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कोई भी व्यक्ति और उसकी विशेष क्षमताओं और कौशल जो संगठन के लिए सबसे बड़ा और सबसे लंबा स्थाई लाभ बना विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
मानव संसाधन (human resources) वह अवधारणा है जो जनसंख्या को अर्थव्यवस्था पर दायित्व से अधिक परिसंपत्ति के रूप में देखती है। शिक्षा प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश के परिणाम स्वरूप जनसंख्या मानव संसाधन के रूप में बदल जाती है। मानव संसाधन उत्पादन में प्रयुक्त हो सकने वाली पूँजी है। यह मानव पूँजी कौशल और उन्में निहित उत्पादन के ज्ञान का भंडार है। यह प्रतिभाशाली और काम पर लगे हुए लोगों और संगठनात्मक सफलता के बीच की कड़ी को पहचानने का सूत्र है। यह उद्योग/संगठनात्मक मनोविज्ञान और सिद्धांत प्रणाली संबंधित अवधारणाओं से संबद्ध है। मानव संसाधन की संदर्भ के आधार पर दो व्याख्याएं मिलती हैं।
इसका मूल अर्थ राजनीतिक अर्थव्यवस्था और अर्थशास्त्र से लिया गया है, जहां पर इसे पारंपरिक रूप से उत्पादन के चार कारकों में से एक श्रमिक कहा जाता था, यद्धपि यह दृष्टिकोण राष्ट्रीय स्तर पर नए और योजनाबद्ध तरीकों में अनुसन्धान के चलते बदल रहा है।[1] पहला तरीका अधिकतर 'मानव संसाधन विकास' शब्द के रूप में प्रयुक्त होता है और यह सिर्फ संगठनों से शुरू हो कर राष्ट्रीय स्तर तक हो सकता है। पारम्परिक रूप से यह कारपोरेशन व व्यापार के क्षेत्र में व्यक्ति विशेष (जो उस फर्म या एजेन्सी में कार्य करता है) के लिए, तथा कंपनी के उस हिस्से को जो नियुक्ति करने, निकालने, प्रशिक्षण देने तथा दूसरे व्यक्तिगत मुद्दों से सम्बंधित है व जिसे साधारणतयाः "मानव संसाधन प्रबंधन" के नाम से जाना जाता है।, के लिए होता प्रयुक्त होता है। यह लेख दोनों परिभाषाओं से सम्बंधित है।
मानव संसाधनों के विकास का उद्देश्य मानव संसाधन संपन्नता को प्रबुद्ध और एकजुट नीतियों के माध्यम से शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य और रोजगार के सभी स्तरों को कॉर्पोरेट से ले कर राष्ट्रीय स्तर तक बढ़ावा देना है।
मानव संसाधन प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य कंपनी के कर्मचारियों पर हुए निवेश से अधिकाधिक लाभ सुनिश्चित करना तथा वित्तीय जोखिम को कम करना है। एक कंपनी के संदर्भ में मानव संसाधन प्रबंधकों की यह जिम्मेदारी है कि वे इन गतिविधियों का संचालन एक प्रभावशाली, वैधानिक, न्यायिक तथा तर्कपूर्ण ढंग से करें।
मानव संसाधन प्रबंधन निम्न महत्वपूर्ण कार्य करता है:
आधुनिक विश्लेषण इस बात पर जोर देता है कि मनुष्य "वस्तु अथवा "संसाधन" नहीं हैं, बल्कि एक उत्पादन संस्था में रचनात्मक और सामाजिक प्राणी हैं। आईएसओ 9001 के 2000 संस्करण का उद्देश्य प्रक्रियाओं के क्रम तथा उनके बीच के संबंधों को पहचानना और उत्तरदायित्वों तथा अधिकारों को परिभाषित करना और बताना है। सामान्यतया, अधिकतर संघीय देशों जैसे फ्रांस और जर्मनी ने इसे अपनाया और ऐसे कार्य विवरणों को विशेष रूप से ट्रेड यूनिअनों में बढ़ावा दिया। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी 2001 में फिर से मिलना और मानव संसाधन विकास पर 1975 में धारा 150 को संशोधित करना तय किया[2] इन प्रवृत्तियों का एक नज़रिया राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर एक मजबूत सामाजिक आम सहमति कायम करना है और एक अच्छी सामाजिक कल्याण प्रणाली, श्रमिकों की गतिशीलता को सुविधाजनक बनाती है और पूरी अर्थव्यवस्था को और अधिक फलदायक बना देती है क्योंकि इसकी सहायता से श्रमिक कौशल और अनुभव को विभिन्न रूपों में विकसित कर सकते हैं और उन्हें एक इकाई से दूसरी इकाई में जाने अथवा खुद को माहौल के अनुकूल ढालने में कम दिक्कत या परेशानी का सामना करना पड़ता है। एक और नज़रिया है कि सरकारों को सभी क्षेत्रों में मानव संसाधन विकास को सुविधाजनक बनाने में अपनी राष्ट्रीय भूमिका के प्रति अधिक जागरूक होना चाहिए।
श्रम गतिशीलता के बारे में एक महत्वपूर्ण विवाद वाक्यांश "मानव संसाधन" से जुड़े एक व्यापक दार्शनिक मुद्दे को दर्शाता है : विकासशील देशों की सरकारें अक्सर विकसित देशों पर आरोप लगाती हैं वे "अतिथि श्रमिकों" के अप्रवास को बढ़ावा देते हैं जो वास्तव में विकासशील देशों का हिस्सा हैं और उनकी सभ्यता के विकास के लिए आवश्यक हैं। उनका तर्क है कि यह समायोजन औपनिवेशिक वस्तु फिएट के समान है जिस में उपनिवेशवादी यूरोपीय शक्तियां प्राकृतिक संसाधनों के लिए एक मनमाना मूल्य तय करती हैं, जो उस राष्ट्र के प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त किये गए होते हैं।
इस तरह कई मायनों में "मानव संसाधन बनाम मानव पूंजी" की बहस प्राकृतिक संसाधनों बनाम प्राकृतिक स्रोतों से मिलती जुलती है। समय के साथ संयुक्त राष्ट्र ने आम तौर पर विकासशील देशों के दृष्टिकोण का समर्थन किया है और उन्होनें पर्याप्त "विदेशी सहायता" का अनुरोध किया है ताकि विकासशील देश मानव पूँजी की कमी के चलते प्रशिक्षण, व्यापर तथा कला में नए लोगों को प्रशिक्षण देने की क्षमता न खो दें।
इस दृष्टिकोण के एक चरम पहलू के अनुसार वर्तमान विकसित देश, जो अपने विकास के दौरान "मानव संसाधनों" की चोरी से लाभान्वित हुये हैं उन्हें ऐतिहासिक अन्यायों जैसे अफ्रीकी गुलामी के लिए मुआवज़ा देना चाहिए। यह एक बहुत ही विवादास्पद पहलू है, लेकिन यह मानव संसाधन को मानव पूंजी में बदलने के सामान्य विषय की व्याख्या करता है और इस प्रकार मेजबान समाज में इसका मूल्य कम होता जा रहा है, जैसे कि - "अफ्रीका ", जिसके लोगों को समाज द्वारा कृत्रिम तंगी दिखा "श्रमिकों" के रूप में इनका प्रयोग किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरल की जनरल असेम्बली [e.g. A/56/162 (2001)], को दी गयी रिपोर्टों के अनुसार [देखें - संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञओं की मानव संसाधन विकास पर बैठक] मानव संसाधनों के विकास में एक व्यापक अंतर क्षेत्रीय तरीका मानव संसाधन विकास के दृष्टिकोण में बदलाव ला रहा है। ST/TCD/SER.E/25. जून 1994[3] को सामाजिक आर्थिक विकास और विशेष रूप से गरीबी हटाने जैसी योजनाओं को प्राथमिकता देने के लिए चुना गया। यह योजनाबद्ध और एकीकृत सार्वजनिक नीतियां बनाने के लिए उठाया गया कदम है, उदाहरण के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र जो कि व्यावसायिक कौशल, ज्ञान और प्रदर्शन में वृद्धि को बढ़ावा देते हैं। (लॉरेंस, J.E.S.)[4].
"मानव संसाधन" और "मानव पूंजी" जैसे शब्द लोगों को अपमानजनक लग सकते हैं। इन शब्दों के प्रयोग से ऐसा लगता है कि लोग ऑफिस की मशीनों अथवा वाहन की तरह एक वस्तु मात्र हैं, चाहे उन्हें ऐसा न समझने के लिए आश्वासन ही क्यों न दिया जाए.
कॉर्पोरेट प्रबंधन के बहुत ही छोटे परिदृश्य में, कार्यस्थल पर प्रतिबिंबित तथा आवश्यक विविधताओं में गहरा विरोधाभास है जो वैश्विक ग्राहक आधार के अनुसार विविध प्रकार की हैं। विदेशी भाषा और सांस्कृतिक कौशल, प्रतिभा, हास्य और ध्यान से सुनना आदि व्यव्हार के ऐसे उदाहरण हैं जो ऐसे कार्यस्थलों की विशेष आवश्यकताएं हैं। मानव पूंजी के दृष्टिकोण से इन तथ्यों को देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य एक उत्पादन इकाई में "कार्य" से बहुत अधिक योगदान देते हैं : वे अपने चरित्र, अपनी नैतिकता, अपनी रचनात्मकता, अपने सामाजिक संबंध और कुछ मामलों में अपने जानवर तथा बच्चों को भी लाते हैं और कार्यस्थल का माहौल बदल देते हैं। एक संगठनात्मक स्तर पर कॉर्पोरेट संस्कृति शब्द का प्रयोग ऐसी प्रक्रियाओं की विशेषताओं को बताने के लिए किया जाता है।
नौकरी पर रखने, निकालने तथा कार्य विवरण जैसी पारंपरिक किन्तु बेहद संकीर्ण विचारधारा को 20 वीं सदी का इतिहास माना जाता है। ज्यादातर कॉर्पोरेट कंपनियों ने आधुनिक वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा के चलते मानव पूँजी का दृष्टिकोण अपनाया है जो आधुनिक बहुमत प्राप्त विचारधारा को दर्शाता है। इनमें से कुछ "मानव संसाधन" शब्द को बेकार मान कर इसका विरोध करते हैं। तथापि यह अभी प्रचलन में है तथा यदि इसे साधन सम्पन्नता से जोड़ा जाए तो सार्वजनिक नीति से इसका उभरता हुआ व लगातार संबंध है।
सामान्यतयः वृहद्-अर्थशास्त्र के अनुसार इसका सारांश यह है - कि यह पसंद अथवा प्रतिभा को प्रर्दशित करने के तंत्र के अभाव का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए एक व्याख्या यह है कि "फर्म-विशेष मानव पूँजी" जो कि वृहद अर्थशास्त्र के अनुसार "मानव संसाधन" की सही तथा आधुनिक परिभाषा है और यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था के किसी भी आधुनिक सिद्धांत में "मानव संसाधन" के योगदान को दर्शाने में असमर्थ है।
संगठनों में प्रमुख कर्मचारियों और आकस्मिक कार्यबल, दोनों की कुशलता/तकनीकी योग्यता, क्षमता, लचीलापन इत्यादि के विश्लेषण के लिए वर्तमान और भविष्य की संगठनात्मक आवश्यकताओं का निर्धारण महत्वपूर्ण है।
इस विश्लेषण में आंतरिक तथा बाह्य कारकों, जिनका संसाधनों की खोज, विकास, प्रेरणा तथा कर्मचारियों तथा अन्य वर्करों के संरक्षण पर प्रभाव पढ़ सकता है, की आवश्कता पड़ती है। बाह्य कारकों में संगठन के नियंत्रण से बाहर के कारक और दूसरे मुद्दे जैसे आर्थिक वातावरण, श्रमिक बाज़ार के वर्तमान तथा भविष्य के ट्रेंड जैसे कि कुशलता, शिक्षा का स्तर, उद्योगों में सरकारी निवेश इत्यादि आते हैं। दूसरी ओर आंतरिक प्रभाव मुख्यतः संगठन के नियंत्रण में होते हैं ताकि लक्ष्य के निर्धारण की भविष्यवाणी तथा उसका अवलोकन किया जा सके। उदाहरण के लिए - संगठन की संस्कृति का पता प्रबंधन व्यवहार (या शैली), पर्यावरण और जलवायु, तथा कारपोरेट की नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति दृष्टिकोण से चलता है।
व्यापारिक माहौल में कोई संगठन कैसे संचालित होता है, जानने के लिए तीन प्रमुख प्रवृत्तियों पर विचार किया जाना चाहिए:
एक कर्मचारी की तरह कार्य करता है जो कि समाज के ढांचे जैसे कि जात पात, लिंग, लैंगिक झुकाव आदि की सीमा का प्रतिबिम्ब है।
श्रमिक बाजार में बदलावों के बाद क्या व्यक्तिगत प्रतिक्रिया होती है, इसे जानने के लिए निम्नलिखित को समझने का प्रयास करना चाहिए:
मानव संसाधन विकास एक संगठन के भीतर (नए तौर तरीकों से), एक नगर पालिका, क्षेत्र या राष्ट्र में मानव पूंजी के विस्तार के लिए एक ढांचा है। मानव संसाधन विकास पर्याप्त स्वास्थ्य और रोजगार नीतियों के साथ प्रशिक्षण और शिक्षा का एक संयोजन है, जो व्यक्ति विशेष, संगठन तथा राष्ट्र की साधन सम्पन्नता में लगातार सुधार तथा विकास सुनिश्चित करता है। एडम स्मिथ के शब्दों में "व्यक्तियों की क्षमताएं उनकी द्वारा ली गयी शिक्षा के उपयोग पर निर्भर करती है।"[5] मानव संसाधन विकास मोटे तौर पर प्रशिक्षण तथा सीखने की प्रक्रिया को बढ़ावा देने वाले माहौल को नियंत्रित करने का माध्यम है। मानव संसाधन विकास एक परिभाषित वस्तु नहीं है अपितु व्यवस्थित प्रक्रियाओं की एक श्रृंखला है, "जिसका विशेष उद्देश्य सीखना है" (नेडलर,1984)[6]. एक राष्ट्र के सन्दर्भ में, यह स्वास्थ्य, शिक्षा तथा रोज़गार के बीच एक योजनाबद्ध दृष्टिकोण बन जाता है। [7]
मानव संसाधन विकास एक संरचना है जो संगठन के, या राष्ट्र के लक्ष्यों को संतोषजनक ढंग से पूरा करने के साथ व्यक्ति विशेष के विकास की अनुमति देता है। व्यक्ति के विकास से व्यक्ति विशेष तथा संगठन दोनों, या राष्ट्र और उसके नागरिकों को लाभ होगा। कॉर्पोरेट दृष्टिकोण के अनुसार, मानव संसाधन ढांचा कर्मचारी को उद्योग की संपत्ति (एस्सेट) की तरह देखता है जिसकी कीमत विकास के साथ बढ़ती है। "इसका प्राथमिक ध्यान विस्तार तथा कर्मचारी का विकास है।..यह व्यक्ति की क्षमता और कौशल विकसित करने पर जोर देता है" (एल्वुड, ओल्टों व ट्रोट 1996)[8]. इस प्रक्रिया में मानव संसाधन विकास का अर्थ वाँछित परिणाम पाने के उद्देश्य से समूह प्रशिक्षण, व्यवसायिक पाठ्यक्रम या व्यक्ति विशेष के प्रदर्शन के विकास के लिए वरिष्ठ कर्मचारियों द्वारा प्रशिक्षण या सलाह हो सकता है। एक राष्ट्रीय नीति के स्तर पर, राष्ट्रीय उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए यह एक व्यापक रचनात्मक योगदान हो सकता है।[9]
संगठनात्मक स्तर पर, एक सफल मानव संसाधन विकास कार्यक्रम व्यक्ति विशेष को काम के एक उच्च स्तर पर ले जाने के लिए तैयार करेगा, "प्रदर्शन में परिवर्तन की संभावना से एक निश्चित अवधि में व्यवस्थित ढंग से सिखाया जाता है।" (नेडलर 1984). इन स्थितियों में, मानव संसाधन विकास एक ढाँचे के रूप में पहले चरण में संगठनों की दक्षता, प्रशिक्षण तथा उसके बाद संगठनों की लम्बी अवधि की आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा के माध्यम से कर्मचारी, उसके व्यवसायिक लक्ष्यों का विकास, कर्मचारी के अपने वर्तमान तथा भविष्य के नियोक्ताओं के प्रति मूल्यों पर ध्यान केन्द्रित करता है। मानव संसाधन विकास को सामान्य रूप से किसी भी व्यवसाय के सबसे महत्वपूर्ण भाग को विकसित करने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है "उद्योग की प्रभावशीलता को अधिकतम करने के लिए सभी स्तरों पर कर्मचारियों के कौशल और व्यवहार में सुधार करके इसे प्राप्त किया जा सकता है" (केली 2001)[5] एक संगठन में कार्य करने वाले लोग इसके मानव संसाधन हैं। एक व्यापार के नजरिए से मानव संसाधन पूरी तरह से व्यक्तिगत विस्तार और विकास पर केंद्रित नहीं है। "संगठन का मूल्य बढ़ाने के लिए विकास होता है, न कि केवल व्यक्तिगत सुधार के लिए. व्यक्तिगत शिक्षा और विकास उपकरण हैं और एक अंत तक जाने का माध्यम है न कि अपने आप में एक अंतिम लक्ष्य." (एलवुड एफ होल्टन द्वितीय, जेम्स डब्ल्यू ट्रोट जूनियर)[8]. मानव संसाधन के विकास के लिए राष्ट्रीय स्तर पर और योजनाबद्ध ढंग से चिंतन और अधिक उभर रहा है क्योंकि नए स्वतंत्र हुए देश अपने कुशल पेशेवरों के लिए मजबूत प्रतिस्पर्धा और बुद्धिजीवियों के विदेशों में बसने की समस्या से जूझ रहे हैं।
कर्मचारी की नियुक्ति एक संगठन की समग्र संसाधन जुटाने की योजनाओं का एक प्रमुख हिस्सा है जिसका उद्देश्य संगठन को बनाये रखने के लिए लोगों की पहचान करना तथा लघु अवधि से ले कर माध्यम अवधि तक उन्हें संरक्षण देना है। नियुक्ति की गतिविधियों को हमेशा बढ़ते हुए प्रतियोगी बाजार के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए ताकि सभी स्तरों पर सुयोग्य और सक्षम लोग आसानी से मिल सकें. इन प्रयासों को प्रभावी बनाने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि आंतरिक या बाह्य स्रोतों से योग्य लोग कैसे और कब ढूँढने हैं।
सफलता के सूत्र हैं - एक अच्छी नौकरी की रूप रेखा के साथ सही ढंग से परिभाषित संगठन का ढांचा, कार्य की सही परिभाषा तथा व्यक्ति तथा विविध चयन प्रक्रियाओं का विवरण, ईनाम, रोज़गार सम्बन्ध तथा मानव संसाधन नीतियां, मजबूत ब्रांडिंग नियोक्ता की प्रतिबद्धता तथा कर्मचारी की वचनबद्धता.
आंतरिक भर्ती नियुक्तियों का सबसे सस्ता स्रोत है यदि मौजूदा कर्मचारियों की क्षमता प्रशिक्षण, विकास तथा अन्य प्रदर्शन बढ़ाने वाली क्रियाओं से बढ़ाई गयी है - जैसे प्रदर्शन मूल्यांकन, उत्तराधिकार योजना बनाना तथा विकास केन्द्रों द्वारा प्रदर्शन की जांच ताकि कर्मचारी के विकास की आवश्कताओं को तथा पदोन्नति क्षमता को समझा जा सके।
आने वाले समय में, सभी संगठन अच्छी गुणवत्ता के उम्मीदवारों को प्राप्त करने के लिए काफी हद तक बाहरी रोज़गार साधनों पर निर्भर होंगे। तेजी से बदलते व्यावसायिक तरीके अनुभवी कौशल की चाह रखते हैं जिसे मौजूदा कर्मचारियों से पूरा नहीं किया जा सकता. आज की तारीख में एक संगठन के लिए नियुक्ति प्रक्रिया के सभी पहलुओं को किसी तीसरी पार्टी (रोज़गार केन्द्रों) की सहायता के बिना पूरा करना असमान्य है। इस में समर्थन सेवाओं की एक श्रृंखला शामिल हो सकती है, जैसे कि CVs या बायोडाटा की व्यवस्था, नियुक्ति के लिए आवश्यक मीडिया की पहचान, विज्ञापन का डिजाइन और नौकरी के रिक्त पद का विज्ञापन, उम्मीदवार की प्रतिक्रिया जानना, चुनना, व्यवहार का परीक्षण करना, प्रारंभिक साक्षात्कार या संदर्भ और योग्यता का सत्यापन. आमतौर पर छोटे संगठनों, जिन में बड़े संगठनों की तरह आंतरिक सुविधायें नहीं होती, नियुक्ति प्रक्रिया के लिए एक विशेष तरीका नहीं अपना सकते. ज़रुरत पड़ने पर इस प्रक्रिया के लिए सरकारी रोज़गार केंद्र या व्यवसायिक रोज़गार एजेंसियों का सहारा लिया जाता है।
उन क्षेत्रों को छोड़कर, जहां बड़ी मात्रा में नियुक्ति सामान्य बात है, अप्रत्याशित आवश्यकता पड़ने पर एक संगठन को असामान्य रूप से कम समय में बड़ी संख्या में नए कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिए एक बाह्य विशेषज्ञ की आवश्यकता पड़ती है जो शुरू से अंत तक इस कार्यक्रम का प्रबंधन कर सके। एक्जीक्यूटिव स्तर तथा सीनियर मैनेजमेंट ढूँढने के साथ विलक्षण या उच्च स्तरीय प्रतिभाओं को साथ जोड़ना, एक लम्बे समय से स्थापित बाज़ार है जिन में बड़ी मात्र में 'खोज व चयन' तथा नौकरी दिलाने वाले परामर्श केंद्र हैं जो अपने ग्राहक संगठनों के साथ लम्बे समय तक सम्बन्ध बनाए रखते हैं। अंत में, परिष्कृत मानव संसाधन प्रकियाओं से युक्त कुछ संगठनों ने समझ लिया है कि सभी कर्मचारिओं की नियुक्ति के लिए पूरी तरह से रोज़गार एजेंसियों अथवा परामर्श केन्द्रों पर निर्भर रहने के नीतिगत लाभ हैं। आधुनिक रोज़गार सेवा प्रदाता केवल ढूँढने या भेजने का कार्य नहीं करता अपितु उसकी टीम ग्राहक संगठन के ऑफिस में वरिष्ठ मानव संसाधन प्रबंधन टीम के साथ मिलकर लम्बी अवधि के लिए मानव संसाधन नीति और योजना बनाती है।
हालांकि मानव संसाधन कृषि शुरू होने के पहले दिन से ही व्यवसाय तथा संगठनों का हिस्सा रहा है, सन् 1900 के प्रारंभ से ही उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के तरीकों की और ध्यान देने से मानव संसाधन की आधुनिक अवधारणा शुरू हुई। 1920 तक, संयुक्त राज्य अमेरिका में मनोवैज्ञानिकों और रोजगार विशेषज्ञों ने मानव संबंधों पर आधारित आंदोलन किया, जिन्होनें कर्मचारियों को बदले जाने वाले पुर्जों के बजाए उनके मनोविज्ञान तथा कंपनी के साथ सामंजस्य की कसौटियों पर परखा. इस आंदोलन में 20 वीं शताब्दी के मध्य में वृद्धि हुई, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि नेतृत्व, एकता तथा निष्ठा का एक संगठनात्मक सफलता में महत्वपूर्ण योगदान होता है। यद्यपि इस दृष्टिकोण को 1960 के दशक और उसके बाद में अत्यधिक कठोर तथा कम नम्र प्रबंधन तकनीकों द्वारा ज़ोरदार चुनौती दी गयी, तथापि मानव संसाधन विकास को संगठनों, एजेंसियों तथा राष्ट्रों में एक स्थाई भूमिका मिल गयी है जो केवल अनुशासन बनाये रखने के लिए ही नहीं है अपितु विकास नीति का केंद्र बिंदु भी है।
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