आवश्यक वसीय अम्ल
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आवश्यक वसीय अम्ल (अंग्रेज़ी:असेन्शियल फैटी एसिड, ई.एफ.ए) जिसे प्रायः विटामिन-एफ भी कह देते हैं, वसीय अम्ल (फैटी एसिड) से बना होता है। इसीलिए इसका नाम विटामिन-एफ पड़ा है। ये दो प्रकार के होते हैं - ओमेगा-३ तथा ओमेगा-६। इस विटामिन का मुख्य कार्य शरीर के ऊतकों का निर्माण और उनकी मरम्मत करना होता है। फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफ.डी.ए.) विटामिन-एफ को अपने दिन के पूरे कैलोरी भुक्तक्रिया (इन्टेक) में से एक से दो प्रतिशत ग्रहण करने का सझाव देता है। इसके अलावा, शरीर के चयापचय, बालों तथा त्वचा के लिए भी विटामिन-एफ काफी लाभदायक होते हैं।[1] शरीर में जब भी कहीं चोट लगती है तो उससे त्वचा के ऊतकों को काफी हाणि पहुंचती है। विटामिन-एफ इन ऊतकों की मरम्मत कर उन्हें ठीक करते हैं।

केवल दो प्रकार के आवश्यक वसीय अम्ल होते हैं: अल्फा-लिनोलेनिक अम्ल जो एक ओमेगा-३ वसीय अम्ल एवं लिनोलेनिक अम्ल जो एक ओमेगा-६ वसीय अम्ल है।[2][3][4] कुछ शोधकर्ता गामा लिनोलेनिक अम्ल (ओमेगा-६), लॉरिक अम्ल (संतृप्त वसीय अम्ल), एवं पामिटोलेइक अम्ल (एकलसंतृप्त वसीय अम्ल) को कुछ स्थितियों सहित आवश्यक मानते हैं।[5]
खोज व स्रोत
इन्हें मूलतः विटामिन एफ़ कहा गया था, जब १९२३ में इनकी अत्यावश्यक पोषक तत्त्वों के रूप में खोज हुई थी। १९३० में बर्र, बर्र एवं मिलर के मूषकों पर हुए शोधों द्वारा ज्ञात हुआ कि इन्हें वसा के संग बेहतर वर्गीकृत किया जा सकता है, बजाय विटामिन के संग।[6]
विटामिन-एफ की कमी के कारण लोग जल्दी थक जाते हैं। इसके अलावा कमजोर बाल, रूखी त्वचा एवं सूखी आंखें, विटामिन-एफ की खानपान में कमी का सीधा संकेत होते हैं। इसकी कमी से त्वचा रोग जैसे एग्जीमा का खतरा भी बढ़ जाता है। यह विटामिन पेट में जीवाणु भी बनाता है, जिससे पाचन शक्ति में वृद्धि होती है। शरीर में विटामिन-एफ की पूर्ति हेतु इसके मुख्य स्रोतों में मछली एवं मूंगफली आते हैं, विशेषकर मैकरेल, टूना मछली विटामिन-एफ के बड़े स्रोत हैं।[1] शाकाहारी लोगों के लिए विटामिन-एफ प्राप्त करने का सबसे पहला लक्ष्य है कि वह अपने खाद्य तेल में बदलाव लाएं। सूरजमुखी, राई, अखरोट आदि के तेल का खाना पकाने में उपयोग करें। इन तेलों के विटामिन-एफ के अलावा कई अन्य पोषक तत्त्व भी होते हैं।
नामकरण व शब्दावली
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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