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बायोस अंग्रेज़ी के बेसिक इनपुट आउटपुट सिस्टम शब्द का संक्षिप्त रूप है। ये आईबीएम कंप्यूटर को दिए जाने वाले निर्देशों का एक समूह होता है।[1] ये निर्देश कंप्यूटर में एक चिप में संरक्षित रहते हैं। इनको डिस्क को फेल होने से बचाने के उद्देश्य से तैयार किया जाता है।[2] कंप्यूटर का सहजता से प्रयोग करने के लिए ये निर्देश आवश्यक होते हैं। बायोस का सबसे महत्वपूर्ण कार्य कंप्यूटर को चालू करते समय स्वपरीक्षण (सेल्फ टेस्ट) निर्देश देना होता है। स्वपरीक्षण यह तय करता है कि कंप्यूटर के सभी भाग जैसे हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर जैसे मेमोरी, कीबोर्ड आदि की उपयोज्यता यानि वे सब तकनीकी रूप से सही स्थिति में हैं और यह सहजता से काम करने की स्थिति में है। यदि स्वपरीक्षण में कोई अनियमितता पाई जाती है तो बायोस उसे ठीक करने के लिए कंप्यूटर को एक कोड देता है। इस तरह के कोड प्रायः एक बीप के रूप में होते हैं, जो कंप्यूटर को चालू करते समय सुनाई देते हैं। इसके साथ ही बॉयोस कंप्यूटर को यह आधारभूत जानकारी भी देते हैं कि यह अपने कुछ जरूरी घटकों जैसे, ड्राइव्स और मेमोरी के साथ किस तरह इंट्रैक्शन करें।[1] जब एक बार कंप्यूटर में आधारभूत निर्देश लोड हो जाते हैं और स्वपरीक्षण सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाता है तो कंप्यूटर आगे की प्रक्रिया पूरी करता है जिसमें प्रचालन तंत्र (ऑपरेटिंग सिस्टम) लोड करना शामिल होता है।
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एक मानक पी.सी पर फ़ीनिक्स अवार्डबायोस सीमॉस (नॉन वॉलाटाइल मेमोरी) सेटाप यूटिलिटी | |
भंडारण |
प्रोम ईप्रोम फ्लैश मेमोरी |
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सामान्य निर्माता |
अमेरिकन मेगाट्रेन्ड्स इनसाइड सॉफ्टवेयर फीनिक्स टेक्नॉलोजीज़ बायोसॉफ्ट अन्य |
कंप्यूटर प्रयोग करने वाले लोग प्रायः बायोस के द्वारा सिस्टम पर कुछ विन्यास तैयार कर लेते हैं। जिससे कंप्यूटर ऑन करते समय की बोर्ड की एक विशेष कुंजी का प्रयोग कर काम चलाया जा सके और सिस्टम को किसी जटिलता का सामना न करना पड़े। डेस्कटॉप का यह सेटअप ड्राइव्स के एक्सेस आर्डर को परिवर्तन करने करने के साथ ही सिस्टम की जटिल युक्तियों को भी नियंत्रित करता है।[1] बायोस के अलग-अलग प्रारूप में होते हैं। आजकल कई पर्सनल कंप्यूटर निर्माता बायोस के निर्देश लोड करने के लिए फ्लैश मेमोरी कार्ड का प्रयोग करते हैं। इसे समय-समय पर अद्यतित कर सकते हैं और मूल बायोस की मदद से समस्याओं को सुलझा सकते हैं।
अभि तक बायोस पर कम से कम तीन वायरस आक्रमण हो चुके हैं। पहला वायरस कंप्यूटर की फ्लैश रोम से बायोस सामग्री को मिटा देता था, जिससे कंप्यूटर सिस्टम अप्रयोगनीय रह जाता था। CIH, जिसे "चेर्नोबिल वायरस" भी कहा जाता है, प्रथम बार मध्य १९९८ में दिखा था और अप्रैल १९९९ से सक्रिय हो गया था। यह सिस्टम बायोस को प्रभावित करत आथा और स्वतः सुधार भी नहीं हो पाता था, क्योंकि इसके बाद कंप्यूटर अपने आप बूट तक नहीं हो पाता था। इसकी मरम्मत हेतु फ्लैश रोम चिप को कंप्यूटर मदरबोर्ड से निकालकर कहीं और पुनः प्रोग्राम करना होता था। ये वायरस विशेषतः तत्कालीन सबसे अधिक प्रचलित इन्टेल i430TX मदरबोर्ड चिपसेट, जो विंडोज़ ९एक्स श्रेणी का समर्थन करता था; को हानि पहुंचाने के उद्देश्य से बना था, अतः इससे हानि भी संभव थी। इसका प्रमुख कारण था कि ये विंडोज़ परिवार किसी भि प्रोग्राम को सीधा एक्सेस उपलब्ध कराता था, अतः सभी प्रोग्राम सॉफ्टवेयरों पर वायरस की सीधी पहुंच होती थी। आधुनिक प्रचालन तंत्र जैसे लिनक्स, मैक ओएस एक्स, विंडोज़ एनटी पर आधारित अन्य तंत्र जैसे विंडोज़ २०००, विंडोज़ एक्सपी व अन्य नवीन संस्करण उपयोक्ता मोड को प्रोग्राम तक सीधी पहुंच नहीं उपलब्ध कराते हैं, अतः इस वायरस से पूर्ण सुरक्षित रहते हैं।[3]
दूसरा आक्रमण जॉन हीज़मैन, यू.के स्थित नेक्स्ट-जनरेशन सिक्योरिटी सॉफ्टवेयर के प्रधान सुरक्षा सलाहकार द्वारा ब्लैक हैट सुरक्षा सम्मेलन (२००६) में प्रदर्शित एक तकनीक थी, जिसमें उन्होंने दिखाया कि कैसे प्राधिकारों को बढ़ाकर मैलेशियस प्रोसीजरों द्वारा फिज़िकल मेमोरी को पढ़ा जा सकता है, जो फ्लैश मेमोरी में सहेजी हुई सामान्य एसीपीआई कार्यविधियों का स्थान ले लेते हैं।
तीसरा आक्रमण पर्सिस्टेन्ट बायोस इन्फ़ेक्शन कहा जाता था। ये कैनसेकवेस्ट सुरक्षा सम्मेलन (वैंकूवर, २००९) और सायस्कैन सुरक्षा सम्मेलन (सिंगापुर, २००९) में शोधकर्त्ता ऍनिबल सैक्को[4] और अल्फ़्रेड ऑर्टेगा, कोर सिक्योरिटी टेक्नोलॉजीज़ द्वारा दिखाया गया था। इन्होंने बायोस की विसंपीड़न (डीकंप्रेशन) रुटीन में मैलेशियस कोड डालना दिखाया था। ये प्रचालन तंत्र के बूट होने से भी पहले हो जाता था।
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