कच्छ
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कच्छ गुजरात प्रान्त का एक जिला है। गुजरात यात्रा कच्छ जिले के भ्रमण के बिना अधूरी मानी जाती है। पर्यटकों को लुभाने के लिए यहां बहुत कुछ है। जिले का मुख्यालय है भुज। जिले में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हर वर्ष कच्छ महोत्सव आयोजित किया जाता है। 45652 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले गुजरात के इस सबसे बड़े जिले का अधिकांश हिस्सा रेतीला और दलदली है। जखाऊ, कांडला और मुन्द्रा यहां के मुख्य बंदरगाह हैं। जिले में अनेक ऐतिहासिक इमारतें, मंदिर, मस्जिद, हिल स्टेशन आदि पर्यटन स्थलों को देखा जा सकता है।
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मिलें अवशेषों के आधार पर कच्छ प्राचीन सिन्धु संस्कृति का हिस्सा माना जाता है। सन १२७० में कच्छ एक स्वतंत्र प्रदेश था। सन १८१५ में यह ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हुआ। रजवाड़े के रूप में कच्छ के तत्कालीन महाराजा ने ब्रिटिश सत्ता स्वीकार कर ली। सन १९४७ में भारत की स्वतंत्रता के बाद कच्छ तत्कालीन ' महागुजरात ' राज्य का जिला बना। सन १९५० में कच्छ भारत का एक राज्य बना। १ नवम्बर सन १९५६ को यह मुंबई राज्य के अंतर्गत आया। सन १९६० में भाषा के आधार पर मुंबई राज्य का महाराष्ट्र और गुजरात में विभाजन हो गया तथा कच्छ गुजरात का एक हिस्सा बन गया।
सन १९४७ में भारत के विभाजन के पश्चात सिंध और कराची में स्थित बंदरगाह पाकिस्तान के अंतर्गत चला गया। स्वतंत्र भारत की सरकार ने कच्छ के कंडला में नवीन बंदरगाह विकसित करने का निर्णय लिया। कंडला बंदरगाह पश्चिम भारत का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह है।
इतिहास में १६ जून सन १८१५ का दिन कच्छ के पहले भूकंप के रूप में दर्ज है। २६ जनवरी २००१ में आया प्रचंड भूकंप का केंद्र कच्छ जिले के अंजार में था। कच्छ के १८५ वर्ष के दर्ज भूस्तरीयशास्त्र के इतिहास में यह सबसे बड़ा भूकंप था।
कच्छ में देखने लायक कई स्थान है जिसमें कच्छ का सफ़ेद रण आजकल पर्यटकों को लुभा रहा है। इस के अलावा मांडवी समुद्रतट भी सुंदर आकर्षण है। भुज कच्छ की राजधानी है जिसमें कच्छ के महाराजा का आइना महल, प्राग महल, शरद बाग़ पैलेस एवं हमीरसर तलाव भुज में मुख्य आकर्षण है तथा मांडवी में स्थित विजय विलास पैलेस जो समुद्रतट पर स्थित है जो देखने लायक है। भद्रेश्वर जैन तीर्थ और कोटेश्वर में महादेव का मंदिर और नारायण सरोवर जो पवित्र सरोवरों में से एक है वो भी घूमने लायक है। ok
इस स्थल की खोज 1967-68 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के जे पी जोशी ने की थी और यह आठ प्रमुख हड़प्पा स्थलों में से पांचवां सबसे बड़ा है। यह एएसआई द्वारा 1990 से उत्खनन के तहत किया गया है, जिसने कहा कि "धोलावीरा ने वास्तव में सिंधु घाटी सभ्यता के व्यक्तित्व में नए आयाम जोड़े हैं।"अब तक खोजे गए अन्य प्रमुख हड़प्पा स्थलों में हड़प्पा, मोहनजो-दड़ो, गनेरीवाला, राखीगढ़ी हैं।[1] कालीबंगन, रूपनगर और लोथल। यह पुरातात्विक स्थल हडप्पा संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था। जिला मुख्यालय भुज से करीब 250 किलोमीटर दूर स्थित धौलावीरा यह बात साबित करता है कि एक जमाने में हडप्पा संस्कृति यहां फली-फूली थी। यह संस्कृति 2900 ईसा पूर्व से 2500 ईसा पूर्व की मानी जाती है। सिंधु घाटी सभ्यता के अनेक अवशेषों को यहां देखा जा सकता है। वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग इसकी देखरेख करता है। धौलावीरा क्षेत्र का 47 ha (120 एकड़) है।[2] धौलावीरा का पिन कोड 370165[3] है।
भुज से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित यह बीच गुजरात के सबसे आकर्षक बीचों में एक माना जाता है। दूर-दूर फैले नीले पानी को देखना और यहां की रेत पर टलहना पर्यटकों को खूब भाता है। साथ की अनेक प्रकार के जलपक्षियों को भी यहां देखा जा सकता है। सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा यहां से बड़ा आकर्षक प्रतीत होता हैं।
एक अलग-थलग पहाड़ी के शिखर पर बने इस किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में हुआ था। अलग-अलग समय में इस पर सोलंकी, चावडा और वघेल वशों का नियंत्रण रहा। 1816 में अंग्रेजों ने इस पर अधिकार कर लिया और इसका अधिकांश हिस्सा नष्ट कर दिया। किले के निकट ही कंथडनाथ मंदिर, जैन मंदिर और सूर्य मंदिर को भी देखा जा सकता है।
भगवान विष्णु के सरोवर के नाम से चर्चित इस स्थान में वास्तव में पांच पवित्र झीलें हैं। नारायण सरोवर को हिन्दुओं के अति प्राचीन और पवित्र तीर्थस्थलों में शुमार किया जाता है। साथ ही इन तालाबों को भारत के सबसे पवित्र तालाबों में गिना जाता है। श्री त्रिकमरायजी, लक्ष्मीनारायण, गोवर्धननाथजी, द्वारकानाथ, आदिनारायण, रणछोडरायजी और लक्ष्मीजी के मंदिर आकर्षक मंदिरों को यहां देखा जा सकता है। इन मंदिरों को महाराज श्री देशलजी की रानी ने बनवाया था।
भद्रावती में स्थित यह प्राचीन जैन मंदिर जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अति पवित्र माना जाता है। भद्रावती में 449 ईसा पूर्व राजा सिद्धसेन का शासन था। बाद में यहां सोलंकियों का अधिकार हो गया जो जैन मतावलंबी थे। उन्होंनें इस स्थान का नाम बदलकर भद्रेश्वर रख दिया।
यह राष्ट्रीय बंदरगाह देश के 11 सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाहों में एक है। यह बंदरगाह कांडला नदी पर बना है। इस बंदरगाह को महाराव श्री खेनगरजी तृतीय और ब्रिटिश सरकार के सहयोग से 19वीं शताब्दी में विकसित किया गया था।
इस बंदरगाह को विकसित करने का श्रेय महाराज श्री खेनगरजी प्रथम को जाता है। लेखक मिलबर्न ने मांडवी को कच्छ के सबसे महान बंदरगाहों में एक माना है। बड़ी संख्या में पानी के जहाजों को यहां देखा जा सकता है।
यह बंदरगाह मुंद्रा शहर से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर है। ओल्ड पोर्ट और अदनी पोर्ट यहां देखे जा सकते हैं। यह बंदरगाह पूरे साल व्यस्त रहते हैं और अनेक विदेशी पानी के जहाजों का यहां से आना-जाना लगा रहता है। दूसरे राज्यों से बहुत से लोग यहां काम करने आते हैं।
यह बंदरगाह कच्छ जिले के सबसे प्राचीन बंदरगाहों में एक है। वर्तमान में मात्र मछली पकडने के उद्देश्य से इसका प्रयोग किया जाता है। कच्छ जिले के इस खूबसूरत बंदरगाह में तटरक्षक केन्द्र और बीएसफ का जलविभाग है।
भुज विमानक्षेत्र और कांदला विमानक्षेत्र कच्छ जिले के दो महत्वपूर्ण एयरपोर्ट हैं। मुंबई से यहां के लिए नियमित फ्लाइट्स हैं।
गांधीधाम और भुज में जिले के नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं। यह रेलवे स्टेशन कच्छ को देश के अनेक हिस्सों से जोड़ते हैं।
कच्छ सड़क मार्ग द्वारा गुजरात और अन्य पड़ोसी राज्यों के बहुत से शहरों से जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन और प्राईवेट डीलक्स बसें गुजरात के अनेक शहरों से कच्छ के लिए चलती रहती हैं।
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