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सर्वहारा (प्रोलितारियत / प्रोलिटेरियट / Proletariat) समाजशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र में समाज की नीचे वाली श्रेणियों को कहा जाता है, जो अक्सर शारीरिक श्रम से जीवनी चलाते हैं। औद्योगिक समाजों में अक्सर कारख़ानों में काम करने वाले मज़दूरों को 'प्रोलिटेरियट' कहा जाता था लेकिन कभी-कभी कृषकों और अन्य ग़रीब मेहनत करने वाले लोगों को भी इसमें शामिल किया जाता है।
'प्रोलितारियत' मूल रूप से लातिनी भाषा का शब्द है और इसका प्रयोग प्राचीन रोमन में शुरू हुआ था। पारम्परिक रूप से यह शब्द उनके लिए प्रयोग होता था जिनके पास अपने बच्चों को छोड़कर और कोई पूँजी न हो। लातिनी भाषा में 'प्रोलेस' (proles) का मतलब 'संतान' होता है।[1]
साम्यवादी (मार्क्सवादी) विचारधारा में समाज में दो मुख्य वर्ग होते है - बूर्ज़वाज़ी (bourgeoisie, पूंजीपति) और प्रोलितारियत, मज़दूर वर्ग)। मार्क्सवादी दृष्टिकोण में बूर्ज़वाज़ी वर्ग के लोग हमेशा धन बटोरने व अपनी संपत्ति सुरक्षित करने में लगे रहते हैं और उनका मुख्य ध्येय समाज में अपने ऊँचे स्थान और आर्थिक नियंत्रण को बनाए रखना होता है। बूर्ज़वाज़ी कारख़ानों और आर्थिक कार्य के अन्य साधनों पर क़ब्ज़ा जमाए होते हैं। प्रोलितारियत को जीवनी चलाने के लिए मजबूरन इनके कारख़ानों में काम करना होता है क्योंकि आमदनी करने का कोई अन्य ज़रिया नहीं होता। इस तरह से बूर्ज़वाज़ी प्रोलितारियत के श्रम से लाभ उठाते हैं और प्रोलितारियत को कठिनाई और ग़रीबी में जीवन बसर करना पड़ता है। अन्य विचारधाराओं में इस मार्क्सवादी दृष्टिकोण में खोट निकाले गए हैं।[2][3]
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