Loading AI tools
विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
अपस्मार या मिर्गी (वैकल्पिक वर्तनी: मिर्गी, अंग्रेजी: Epilepsy) एक तंत्रिकातंत्रीय विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर) है जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है। मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है।[1] दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है। इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर। इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पड़ना, हाथ-पांव में झटके आना। मिर्गी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है। अनेक बीमारियों में मिर्गी जैसे दौरे आ सकते हैं। मिर्गी के सभी मरीज एक जैसे भी नहीं होते। किसी की बीमारी मध्यम होती है, किसी की तेज। यह एक आम बीमारी है जो लगभग सौ लोगों में से एक को होती है।[2] इनमें से आधों के दौरे रूके होते हैं और शेष आधों में दौरे आते हैं, उपचार जारी रहता है। अधिकतर लोगों में भ्रम होता है कि ये रोग आनुवांशिक होता है पर सिर्फ एक प्रतिशत लोगों में ही ये रोग आनुवांशिक होता है। विश्व में पाँच करोड़ लोग और भारत में लगभग एक करोड़ लोग मिर्गी के रोगी हैं। विश्व की कुल जनसँख्या के ८-१० प्रतिशत लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इसका दौरा पड़ने की संभावना रहती है।[3] १७ नवम्बर को विश्व भर में विश्व मिर्गी दिवस का आयोजन होता है। इस दिन तरह-तरह के जागरुकता अभियान और उपचार कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।[4][5][6]
मिर्गी मानव सभ्यता की ज्ञात सबसे पुरानी बीमारियों में गिनी जाती है। इस रोग के अभिन्न लक्षणों और इनसे जुड़ी अनिश्चितता के कारण इसका रहस्य सदा से ही बना आया है। अधिकांशतः आत्मनियंत्रण का ह्रास आंशिक होता है, व दौरे के समय चेतनता का कुछ अंश बना रहता है। किंतु इस समय होने वाली हरकतें व अनुभूतियाँ किसी अलौकिक सत्ता के होने का इशारा करती रही हैं। रोग को वैज्ञानिक दृष्टिकोण मात्र एक शताब्दी से मिला है। लिखित भाषा में मिर्गी शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम प्राचीन मिस्र देश के भोज पत्रों में मिलता है। इन्हें पत्रों को पैपाइरस कहते हैं। चित्रलिपि के इस रूप का रोमन लिपि में रूपान्तरण है। इसमें बनी मानवकृत्ति से यह संदेश मिलता है कि एक प्रेतात्मा मिर्गी से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर ऐसा मुछ करती है।[7]
इस रोग को अनेक ऊपरी शक्तियों से जोड़कर भी देखा जाता रहा है। ये शक्तियां अच्छी और बुरी दोनों हो सकती हैं और यही तय करता है रोगी के साथ समाज का बर्ताव। उसे किसी स्थानीय देवता के प्रतिनिधि रूप में भी देखा जाता रहा है व कई बार उससे घृणा की जा सकती है, दुत्कारा जा सकता है। भारत में आज भी अनेक स्त्रियों या पुरुषों में देवी आती है जिस समय उसकी कुछ हरकतें मिर्गी से मेल खाती हैं, किन्तु वास्तव में उसका मिर्गी से कोई सम्बन्ध नहीं ज्ञात हुआ है। लोग उसके आगे श्रद्धा से सिर झुकाते हैं, पूजा करते हैं। व्यक्ति के मन की अतृप्त भावनाएंपोषित होती हैं। समाज में प्रतिष्ठा व मान्यता मिलती है। ऐसा मात्र एशिया या अफ्रीका के पिछड़े समझे जाने वाले क्षेत्रों ही नहीं देखा जाता बल्कि आधुनिक यूरोप, अमेरिका आदि महाद्वीपों में भी पुरातन काल से यही धारणा रही है कि ये अवस्था शरीर के भीतर से अपने आप नहीं आती बल्कि कोई है जो बाहर से कठपुतली की भांति नियंत्रित करता है।
प्राचीन महान भारतीय चिकित्साशास्त्र चरक संहिता में अपस्मार विस्तृत वर्णन मिलता है। इस रोग को शारीरिक रोगों के समान ही मानकर इसके अनेक कारणों की सूची भी दी गई है व औषधियों द्वारा उपचार भी सुझाया। गया है। कुछ शताब्दी ईसा पूर्व, यूनान के महान चिकित्सक हिप्पोक्रेटीज ने भी मिर्गी को दैवीय प्रकोप नहीं समझा है बल्कि अन्य रोगों के समान उसके भी शारीरिक कारण ढूंढने का उल्लेख किया हैं। यूनानी पुराण कथाओं में डेल्फी का मंदिर प्रसिद्ध जहां पुजारिन आसन पर बैठकर तंद्रा में कुछ बोलती रहती थी, जिसे भविष्यवाणी समझा जाता था। ओल्ड व न्यू टेस्टामेण्ट में भी कई स्थानों पर मिर्गी का उल्लेख आता है जहां उसे पवित्र रोग कहा गया क्योंकि वह ईश्वर प्रदत्त है। बाईबिल में उद्धरण आते हैं कि ईसा मसीह ने मिर्गी-रोगियों का उद्धार किया।[7] [क]सेन्टपॉल का का जन्म ईसा बाद की पहली शताब्दी में हुआ था। वे यहूदी थे व ईसाईयों के कट्टर विरोधी। बाईबल में प्राप्त अनेक उद्धरणों के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि उन्हें यदा-कदा मिर्गी के दौरे आते थे। [ख]
मध्यकाल के फ्रांस में जोन ऑफ आर्क नामक महानायिका को अजीब कुछ आवाजें सुनाई देने व दृश्य दिखाई देने का उल्लेख है। वैज्ञानिक शब्दावली में ये विभ्रम (हैल्यूसीनेशन) कहलाता है और मस्तिष्क के रोगों के कारण होता है।[7] संभवतः उसके मस्तिष्क के बायें गोलार्ध व टेम्पोरल व आस्सीपिटल खण्ड में विकृति रही होगी।[ग] प्राचीन संस्कृत साहित्य में महाकवि माघ ने मिर्गी की तुलना सागर से की है।[घ] शेक्सपीयर साहित्य में भी कई बार अनेक स्थलों पर मिर्गी का उल्लेख आता है। उनकी ऑथेलो नामक रचना के नायक को मिर्गी का दौरा पड़ता है तथा दो अन्य पात्र कैसियो व इयागो उसकी हंसी उड़ाते हैं।[च] उन्नीसवीं शताब्दी के महानतम लेखक फेदोर मिखाईलोविच दास्तोएवस्की को २७ वर्ष की आयु में साईबेरिया में कारावास की सजा भुगतते समय दौरे में बढ़ोत्तरी की शिकायत आयी।[छ] दास्तोएवस्ककी ने उपन्यास द ईडियट में अपनी बीमारी को नायक प्रिस मिखिन पर आरोपित कर दिया है। [ज]टेम्पोरल खण्ड से उठने वाले आंशिक जटिल (सायकोमोटर) दौरों में यह अधिकता से होता है। इसे फ्रेंच भाषा में देजा-वू कहते हैं। प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि लार्ड टेनीसन व गद्यकार चार्ल्स डिकेन्सन ने भी देजा-वू को भावनाओं में व्यक्त किया है।[झ][ट] हालैण्ड के विश्वविख्यात चित्रकार विन्सेन्ट वान गाग को भी मिर्गी रोग था उसके बावजूद वे श्रेष्ठ कोटि के कलाकार थे।
मानव मस्तिष्क कई खरब तंत्रिका कोशिकाओं से निर्मित होता है। इन कोशिकाओं की क्रियाशीलता कार्य-कलापों को नियंत्रित करती है। मस्तिष्क के समस्त कोषों में एक विद्युतीय प्रवाह होता है जो नाड़ियों द्वारा प्रवाहित होता है। ये सारे कोष विद्युतीय नाड़ियों के माध्यम से आपस में संपर्क बनाये रखते हैं, लेकिन कभी मस्तिष्क में असामान्य रूप से विद्युत का संचार होने से व्यक्ति को एक विशेष प्रकार के झटके लगते हैं और वह मूर्छित हो जाता है। ये मूर्छा कुछ सेकिंड से लेकर ४-५ मिनट तक चल सकती है।[3] मिर्गी रोग दो प्रकार का हो सकता है आंशिक तथा पूर्ण। आंशिक मिर्गी में मस्तिष्क का एक भाग अधिक प्रभावित होता है। पूर्ण मिर्गी में मस्तिष्क के दोनों भाग प्रभावित होते हैं। इसी प्रकार अनेक रोगियों में इसके लक्षण भी भिन्न-भिन्न होते हैं। प्रायः रोगी व्यक्ति कुछ समय के लिए चेतना खो देता है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार सूअर की आंतों में मिलने वाले फीताकृमि के संक्रमण से भी मिर्गी की संभावना रहती है। इस कृमि का सिस्ट यदि किसी प्रकार मस्तिष्क में पहुँच जाए तो उसके क्रियाकलापों को प्रभावित कर सकता है, जिससे मिर्गी की आशंका बढ़ जाती है।
कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम के नायक माईक एडवर्डसन के अनुसार ग्राही तंत्रों से मिलने वाले संकेतों में गड़बड़ी के कारण ही मिर्गी और पी.एम.टी.की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। नए अध्ययन में यह भी पाया कि मस्तिष्क में ग्राही तंत्रों की संख्या बहुत कम होती है लेकिन ये मानवीय चेतना के नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके अनुसार ग्राही तंत्रों की रचना के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर ली गई है, अतः इसमें गड़बड़ी के कारण होने वाली बीमारियों के इलाज के लिए दवाएं तैयार करना अब आसान हो गया है।[8]
दौरों की अवधि कुछ सेकेंड से लेकर दो-तीन मिनट तक होती है। और यदि यह दौरे लंबी अवधि तक के हों तो चिकित्सक से तत्काल परामर्श लेना चाहिए। कई मामलों में मिर्गी की स्थिति पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अलग होती है। दोनों की स्थिति में अंतर का प्रमुख कारण महिलाओं और पुरुषों में शारीरिक और सामाजिक अंतर का होना होता है। जब रोगी को दौरे आ रहे हों, या बेहोश पड़ा हो, झटके आ रहे हों तो उसे साफ, नरम जगह पर करवट से लिटाकर सिर के नीचे तकिया लगाकर कपड़े ढीले करके उसके मुंह में जमा लार या थूक को साफ रुमाल से पोंछ देना चाहिए। दौरे का काल और अंतराल समय ध्यान रखना चाहिए। ये दौरे दिखने में भले ही भयानक होते हों, पर असल में खतरनाक नहीं होते। दौरे के समय इसके अलावा कुछ और नहीं करना होता है, व दौरा अपने आप कुछ मिनटों में समाप्त हो जाता है। उसमें जितना समय लगना है, वह लगेगा ही।[2] ये ध्यान-योग्य है कि रोगी को जूते या प्याज नहीं सुंघाना चाहिए। ये गन्दे अंधविश्वास हैं व बदबू व कीटाणु फैलाते हैं। इस समय हाथ पांव नहीं दबाने चाहिए न ही हथेली व पंजे की मालिश करें क्योंकि दबाने से दौरा नहीं रुकता बल्कि चोट व रगड़ लगने का डर रहता है। रोगी के मुंह में कुछ नहीं फंसाना चाहिए। यदि दांतों के बीच जीभ फंसी हो तो उसे अंगुली से अंदर कर दें अन्यथा दांतों के बीच कटने का डर रहता है।
मिर्गी के रोगी सामान्य खाना खा सकते हैं अतएव उन्हें भोजन का परहेज नहीं रखना चाहिए। इस अवस्था में व्रत, उपवास, रोजे आदि रखने से कुछ रोगियों में दौरे बड़ सकते हैं अतः इनसे बचना चाहिए। यदि अन्न न लेना हो तो दूध या फलाहार द्वारा पेट आवश्यक रूप से भरा रखना चाहिए। मिर्गी रोगी का विवाह हो सकता है एवं वे प्रजनन भी कर सकते हैं। उनके बच्चे स्वस्थ होंगे या उन्हें मिर्गी होने की अधिक संभावना नहीं होती। गर्भवती होने पर महिला को दौरे रोकने की गोलियाँ नियमित लेते रहना चाहिये[9] क्योंकि इन गोलियों से अधिकतर मामलों में बुरा असर नहीं पड़ता। गोलियाँ खाने वाली महिला स्तनपान भी करा सकती है।
मिर्गी किसी को भी हो सकती है, बालक, वयस्क, वृद्ध, पुरुष, स्त्री, सब को। दिमाग पर जोर पड़ने से मिर्गी नहीं होती। कई लोग खूब दिमागी काम करते हैं परन्तु स्वस्थ रहते हैं। मानसिक तनाव या अवसाद से मिर्गी नहीं होती है। अच्छे भले, हंसते-गाते इंसान को भी मिर्गी हो सकती है। मेहनत करने और थकने से भी मिर्गी नहीं होती, वरन ये आराम करने वाले को भी हो सकती है। कमजोरी या दुबलेपन से मिर्गी नहीं होती बल्कि खाते पीते पहलवान को भी हो सकती है, न ही मांसाहार करने से मिर्गी होती है, बल्कि शाकाहारी लोगों को भी उतनी ही संभावना से मिर्गी हो सकती है।[2] मिर्गी का एक कारण सिर की चोट भी है। सामान्यत: महिलाओं में इसका प्रभाव प्रजनन शक्ति में देखने में आता है। हालांकि, इसका ये अर्थ नहीं होता है कि मिर्गी से पीड़ित महिला रोगियों को बच्चा नहीं होता, ऐसा बिल्कुल नहीं है।[9] मिर्गी से पीड़ित महिला रोगियों के बच्चे सामान्य होते हैं। चिकित्सकों के अनुसार जन्म के दौरान चोट लगना भी मिर्गी रोग का एक कारण होता है। मिर्गी खानदानी रोग नहीं है और बहुत कम मामलों में इसका खानदानी प्रभाव देखा जाता है जो कि एक संयोग हो सकता है। ९० प्रतिशत मामलों में खानदानी असर नहीं होता। मिर्गी के अधिकांश रोगियों का दिमाग अच्छा होता है व अनेक रोगी बुद्धिमान व चतुर होते हैं। लगभग सभी रोगी समझदार होते हैं। पागलपन व दिमागी गड़बड़ियां बहुत कम मामलों में देखी जाती हैं।[2] मनोचिकित्सकों के अनुसार इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति आम लोगों की तरह अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
मिर्गी का उपचार दवाओं और शल्य-क्रिया के द्वारा किया जा सकता है, पर इस रोग का उपचार लगातार कराने की ap रहती है। कभी-कभी इस रोग का उपचार तीन से पांच वर्ष तक चलता है। सामान्यतया मिर्गी का रोगी ३-५ वर्ष तक औषधि लेने के बाद स्वस्थ हो जाता है, परंतु यह सिर्फ ७० प्रतिशत रोगियों में ही संभव हो पाता है। अन्य ३० प्रतिशत रोगियों के लिए ऑपरेशन आवश्यक होता है। मिर्गी रोगियों में आवाज बदल जाने, चक्कर आने, जबान लड़खड़ाने की समस्या पाई जाती है। ऐसे रोगियों को सिर्फ ऑपरेशन से ही ठीक किया जा सकता है।[10] इस ऑपरेशन से पूर्व रोगी के मस्तिष्क का एम आर आई परीक्षण किया जाता है, जिसके द्वारा यह ज्ञात होता है कि मस्तिष्क का कौन-सा भाग प्रभावित है। उसके बाद शल्य-क्रिया द्वारा प्रभावित भाग को निकाल दिया जाता है। इसके बाद रोगी एक-दो साल औषधि लेने के बाद पूर्णतया स्वस्थ हो जाता है।
आधुनिक चिकित्सा-शास्त्र में ये ऑपरेशन गामा नाइफ रेडियो सर्जरी के प्रयोग से लेज़र किरण द्वारा किया जाता है, जिसमें बिना चीर-फाड़ के ही लेज़र के उपयोग से विकृत भाग को हटा दिया जाता है।[10]
क. ^ प्रभु मेरे बालक पर कृपा करो। उसे मिर्गी है। वह बहुत पीडा भोगता है। कभी वह आग में गिर जाता है तो कभी पानी में (मेथ्यू १७ः१५)
एक मसीहा ने लिखा मैंने ईश्वर के रहने की तमाम जगहों को इतनी सी देर में देख लिया। जितनी देर में एक घडा पानी भी खाली नहीं किया जा सकता।
ख. ^ एक पत्र में उन्होंने लिखा कि उन्हें एक अजीब असामान्य से दौरे में आध्यात्मिक अनुभूतियाँ हुई थीं - मैं नहीं जानता कि मैं शरीर के अन्दर था या बाहर। मुझे ईश्वर ने कुछ पवित्र रहस्य बताये कि जिन्हें होंठ दुहरा नहीं सकते। सेन्टपाल के जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना थी उनका धर्मान्तरण। लगभग ३० वर्ष की उम्र में वे येरूशलम से दमिश्क पैदल जा रहे थे। उद्देश्य था दमिश्क के ईसाईयों को सजा देना। मार्ग में अजीब घटा। एक तीव्र प्रकाश हुआ। वे जमीन पर गिर पडे। उन्हें कुछ आवाजें सुनाई दीं जो ईसा मसीह के समान थी। वे उठे परन्तु अन्धे हो चुके थे। दमिश्क पहुंचने के तीन दिन बाद उनकी रोशनी फिर लौटी। उनका मन बदल चुका था। ईसाई धर्म अंगीकार कर लिया। अनेक न्यूरालाजिस्ट ने सेन्टपाल के जीवन पर उपलब्ध ईसाई धर्म साहित्य का गहराई से अध्ययन किया है तथा वे मत के हैं कि सेन्टपाल को एपिलेप्सी का दौरा आया होगा। उनके धर्मान्तरण में मिर्गी का कुछ प्रभाव जरूर था।
ग. ^ जोन ऑफ़ आर्क में एक बार लिखा मुझे दायीं होर से, गिरजाघर की तरफ से आवाज आयी। ईश्वर का आदेश था। आवाज के साथ सदैव प्रकाश भी आता है। प्रकाश की दिशा भी वहीं होती है जो ध्वनि की। अनुमान लगा सकते हैं कि उसके मस्तिष्क के बायें गोलार्ध व टेम्पोरल व आस्सीपिटल खण्ड में विकृति रही होगी।
घ. ^ दोनों भूमि पर पडे हैं, गरजते हैं, भुजाएं हिलाते हैं व फेन पैदा करते हैं। (शिशुपाल वध - ७वीं शताब्दी ईसा पश्चात्)। : महाकवि माघ
च. ^ जूलियस सीजर का एक अंश उद्धृत है -
छ. ^ डायरी में उन्हें अजीब, भयावह, रोचक पूर्वाभास होता है, हर्षातिरेक का। देखो हवा में कैसा शोर भर गया है। स्वर्ग मानों धरती पर गिरा आ रहा है और उसने मुझे समाहित कर लिया है। मैंने ईश्वर को छू लिया है। पैगम्बर साहब को होने वाले रुहानी इलहाम की भी ऐसी ही अवस्था थी।
ज. ^ वह मॉस्को की सड़कों पर बेमतलब घूमता रहता है और बताता है कभी-कभी सिर्फ पांच-छः सेकण्ड के लिये मुझे शाश्वत संगीत की अनुभूति होती है। सब कुछ निरपेक्ष और निर्विवाद लगता है भयावह रूप से पारदर्शी लगता है। कभी दिमाग में अचानक आग लग उठती है। बादलों की सी तेजी से जीवन की चैतन्यता का प्रभाव दस गुना बढ़ जाता है। फिर पता नहीं क्या होता है।
झ. ^ प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि लार्ड टेनीसन व गद्यकार चार्ल्स लिखित निम्न अंश देजा वू की भावना को अभिव्यक्त करते हैं -
ट. ^ हम सब लोगों के दिल दिमाग पर कभी-कभी एक अजीब सी अनुभूति हावी होती है कि जो कुछ कहा जा रहा है या किया जा रहा है वह सब किसी अनजाने सुदूर अतीत में पहले भी कहा जा चुका है या किया जा चुका है तथा यह भी कि चारों ओर जो वस्तुएें परिस्थितियाँ चेहरे विद्यमान हैं वे किसी धुंधले भूतकाल में पहले भी घटित हो चुकी हैं तथा यह भी यकायक याद हो आता है कि अब आगे क्या कहा जाएगा।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.