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अजमेर शरीफ़ या दरगाह अजमेर शरीफ़ भारत के राजस्थान राज्य के अजमेर नगर में स्थित प्रसिद्ध सूफ़ी मोइनुद्दीन चिश्ती ख्वाजा गरीब नवाज(११४१ - १२३६ ई॰) की दरगाह है, जिसमें उनका मकबरा स्थित है।[1][2]
अजमेर दरगाह का निर्माण इल्तूतमिश ने प्रारम्भ करवाया तथा हुमायूं के काल में निर्माण पुरा हुआ | अजमेर शरीफ़ का मुख्य द्वार निज़ाम गेट कहलाता है क्योंकि इसका निर्माण १९११ में हैदराबाद स्टेट के उस समय के निज़ाम, मीर उस्मान अली ख़ाँ ने करवाया था।[3] उसके बाद मुग़ल सम्राट शाह जहाँ द्वारा खड़ा किया गया शाहजहानी दरवाज़ा आता है। अंत में सुल्तान महमूद ख़िल्जी द्वारा बनवाया गया बुलन्द दरवाज़ा आता है, जिसपर हर वर्ष ख़्वाजा चिश्ती के उर्स के अवसर पर झंडा चढ़ाकर समारोह आरम्भ किया जाता है।[4] ध्यान रहे कि यह दरवाज़ा फ़तेहपुर सीकरी के क़िले के बुलन्द दरवाज़े से बिलकुल भिन्न है। सन् २०१५ में ख़्वाजा चिश्ती का ८००वाँ उर्स मनाया गया था। अकबर अजमेर14 बार आया था और 18 गांव दिए। यहाॅ प्रतवर्ष उर्स का उद्घाटन भिलवाडा का गौरी परिवार करता है | [उद्धरण चाहिए]
ख्वाजा हुसैन चिश्ती अजमेरी اُردُو :- خواجه حسین English :- Khwaja Husain Ajmeri आपको शैख़ हुसैन अजमेरी और मौलाना हुसैन अजमेरी, ख्वाजा हुसैन चिश्ती के नाम से भी जाना जाता है, ख्वाजा हुसैन अजमेरी ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के वंशज ( पोते ) है आपके पिता का नाम ख़्वाजा मोईनुद्दीन सालिस था तथा आप तीन भाई थे ख़्वाजा हुसैन अजमेरी, ख़्वाजा हसन और ख़्वाजा अबुल ख़ैर, ख्वाजा अबुल ख़ैर के वंशज अजमेर सहित देश विदेश में मौजूद हैं, बादशाह अकबर के अजमेर आने से पहले से ख़्वाजा हुसैन अजमेरी अजमेर दरगाह के सज्जादानशीन व मुतवल्ली प्राचीन पारिवारिक रस्मों के अनुसार चले आ रहे थे, दरगाह ख़्वाजा साहब अजमेर में प्रतिदिन जो रौशनी की दुआ पढ़ी जाती है वह दुआ ख़्वाजा हुसैन अजमेरी द्वारा लिखी गई थी। आपका विशाल 1029 हिजरी में हुआ। यही तारीख़ मालूम हो सकी। गुम्बद की तामीर बादशाह शाहजहाँ के दौर में 1047 में हुई।
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