त्रिआयामी होलोग्राफी (अंग्रेज़ी:थ्री डी होलोग्राफ़ी) एक स्टेटिक किरण प्रादर्शी प्रदर्शन युक्ति होती है। यह शब्द यूनानी, ὅλος होलोस यानि पूर्ण + γραφή ग्राफ़ी यानि लेखन या आरेखन से निकला है। इस तकनीक में किसी वस्तु से निकलने वाले प्रकाश को रिकॉर्ड कर बाद में पुनर्निर्मित किया जाता है, जिससे उस वस्तु के रिकॉर्डिंग माध्यम के सापेक्ष छवि में वही स्थिति प्रतीत होती है, जैसी रिकॉर्डिंग के समय थी। ये छवि देखने वाले की स्थिति और ओरियन्टेशन के अनुसार वैसे ही बदलती प्रतीत होती है, जैसी कि उस वस्तु के उपस्थित होने पर होती। इस प्रकार अंइकित छवि एक त्रिआयामि चित्र प्रस्तुत करती है और होलोग्राम कहलाती है।[1] होलोग्राम का आविष्कार ब्रिटिश-हंगेरीयन भौतिक विज्ञानी डैनिस गैबर ने सन १९४७ में किया था, जिसे सन् १९६० में और विकसित किया गया। इसके बाद इसे औद्योगिक उपयोग में लाया गया। इसका उपयोग पुस्तकों के कवर, क्रेडिट कार्ड आदि पर एक छोटी सी रूपहली चौकोर पट्टी के रूप में दिखाई देता है। इसे ही होलोग्राम कहा जाता है। यह देखने में त्रिआयामी छवि या त्रिबिंब प्रतीत होती है, किन्तु ये मूल रूप में द्विआयामी आकृति का ही होता है। इसके लिये जब दो द्विआयामी आकृतियों को एक दूसरे के ऊपर रखा जाता जाता है। तकनीकी भाषा में इसे सुपरइंपोजिशन कहते हैं। यह मानव आंख को गहराई का भ्रम भी देता है।
होलोग्राम के निर्माण में अतिसूक्ष्म ब्यौरे अंकित होने आवश्यक होते हैं, अतः इसको लेजर प्रकाश के माध्यम से बनाया जाता है। लेजर किरणें एक विशेष तरंगदैर्घ्य की होती हैं। क्योंकि होलोग्राम को सामान्य प्रकाश में देखा जाता है, अतः ये विशेष तरंगदैर्घ्य वाली लेजर किरणें होलोग्राम को चमकीला बना देती हैं। होलोग्राम पर चित्र प्राप्त करने के लिए दो अलग अलग तरंगदैर्घ्य वाली लेजर किरणों को एक फोटोग्राफिक प्लेट पर अंकित किया जाता है। इससे पहले दोनों लेजर किरणें एक बीम स्प्रैडर से होकर निकलती हैं, जिससे प्लेट पर लेज़र किरणों का प्रकाश फ्लैशलाइट की भांति जाता है और चित्र अंकित हो जाता है। इससे एक ही जगह दो छवियां प्राप्त होती हैं। यानि एक ही आधार पर लेजर प्रकाश के माध्यम से दो विभिन्न आकृतियों को इस प्रकार अंकित किया जाता है, जिससे देखने वाले को होलोग्राम को अलग-अलग कोण से देखने पर अलग आकृति दिखाई देती हैं।[1]
मानव आंख द्वारा जब होलोग्राम को देखा जाता है तो वह दोनों छवियों को मिलाकर मस्तिष्क में संकेत भेजती हैं, जिससे मस्तिष्क को उसके त्रिआयामी होने का भ्रम होता है। होलोग्राम तैयार होने पर उसको चांदी की महीन प्लेटों पर मुद्रित किया जाता है। ये चांदी की पर्तें डिफ्लैक्टेड प्रकाश से बनाई जाती हैं। होलोग्राम की विशेषता ये है कि इसकी चोरी और नकल करना काफी जटिल है, अतः अपनी सुरक्षा और स्वयं को अन्य प्रतिद्वंदियों से अलग करने के लिए विभिन्न कम्पनियां अपना होलोग्राम प्रयोग कर रही हैं। होलोग्राम के प्रयोग से नकली उत्पाद की पहचान सरलता से की जा सकती है। भारत में होलोग्राम की एक बड़ी कंपनी होलोस्टिक इंडिया लिमिटेड है।
नकली दवाओं की पहचान करने के लिए भारत की प्रमुख औषधि कंपनी ने ग्लैक्सो ने बुखार कम परने वाली औषधि क्रोसीन को एक त्री-आयामी होलोग्राम पैक में प्रस्तुत किया है।[2] यह परिष्कृत थ्री-डी होलोग्राम भारत में पहला एवं एकमात्र पीड़ानाशक एंटी पायेरेटिक ब्रांड है। होलोग्राम का प्रयोग करने वाली प्रसिद्ध भारतीय कंपनियों में हिन्दुस्तान यूनीलीवर, फिलिप्स इंडिया, अशोक लेलैंड, किर्लोस्कर, हॉकिन्स जैसी कंपनियां शामिल है। इसके अलावा रेशम और सिंथेटिक कपड़ा उद्योग के लिए होलोग्राफिक धागों के उत्पादन की योजना भी प्रगति पर है1 होलोग्राम कम होता खर्चीला है और इसके रहते उत्पादों के साथ छेड़छाड़ की जाये तो बड़ी सरलता से उसका पता लग जाता है। इसकी मदद से उत्पाद की साख और विशिष्टता बनी रहती है।[3] इसके अलावा मतदाता पहचान पत्र आदि में भी थ्री-डी होलोग्राम का प्रयोग किया जाता है। इसके लिये भारतीय निर्वाचन आयोग ने भी निर्देश जारी किये हैं। भारत के मतदाता पहचान पत्रों में भी होलोग्राम का प्रयोग होता है।[4] इसके अलावा विद्युत आपूर्ति मीटरों पर बिजली की चोरी रोकने हेतु भी होलोग्राम का प्रयोग होता है।[5]
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
Wikiwand in your browser!
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.