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अतिस्फीति
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अर्थशास्त्र में अतिस्फीति या हाइपरइनफ्लेशन (hyperinflation) बहुत अधिक और तेज़ी से बढ़ती मुद्रास्फीति (महंगाई) की स्थिति को कहते है। यह मुद्रा के वास्तविक मूल्य को तेज़ गति से गिराती है, क्योंकि अधिकांश माल और सेवाओं की कीमतों में बेताहाशा वृद्धि होने लगती है। अतिस्फीति की हालात में लोगों को भयंकर आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है और अपने बचाव के लिए वह आमतौर पर देश की मुद्रा को छोड़कर किसी अधिक स्थिर विदेशी मुद्रा को अपनाने के लिए विवश हो जाते है।[1]
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आमतौर पर किसी देश में अतिस्फीति की दशा उस देश की सरकार द्वारा मुद्रा आपूर्ति में तेज़ी से वृद्धि करने से होती है, यानि अगर देश की सरकार जनता पर कर में कम पैसा कमाए और खर्चा बहुत रखे तो इस कमी को पूरा करने के लिए वह मुद्रा छापती है और इस से जनता पर महंगाई बढ़ने लगती है। यह सरकार के मंत्रियों में आर्थिक अज्ञान से होता है, जिसमें सरकार को लगता है कि लोक-कल्याण के लिए वह अपनी आय और देश की अर्थव्यवस्था के आकार से कहीं अधिक पैसा छापकर खर्चा कर सकती है। कभी-कभी सरकार अपनी आर्थिक अयोग्यता के कारण इतना ऋण ले लेती है कि उसका ब्याज चुकाने के लिए भी उसे मुद्रा छापने पर मजबूर होना पड़ता है।[2]