हांगकांग का इतिहास
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इतिहास
सारांश
परिप्रेक्ष्य
हांगकांग का इतिहास हांगकांग को ब्रिटेन से चीन ने सन् १८४३ मे खरीदा गया था। चीन ने हांगकांग को ब्लैक वार जीतने के बाद लिया था। उसके बाद न्यू कोव लंच और लैंडो ने उसे ९९ वर्ष कि लीस पर छोड़ा था। उसके बाद द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जापान ने उसे ले लिया था। बाद मे जापानी सैनिक मारे गये थे। जापान हार गया था व हांगकांग मे क्रांति आ गयी थी।
चीन में, युद्ध के बाद, कुओमिंटैंग और कम्युनिस्ट हॉङ्ग कॉङ्ग प्रवासन के खिलाफ लड़े थे। बाद में कई कम्युनिस्ट सरकार में हांगकांग स्थानांतरित हो गया। १९ दिसंबर, १९८४ को चीन और ब्रिटेन के बीच हांगकांग ट्रांसफर एक्सचेंज (चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा) पर हस्ताक्षर किए गए। हांगकांग में हिंसक प्रदर्शनों और शांति का दौर खत्म होता नहीं दिख रहा है। विवादित प्रत्यर्पण बिल विरोध से शुरू हुए इन प्रदर्शनों को दो महीने से ज्यादा का वक्त हो का है। अब लोग लोकतंत्र की मांग कर रहे हैं। दो दिन से प्रदर्शनकारियों हांगकांग एयरपोर्ट को अपने कब्जे में ले रखा है। उधर चीन की सरकार प्रदर्शनकारियों की निंदा की है और यह भी कहा है कि वह चुप नहीं बैठेगा। हालांकि, यह सब ऐसे ही नहीं हो रहा है। इसमें कई महत्वपूर्ण प्रसंग हैं, जो दशकों पुराने हैं।
९९ साल की लीज पर किया गया था चीन के हवाले वास्तव में, हांगकांग अन्य चीनी शहरों से काफी अलग है। १५० साल के ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन के बाद हांगकांग को ९९ साल की लीज पर चीन को सौंप दिया गया। हांगकांग द्वीप पर १८४२ से ब्रिटेन का नियंत्रण रहा। जबकि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान का इस पर अपना नियंत्रण था। यह एक व्यस्त व्यापारिक बंदरगाह बन गया और १९५० में विनिर्माण का केंद्र बनने के बाद इसकी अर्थव्यवस्था में बड़ा उछाल आया। चीन में अस्थिरता, गरीबी या उत्पीड़न से भाग रहे लोग इस क्षेत्र की ओर रुख करने लगे।
१९८४ में हुआ था सौदा पिछली सदी के आठवें दशक की शुरुआत में जैसे-जैसे ९९ साल की लीज की समयसीमा पास आने लगी ब्रिटेन और चीन ने हांगकांग के भविष्य पर बातचीत शुरू कर दी। चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने तर्क दिया कि हांगकांग को चीनी शासन को वापस कर दिया जाना चाहिए। दोनों पक्षों ने १९८४ में एक सौदा किया कि एक देश, दो प्रणाली के सिद्धांत के तहत हांगकांग को १९९७ में चीन को सौंप दिया जाएगा। इसका मतलब यह था कि चीन का हिस्सा होने के बाद भी हांगकांग ५० वर्षों तक विदेशी और रक्षा मामलों को छोड़कर स्वायत्तता का आनंद लेगा।
विवाद की जड़ १९९७ में जब हांगकांग को चीन के हवाले किया गया था तब बीजिंग ने एक देश-दो व्यवस्था की अवधारणा के तहत कम से कम २०४७ तक लोगों की स्वतंत्रता और अपनी कानूनी व्यवस्था को बनाए रखने की गारंटी दी थी। लेकिन २०१४ में हांगकांग में ७९ दिनों तक चले अंब्रेला मूवमेंट के बाद लोकतंत्र का समर्थन करने वालों पर चीनी सरकार कार्रवाई करने लगी। विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों को जेल में डाल दिया गया। आजादी का समर्थन करने वाली एक पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
बीजिंग का कब्जा हांगकांग का अपना कानून और सीमाएं हैं। साथ ही खुद की विधानसभा भी है। लेकिन हांगकांग में नेता, मुख्य कार्यकारी अधिकारी को १,२०० सदस्यीय चुनाव समिति चुनती है। समिति में ज्यादातर बीजिंग समर्थक सदस्य होते हैं। क्षेत्र के विधायी निकाय के सभी ७० सदस्य, विधान परिषद, सीधे हॉङ्ग कॉङ्ग के मतदाताओं द्वारा नहीं चुने जाते हैं। बिना चुनाव चुनी गईं सीटों पर बीजिंग समर्थक सांसदों का कब्जा रहता है।
चीनी पहचान से नफरत हांगकांग में ज्यादातर लोग चीनी नस्ल के हैं। चीन का हिस्सा होने के बावजूद हांगकांग के अधिकांश लोग चीनी के रूप में पहचान नहीं रखना चाहते हैं। खासकर युवा वर्ग। केवल ११ फीसद खुद को चीनी कहते हैं। जबकि ७१ फीसद लोग कहते हैं कि वे चीनी नागरिक होने पर गर्व महसूस नहीं करते हैं। यही कारण है कि हांगकांग में हर रोज आजादी के नारे बुलंद हो रहे हैं और प्रदर्शनकारियों ने चीन समर्थित प्रशासन की नाक में दम कर रखा है।
हांगकांग में हिंसक प्रदर्शनों और शांति का दौर खत्म होता नहीं दिख रहा है। विवादित प्रत्यर्पण बिल विरोध से शुरू हुए इन प्रदर्शनों को दो महीने से ज्यादा का वक्त हो का है। अब लोग लोकतंत्र की मांग कर रहे हैं। दो दिन से प्रदर्शनकारियों हॉङ्ग कॉङ्ग विमानपत्तन को अपने कब्जे में ले रखा है। उधर चीन की सरकार प्रदर्शनकारियों की निंदा की है और यह भी कहा है कि वह चुप नहीं ठेगा। हालांकि, यह सब ऐसे ही नहीं हो रहा है। इसमें कई महत्वपूर्ण प्रसंग हैं, जो दशकों पुराने हैं।
९९ साल की लीज पर किया गया था चीन के हवाले वास्तव में, हांगकांग अन्य चीनी शहरों से काफी अलग है। १५० साल के ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन के बाद हांगकांग को ९९ साल की लीज पर चीन को सौंप दिया गया। हांगकांग द्वीप पर १८४२ से ब्रिटेन का नियंत्रण रहा। जबकि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान का इस पर अपना नियंत्रण था। यह एक व्यस्त व्यापारिक बंदरगाह बन गया और १९५० में विनिर्माण का केंद्र बनने के बाद इसकी अर्थव्यवस्था में बड़ा उछाल आया। चीन में अस्थिरता, गरीबी या उत्पीड़न से भाग रहे लोग इस क्षेत्र की ओर रुख करने लगे।
१९८४ में हुआ था सौदा पिछली सदी के आठवें दशक की शुरुआत में जैसे-जैसे ९९ साल की लीज की समयसीमा पास आने लगी ब्रिटेन और चीन ने हांगकांग के भविष्य पर बातचीत शुरू कर दी। चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने तर्क दिया कि हांगकांग को चीनी शासन को वापस कर दिया जाना चाहिए। दोनों पक्षों ने १९८४ में एक सौदा किया कि एक देश, दो प्रणाली के सिद्धांत के तहत हांगकांग को १९९७ में चीन को सौंप दिया जाएगा। इसका मतलब यह था कि चीन का हिस्सा होने के बाद भी हांगकांग ५० वर्षों तक विदेशी और रक्षा मामलों को छोड़कर स्वायत्तता का आनंद लेगा।
विवाद की जड़ १९९७ में जब हांगकांग को चीन के हवाले किया गया था तब बीजिंग ने एक देश-दो व्यवस्था की अवधारणा के तहत कम से कम २०४७ तक लोगों की स्वतंत्रता और अपनी कानूनी व्यवस्था को बनाए रखने की गारंटी दी थी। लेकिन २०१४ में हॉङ्ग कॉङ्ग में ७९ दिनों तक चले अंब्रेला मूवमेंट के बाद लोकतंत्र का समर्थन करने वालों पर चीनी सरकार कार्रवाई करने लगी। विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों को जेल में डाल दिया गया। आजादी का समर्थन करने वाली एक पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
बीजिंग का कब्जा हांगकांग का अपना कानून और सीमाएं हैं। साथ ही खुद की विधानसभा भी है। लेकिन हांगकांग में नेता, मुख्य कार्यकारी अधिकारी को १,२०० सदस्यीय चुनाव समिति चुनती है। समिति में ज्यादातर बीजिंग समर्थक सदस्य होते हैं। क्षेत्र के विधायी निकाय के सभी ७० सदस्य, विधान परिषद, सीधे हांगकांग के मतदाताओं द्वारा नहीं चुने जाते हैं। बिना चुनाव चुनी गईं सीटों पर बीजिंग समर्थक सांसदों का कब्जा रहता है।
चीनी पहचान से नफरत हांगकांग में अधिकतर लोग चीनी नस्ल के हैं। चीन का हिस्सा होने के बावजूद हांगकांग के अधिकांश लोग चीनी के रूप में पहचान नहीं रखना चाहते हैं। खासकर युवा वर्ग। केवल ११ फीसद खुद को चीनी कहते हैं। जबकि ७१ फीसद लोग कहते हैं कि वे चीनी नागरिक होने पर गर्व महसूस नहीं करते हैं। यही कारण है कि हांगकांग में हर रोज आजादी के नारे बुलंद हो रहे हैं और प्रदर्शनकारियों ने चीन समर्थित प्रशासन की नाक में दम कर रखा है।
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