उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ
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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिये कार्यरत प्रमुख संस्था है। हिन्दी भाषा और साहित्य के सर्वतोन्मुखी उन्नयन एवं संवर्द्धन तथा प्रचार-प्रसार हेतु 30 दिसम्बर, 1976 को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की स्थापना हुई, जिसमें तत्कालीन हिन्दी समिति, उत्तर प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी एवं शासन की कतिपय अन्य योजनाओं का एकीकरण किया गया। यह उत्तर प्रदेश सरकार के भाषा विभाग के अधीन है। अन्य कार्यक्रमों के अलावा हिन्दी के प्रचार प्रसार हेतु विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिये साहित्यकारों को यह कई पुरस्कार भी प्रदान करती है। प्रदेश के मुख्यमन्त्री इसके पदेन अध्यक्ष होते हैं। वही कार्यकारी अध्यक्ष व निदेशक की नियुक्ति करते हैं।
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान को संकल्प पुरुष, मनीषी, चिन्तक राजभाषा हिन्दी और भारतीय संस्कृति के प्रबल समर्थक राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन के नाम का गौरव प्राप्त है। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान स्वायत्तशासी संस्था है, विभिन्न योजनाओं के लिए शासन के भाषा-विभाग से प्रतिवर्ष प्राप्त अनुदान से योजनाओं को क्रियान्वित किया जाता है।
राजभाषा हिन्दी उत्तर प्रदेश की प्रमुख भाषा तो है ही साथ ही सभी भारतीय भाषाओं से सम्पर्क सूत्र के रूप में भी इसकी अपनी विशेष भूमिका है। यही कारण है कि हिन्दी भाषा के माध्यम से ही भारत की गरिमामयी संस्कृति और राष्ट्रीय अस्मिता भारत के बाहर भी प्रसारित एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अभिव्यक्त है। हिन्दी की अनेक बहुमुखी प्रतिभाओं का आविर्भाव एवं कार्यस्थल उत्तर प्रदेश रहा है। इसलिए हिन्दी के साहित्य विकास, शब्द सामर्थ्य तथा अभिव्यक्ति की क्षमता भी बनाये रखने का गौरव एवं गुरुतर दायित्व उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का ही है।
देवभाषा संस्कृत की विरासत को लेकर विकसित हिन्दी पुण्य सलिल गंगा की भाँति भारतीय संस्कृति की सतत् संवाहिका रही है। उसके इसी महत्त्व को रेखांकित करने के लिए माँ भागीरथी को संस्थान के प्रतीक चिह्न के रूप में प्रतिष्ठापित किया गया है। महाकवि तुलसी ने भली वाणी को 'सुरसरि' के समान सबका हित करने वाली माना है। हिन्दी द्वारा वाणी के उसी शिवभाव का प्रसार करने की कामना से संस्थान का आर्ष वाक्य चुना गया -
- कीरति भनिति भूति भलि सोई।
- सुरसरि सम सब कहँ हित होई॥