नज़र या दृष्टिदोष उस दृष्टि या देखने के लहजे को कहा जाता है जिस से देखे जाने वाले को हानि यो या दुर्भाग्य का सामना करना पड़े। बहुत सी संस्कृतियों में यह मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति को कोई अन्य व्यक्ति ईर्ष्या या नफ़रत की दृष्टि से देखे तो पहले व्यक्ति पर उसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है। इस प्रक्रिया को नज़र लगना कहते हैं। नज़र को टालने के लिए अलग-अलग संस्कृतियों ने कई तरीक़े ढूंढें हैं, जैसे की तावीज़, नज़र बट्टू, मंत्रोच्चारण, विभिन्न टोटके और रस्में, इत्यादि।
तुर्की भाषा में नज़र से बचने के लिए इस्तेमाल होने वाले एक ख़ास चिह्न और तावीज़ को ही 'नज़र' कहते हैं। यह एक नीले और सफ़ेद रंग वाला गोल चपटा-सा एक पत्थरनुमा लॉकेट होता है जिसमें एक आँख जैसी आकृति बनी होती है और जिसे लटकाया या पहना जा सकता है।
भारतीय उपमहाद्वीप में नज़र से बचने के लिए कई उपाय लोक-संस्कृति में देखे जा सकते हैं:
बच्चों पर माँओं का हल्का सा थूकना: इस से लगता है कि माँ बच्चे को थूकने लायक़ ठहराकर उसकी स्वयं उपेक्षा कर रही है जिस से ईर्ष्या की नज़र उस से दूर रहे। कुछ क्षेत्रों में मान्यता है कि अत्यधिक प्रेम के कारण बच्चों को माँ की नज़र भी लग सकती है और इस से बच्चे उस से भी बचे रहते हैं।[1]
बच्चों पर काला तिल या टीका लगाना या काला धागा बंधना: यह बच्चों में एक नक़ली त्रुटी बना देते हैं जिस से नज़र उनसे दूर रहती है।[2]
महँगी साड़ियों और शॉलों में एक ग़लत रंग का धागा: यह जानबूझ कर नज़र से बचने के लिए डाला जाता है। महंगे कश्मीरी क़ालीनों में जानबूझ कर ऐसे नज़रबट्टू रेशे डालने का रिवाज है।[3][4]
मिर्ची और नीम्बुओं को लटकाना: यह अक्सर घरों और दुकानों के बाहर नज़र से बचने के लिए लटकती नज़र आती हैं।
मिर्च जलाना: किसी के सर के इर्द-गिर्द मिर्च घुमाने से माना जाता है कि नज़र उसमें आ गई है और फिर उन मिर्चों को जलाया जाता है। अगर बहुत धुंआ निकले तो माना जाता है कि गहरी नज़र लगी है और यह प्रक्रिया दोहराई जाती है।
सूत्रवाक्यों का प्रयोग: 'बुरी नज़र वाले तेरा मुंह काला' और 'चश्म-ए-बद दूर' जैसे सूत्रवाक्य गाड़ियों-ट्रकों और दुकानों पर लिखे हुए नज़र आते हैं। लोग भगवान का नाम लेकर भी नज़र से सुरक्षा ढूंढते हैं, जिस वजह से ॐ, ੴ (इक ओंकार, सिख निशान), ٧۸٦ (अरबी का ७८६ जो इस्लामी मन्त्र 'बिस्मिल्लाह इर-रहमान इर-रहीम' का संख्या-प्रतीक है), वग़ैराह भी ट्रकों-दुकानों पर लिखे रहते हैं।[5]