अवव्याख्यावाद
From Wikipedia, the free encyclopedia
दर्शनशास्त्र में अवव्याख्यावाद (reductionism) ऐसी विचारधारा होती है जो यह दावा करे कि किसी भी जटिल परिघटना को समझने के लिये केवल उस से सम्बधित सबसे सरल भौतिक भागों के गुणों व व्यवहारों की समझने की ही आवश्यकता है। मसलन अवव्याख्यावादी मनोवैज्ञानिक यह कहते हैं कि समाजशास्त्र का अध्ययन काफ़ी हद तक व्यर्थ है और केवल मानवों के मस्तिष्क व मनोवैज्ञानिक गुणों के अध्ययन ही सभी समाजिक विषयों को समझने के लिए पर्याप्त है क्योंकि समाज मनुष्यों से बना हुआ होता है। अवव्याख्यावाद के विरोधी यह कहते हैं कि समाज को केवल व्यक्तियों के मनोविज्ञान से नहीं समझा जा सकता और उसके साथ-साथ सामाजिक तंत्रों का भी अध्ययन करना आवश्यक है।[1][2][3][4]