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दूनहुआंग (चीनी: 敦煌, अंग्रेज़ी: Dunhuang) पश्चिमी चीन के गांसू प्रान्त में एक शहर है जो ऐतिहासिक रूप से रेशम मार्ग पर एक महत्वपूर्ण पड़ाव हुआ करता था। इसकी आबादी सन् २००० में १,८७,५७८ अनुमानित की गई थी। रेत के टीलों से घिरे इस रेगिस्तानी इलाक़े में दूनहुआंग एक नख़लिस्तान (ओएसिस) है, जिसमें 'नवचन्द्र झील' (Crescent Lake) पानी का एक अहम स्रोत है। प्राचीनकाल में इसे शाझोऊ (沙州, Shazhou), यानि 'रेत का शहर', के नाम से भी जाना जाता था। यहाँ पास में मोगाओ गुफाएँ भी स्थित हैं जहाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धी ४९२ मंदिर हैं और जिनमें इस क्षेत्र की प्राचीन संस्कृति पर भारत का गहरा प्रभाव दिखता है।[1][2]
दूनहुआंग दक्षिणी रेशम मार्ग पर स्थित है जो भारत और तिब्बत की राजधानी ल्हासा से होते हुए मंगोलिया और दक्षिणी साइबेरिया जाता था। यह हेशी गलियारे के मुख पर भी स्थित है जिसके ज़रिये मध्य एशिया और चीन के बीच व्यापर और सैनिक गतिविधियाँ चलती थी। इधर से सड़क पूर्व की ओर सीधा चांगआन और लुओयांग की प्राचीन चीनी राजधानियों की तरफ़ जाती थी। इसके इर्द-गिर्द के रेतीले पहाड़ों से रेत उड़-उड़कर एक गाने जैसी आवाज़ करती है। इसलिए इन्हें 'गाती रेत के पहाड़' कहा जाता है, जो कि चीनी भाषा में 'मिन्गशा शान' (鸣沙山, Mingsha Shan) है।
दूनहुआंग क्षेत्र में मनुष्यों के वास के २००० साल पुराने निशान मिले हैं। महान इतिहासकार के अभिलेख नामक चीनी इतिहास ग्रन्थ के अनुसार यह युएझ़ी लोगों के मूल निवास स्थान का हिस्सा था। तीसरी सदी ईसापूर्व तक यहाँ शियोंगनु लोग अपनी धाक जमा चुके थे। १२१ ईपू में चीन के हान राजवंश के सम्राट वू ने [[रेशम मार्ग] पर नियंत्रण पाने के लिए शियोंगनुओं को हरा दिया और यहाँ एक छावनी के रूप से दूनहुआंग शहर स्थापित करवाया। यहाँ मिटटी की मीनारे बनवाई गई जहाँ से शियोंगनु हमलों के लिए चौकस रहने के लिए पहरा लगाया जाता था। हमलों में इनपर मशाले जलाकर संकेत दिए जाते थे और 'दून हुआंग' का अर्थ चीनी में 'जलती मशालें' है।[3]
यहाँ पर मध्य एशिया और भारत से आते-जाते कारवानों में व्यापारी और बौद्ध प्रचारक होते थे और दूनहुआंग के पास सब से पहली बौद्ध गुफाएँ सन ३५३ में तराशी गईं। इस शहर के चीन और मध्य एशिया के बीच के सरहदी इलाके में होने से इसपर खींचातानी चलती रहती थी और अक्सर इसपर ग़ैर-चीनियों का क़ब्ज़ा हो जाता था। हान राजवंश के पतन के बाद फिर से दूनहुआंग पर शियोंगनु नियंत्रण बन गया। बाद में तुर्कियों और तिब्बतियों का भी इसपर क़ब्ज़ा हुआ। १०३७ ईसवी में इसपर उईग़ुरों का और १०६८ में पश्चिमी शिया साम्राज्य स्थापित करने वाले तान्गूत लोगों का क़ब्ज़ा हुआ। १२२७ में इसपर मंगोल क़ब्ज़ा हो गया जिन्होनें इस शहर को जला डाला लेकिन कुबलई ख़ान के पूरे चीन को फ़तेह करने के बाद इसका पुनर्निर्माण हुआ। चीन के मिंग राजवंश काल तक चीन का बाक़ी दुनिया से समुद्री व्यापार ज़ोर पकड़ चुका था और रेशम मार्ग से चीन का ध्यान हट गया। १५१६ में इसपर तिब्बती क़ब्ज़ा हुआ और १७१५ के आसपास फिर से चीन के चिंग राजवंश का।
दूनहुआंग ऊँचे पहाड़ों से घिरा है और यहाँ सर्दी और गर्मी दोनों ज्यादा होती हैं। जुलाई में औसत अधिकतम तापमान ३३ सेंटीग्रेड और जनवरी में औसत न्यूनतम तापमान −१४.६ सेंटीग्रेड होता है। यहाँ शुष्कता के कारण बर्फ़-बारिश बहुत कम पड़ती है और अगर पड़ भी जाए तो जल्दी ही पानी वापस हवा में ग़ायब हो जाता है।[4]
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