग्रा होता है। कार्य के आधार पर भारतीय ऊंटों को दो भागों में बांटा जा सकता है सामान ढोने वाले और सवारी करने वाले सामान ढोने वाला ऊंट हट्टा-कट्टा और सवारी वाले का शरीर हल्का होता है राजस्थान में ऊंट की तीन मुख्य नस्लें पाई जाती है बीकानेर, जैसलमेर, मेवाड़ी ।
इस नस्ल के ऊंट का मूल स्थान राजस्थान का बीकानेर क्षेत्र है और इस नस्ल के ऊंट बीकानेर से दूसरी जगह ले जाए जाते हैं। बीकानेर के जोहड़बीड़ में राष्ट्रीय ऊष्ट्र अनुसंधान केंद्र अनुसंधान केंद्र है। यह नस्ल सिंधी एवं बलूची ऊंटों के संकरण से से तैयार हुई है।
इस नस्ल के ऊंट का रंग ज्यादातर गहरा भूरा यानी काले से रंग का होता है। ऊंट की ऊंचाई जमीन से थुई तक 10 से 12 फीट तक होती है। शरीर गठीला एवं मजबूत होता है। आंखें गोल व बड़ी होती हैं। खोपड़ी गोलाकार एवं उठी हुई होती है। जहां खोपड़ी आगे की और खत्म होती है वहां एक गड्ढा होता है जिसे 'स्टॉप' कहते हैं जो इस नस्ल की खास पहचान है। ऊंट की आंखों, कानों एवं गले पर लंबे लंबे काले बाल पाए जाते हैं। सिर मंझले दर्जे का एवं भारी होता है। आंखें चमकदार एवं बाहर निकली हुई होती है। आंखों के ऊपर की तरफ गड्ढा सा होता है जहां से नाक की हड्डी ऊपर उठी हुई दिखाई देती है इससे यह नस्ल सुंदर लगती है। वर्तमान में जो नस्ल बीकानेरी ऊंट की है वह विश्व के सबसे सुंदर ऊंटों में से है। आंखों की भौहों पर व पलकों पर घने काले बाल होते हैं। कान छोटे-छोटे और ऊपर से गोलाई लिए हुए होते हैं। गर्दन मंझलें आकार की नीचे से गोलाई लिए हुए होती है। थुई बड़ी एवं पीठ के बीच में होती है। छाती की गद्दी अच्छी सुदृढ़ होती है जो इसको बैठने में सहायक होती है। अगले पैर लंबे सीधे और मजबूत हड्डियों वाले होते हैं पिछले पैर अगले पैरों की अपेक्षा कमजोर है अंदर की ओर मुड़े हुए होते हैं । पूछ के दोनों तरफ नीचे की ओर लंबे काले बाल होते हैं। अंडकोष गोल एवं बड़े होते हैं एवं पीछे से देखने पर दिखाई देते हैं। मादा ऊंटों में थन बड़े-बड़े एवं चूचक के दो-दो छेद होते हैं। दूध की वाहिनी बड़ी व उन्नत होती है।
इस नस्ल के ऊंट सभी कामों के लिए उपयुक्त है। ज्यादातर इसे बोझा ढोने एवं कृषि कार्य में काम में लिए जाते हैं।
इस नस्ल के ऊंट सभी कामों के लिए उपयुक्त हैं। ज्यादातर इसे भार ढोने एवं कृषि कार्य में काम में लिया जाता है।
जैसलमेरी नस्ल के ऊंट का रंग हल्के भूरे रंग का होता है एवं ऊंचाई 7 से 9 फीट तक होती है। इस नस्ल के ऊंट का शरीर छोटा एवं पतला होता है। आंखें चमकदार एवं सिर के अनुपात से बड़ी होती है। इस नस्ल के ऊंटों का कपाल उठा हुआ नहीं होता एवं स्टॉप भी नहीं होता जो कि बीकानेरी नस्ल में होता है। कान छोटे पास पास होते हैं। पैर पतले बढ़िया छोटी छोटी होती है। पैरों के तलवे भी छोटे व हल्के होते हैं जो तेज चलने में सहायक होते हैं।
जैसलमेरी नेशनल फ्रूट सवारी के लिए उपयुक्त है एक प्रशिक्षित और एक रात में 100 से 140 किमी तक यात्रा कर सकता है। रेगिस्तान में सेना व पुलिस के जवान भी गश्त के लिए इस नस्ल के ऊंटो को काम में लेते हैं।
उदयपुर के आसपास के क्षेत्र को मेवाड़ कहा जाता है जोकि अरावली की पहाड़ियों में बसा हुआ है। पुराने जमाने में सामान लाने ले जाने एवं यात्रा हेतु जहां पंजाब से लाए गए थे उन्होंने अपने आप को इस क्षेत्र के अनुकूल ढाल लिया एवं धीरे-धीरे एक नस्ल का रूप ले लिया जिससे क्षेत्र के लोग इन ऊंटों को मेवाड़ी कहने लगे। यह नस्ल राजस्थान के पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर गुजरात तक फैली हुई है।
इस नस्ल के ऊंट की लंबाई मध्यम आकार की होती है। इनका हल्का भूरा रंग होता है। आंखें छोटी-छोटी होती है। पर छोटे हैं तब वे कठोर होते हैं। हड्डियां मोटी है मजबूत होती है। मुंह के नीचे का होंठ गिरा हुआ होता है। जो इस नस्ल की खास पहचान है। सिर बड़ा एवं भारी होता है। गर्दन भी छोटी मोटी होती है। शरीर पर बाल घने, सख्त एवं मोटे होते हैं। इस ऊंट की औसत गति 3 से 5 मील प्रति घंटा होती है।
इस नस्ल के ऊंटों को कृषि कार्य एवं भार को ढोने के लिए काम में लिया जाता है। इस नस्ल की मादा लगभग 4 से 6 लीटर दूध प्रतिदिन देती है।
स्वभाव में एक धैर्यवान सहनशील प्राणी माना जाता है। अपने पालतू पशुओं की अपेक्षा से साधना यहां से खाना कठिन है। प्रजनन काल में उत्तेजित उत्पत्ति का होता है। ऊंट झुण्ड रहना पसंद करता है। इसमें अपना मार्ग याद रखने की अद्भुत क्षमता होती है। कई वर्षों के अंतराल के बाद भी और सरलता से अपने स्थान पर पहुंच जाता है अन्य पालतू पशुओं की भांति यह अपने पालक के साथ घनिष्ठ नहीं हो पाता है। सदियों से मरुस्थल प्रदेश में कठिन परिस्थितियों में रहते रहते इसकी शारीरिक बनावट भी उसी के अनुकूल हो गई है जिसका विवरण निम्न प्रकार है_
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