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प्रवर्धक या एम्प्लिफायर (amplifier) ऐसी युक्ति है जो किसी विद्युत संकेत का मान (अम्प्लीच्यूड) बदल दे (प्रायः संकेत का मान बड़ा करने की आवश्यकता अधिक पड़ती है।) विद्युत संकेत विभवान्तर (वोल्टेज) या धारा (करेंट) के रूप में हो सकते है। आजकल सामान्य प्रचलन में प्रवर्धक से आशय किसी 'इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्धक' से ही होता है।
पहला व्यावहारिक उपकरण जो amplifier[1] है वह त्रिकोणीय वैक्यूम ट्यूब(triode vacuum tube) था, जिसने 1 9 06 में Lee De Forest द्वारा आविष्कार किया था, जिसने 1 9 12 के आसपास के पहले एम्पलीफायरों का नेतृत्व किया था। 1 9 60 के दशक तक जब तक ट्रांजिस्टर का आविष्कार हुआ तो वैक्यूम ट्यूबों का लगभग सभी एम्पलीफायरों में उपयोग किया जाता था। , उन्हें बदल दिया गया। आज, अधिकांश एम्पलीफायर ट्रांजिस्टर का उपयोग करते हैं, लेकिन कुछ अनुप्रयोगों में वैक्यूम ट्यूबों का उपयोग जारी है।
टेलीफ़ोन के रूप में ऑडियो संचार प्रौद्योगिकी का विकास, जिसे पहली बार 1876 में पेटेंट किया गया था,तेजी से लंबी दूरी पर संकेतों के संचरण को बढ़ाने के लिए विद्युत संकेतों (electrical signals) के आयाम को बढ़ाने की आवश्यकता पैदा की। टेलीग्राफी में, इस समस्या को स्टेशनों पर इंटरमीडिएट उपकरणों के साथ हल किया गया था, जो एक सिग्नल रिकॉर्डर और ट्रांसमीटर को बैक-टू-बैक संचालित करके विलुप्त ऊर्जा (local energy) को भर देता था, जिससे रिले का निर्माण होता था, ताकि प्रत्येक मध्यवर्ती स्टेशन पर एक स्थानीय ऊर्जा स्रोत अगले चरण को संचालित कर सके संचरण। डुप्लेक्स ट्रांसमिशन के लिए, यानी दोनों दिशाओं में भेजने और प्राप्त करने के लिए, द्वि-दिशात्मक रिले रिपियटर्स को टेलीग्राफिक ट्रांसमिशन के लिए C. F. Varley के काम से शुरू किया गया था। टेलीफ़ोनी के लिए डुप्लेक्स ट्रांसमिशन आवश्यक था और 1 9 04 तक समस्या को संतोषजनक ढंग से हल नहीं किया गया था, जब अमेरिकी टेलीफोन और टेलीग्राफ कंपनी के H. E. Shreeve ने एक टेलीफोन पुनरावर्तक (telephone repeater) बनाने में मौजूदा प्रयासों में सुधार किया था जिसमें बैक-टू-बैक कार्बन-ग्रेन्युल ट्रांसमीटर और इलेक्ट्रोडडायनामिक रिसीवर जोड़े (electrodynamic receiver pairs) शामिल थे। श्रीवे रिपेटर (Shreeve repeater) का पहली बार बोस्टन और एम्सबरी, एमए के बीच एक लाइन पर परीक्षण किया गया था, और कुछ परिष्कृत उपकरण कुछ समय के लिए सेवा में बने रहे।
अलग-अलग क्षेत्रों में तथा अलग-अलग प्रकार की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रवर्धक भी अनेक प्रकार के होते हैं।
शक्ति प्रवर्धक का कार्य वोल्टेज प्रवर्धक से प्राप्त आउटपुट को शक्ति प्रदान करना है।
माइक्रोफोन द्वारा प्राप्त विद्युत तरंग को वोल्टेज एम्पलीफायर प्रवर्धित करता है, इसे सीधे लाउडस्पीकर को देने पर यह पुन: इन्हे ध्वनि तरंगो मे बदल नही पायेगा। अतः वोल्टेज प्रवर्धक से प्राप्त आउटपुट को एक शक्ति प्रवर्धक को दिया जाता है। जिससे लाउडस्पीकर को संचालित करने योग्य पावर प्राप्त हो जाता है।
"वह ट्रांजिस्टर प्रवर्धक जो ऑडियो आवृत्ति (२० हर्ट्ज से २० किलोहर्ट्ज) सिगनलों के पॉवर स्तर को बढ़ाता है, ट्राँजिस्टर आडियो शक्ति प्रवर्धक कहलाता है"। वैसे अन्य प्रकार के शक्ति-प्रवर्धक भी होते हैं, जैसे विडियो शक्ति प्रवर्धक जो विडियो संकेतों को शक्तिशाली बनाने के काम आता है। इसी प्रकार रेडियो आवृत्ति शक्ति प्रवर्धक रेडियो आवृत्ति के संकेतों को शक्ति प्रदान करता है।
वास्तव में कोई पावर प्रवर्धक पावर का प्रवर्धन नहीँ करता है बल्कि यह आउटपुट पर संयोजित d.c. सप्लाई से पावर लेकर उसे a.c. सिगनल पावर में परिवर्तित करता है। चूँकि यह वोल्टेज प्रवर्धक से प्राप्त उच्च वोल्टेज सिगनल का प्रवर्धन करता है अतः इसे लार्ज सिगनल प्रवर्धक कहना उचित होगा।
अधिकतम शक्ति स्थानान्तरण प्रमेय के अनुसार किसी नेटवर्क में अधिकतम शक्ति तभी ट्राँसफर होगी जब लोड प्रतिरोध स्रोत प्रतिरोध के तुल्य हो। अर्थात् शक्ति प्रवर्धक से लाउडस्पीकर को अधिकतम शक्ति तभी प्रदान की जा सकती है जब स्रोत प्रतिबाधा तथा लोड प्रतिबाधा समान हो।
जहाँ N1 व N2 क्रमशः ट्राँसफार्मर की प्राथमिक व द्वितीयक कुण्डलियोँ की सँख्या है
R'L = इनपुट प्रतिबाधा
RL = आउटपुट प्रतिबाधा है।
"शक्ति प्रवर्धक से प्राप्त a.c. आउटपुट पावर तथा शक्ति प्रवर्धक को बैटरी द्वारा सप्लाई की गई d.c. पावर के अनुपात को उसकी कलक्टर दक्षता कहते हैं। इसे n से दर्शाते हैं।
आपरेशनल एम्प्लिफायर देखें।
अलग-अलग आधार पर प्रवर्धकों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जाता है-
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