Loading AI tools
भारत में मौजूद बहूत ही खूबसूरत मस्जिद विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
मस्जिद-ए-रशीद (उर्दू: مسجد رشید) भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में मौजूद मदरसा दारुल उलूम देवबंद के परिसर में स्थित एक मस्जिद है। इसे कुछ लोग जामे रशीद मस्जिद, मस्जिद-ए-रशीदियह और ताज मस्जिद के नाम से भी पुकारते हैं। इस मस्जिद का नाम मदरसा दारुल उलूम देवबंद के संस्थापक मौलाना राशिद अहमद गंगोही के नाम पर रखा गया है। इस मस्जिद को भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे खूबसूरत मस्जिद बताया गया है।[1][2]
मस्जिद-ए-रशीद | |
---|---|
जामे मस्जिद रशीदिया | |
निर्देशांक: निर्देशांक: अक्षांश को संख्या के रूप में नहीं पार्स किया जा सका:29°41'53.9"N {{#coordinates:}}: invalid latitude | |
स्थान | सहारनपुर देवबंद |
स्थापित | 1986 |
प्रशासन | दारुल उलूम देवबंद |
स्वामित्व | मदरसा दारुल उलूम देवबंद |
नेतृत्व | इमाम: क़ारी मुनीर आलम क़ासमी अध्यक्ष: प्रिंसिपल दारुल उलूम देवबंद प्रवक्ता: मौलाना अरशद मदनी |
| |
जालस्थल: साँचा:Http://url=www.darululoom.in |
मस्जिद जाम-ए-रशीद सबसे अलग और ध्यान देने योग्य है। आकर्षक गुंबद और गगनचुम्बी शानदार मीनारों वाली यह खूबसूरत मस्जिद आगंतुकों को आकर्षित करती है। पहली नज़र में, कोई भी इसे इस्लामी आगमन के समय निर्मित मान सकता है। विशाल मैदान, केंद्रीय द्वार के दोनों ओर लंबी गैलरी और बाहर पर्याप्त जगह इसे और अधिक आकर्षक बनाती है। चांदनी रात में मस्जिद में इस्तेमाल की गई सफ़ेद पत्थर की टाइलें ताजमहल का नज़ारा पेश करती हैं जो आगंतुकों को कुछ समय के लिए वहाँ बैठने के लिए प्रेरित करती हैं। एक छोटा लेकिन साफ-सुथरा तालाब और बाहर सावधानी से सजाए गए फूलों वाला बगीचा इसे बेहद खूबसूरत बनाता है। छात्रों की तो बात ही छोड़िए, यहाँ हमेशा बड़ी संख्या में लोग पाए जाते हैं जो दूर-दूर से मस्जिद देखने आते हैं।[3]
जब दारुल उलूम के प्रशासन ने इस मस्जिद को बनाने का फैसला किया तो उन्होंने सोचा भी नहीं था कि मस्जिद इतनी खूबसूरत बनेगी, लेकिन जैसे ही निर्माण शुरू हुआ, समुदाय ने अप्रत्याशित राशि दान करना शुरू कर दिया, जिसके कारण उन्हें पहले की योजना बदलनी पड़ी। हालाँकि, वर्तमान संरचना तक पहुँचने में 20 साल और बहुत सारा पैसा लगा। मस्जिद में 120 फीट ऊँचा गुंबद, 180 फीट ऊँची मीनारें और पाँच दरवाज़े हैं। इसमें एक बार में 20 हज़ार नमाज़ियों के लिए जगह है।
देवबंद मदरसे की क़दीमी मस्जिद की तरह इस जदीद मस्जिद के मीनारों पर भी चाँद या तारे का प्रयोग नहीं हुआ।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के दिवंगत अध्यक्ष मौलाना सय्यद असद मदनी अपने निधन तक रमजान के दौरान अपने सैकड़ों शिष्यों के साथ एतिकाफ़ (एकांत साधना) करते रहे थे। अब उनके बेटे मौलाना महमूद मदनी भी यही कर रहे हैं।[4]
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.