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औपनिवेशिक जेल विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी, जो कि मुख्य भारत की भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी, व सागर से भी हजार किलोमीटर दुर्गम मार्ग पड़ता था। यह काला पानी के नाम से कुख्यात थी। कालापानी शब्द अंडमान के बंदी उपनिवेश (उपनिवेश मतलब उपनिवास या बस्ती, कालोनी) के लिए देश निकाला देने का पर्याय है | कालापानी का भाव सांस्कृतिक शब्द काल से बना है जिसका अर्थ होता है समय अथवा मृत्यु| अर्थात कालापानी शब्द का अर्थ मृत्यु जल या मृत्यु के स्थान से है जहाँ से कोई वापस नहीं आता है| देश निकालों के लिए कालापानी का अर्थ बाकी बचे हुए जीवन के लिए कठोर और अमानवीय यातनाएँ सहना था| कालापानी यानि स्वतंत्रता सेनानियों उन अनकही यातनाओं और तकलीफ़ों का सामना करने के लिए जीवित नरक में भेजना जो मौत की सजा से भी बदतर था | दूसरे अधिकतर समुद्रों के पानी का रंग नीला होता है पर अंडमान द्वीप के आसपास के समुद्र के पानी का रंग गहरा काला है जो कि एक विशिष्ट बात है इसलिए भी इस द्वीप को काले पानी का द्वीप या काला पानी कहते हैं ।
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सेलुलर जेल | |
सेलुलर जेल्, अंदमान | |
निर्माण सूचना | |
---|---|
नाम | सेलुलर जेल |
स्थिति | पोर्ट ब्लेयर, अंडमान |
देश | भारत |
निर्देशांक | 11.675°N 92.748°E |
वास्तुकार | |
उपभोक्ता | ब्रिटिश सरकार |
निर्माण आरंभ | 1896 |
पूर्ण | 1906 |
लागत | रु. 517,352[1] |
शैली | कोशिकीय, Pronged |
यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी, जो कि मुख्य भारत भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी, व सागर से भी हजार किलोमीटर दुर्गम मार्ग पड़ता था। यह काला पानी के नाम से कुख्यात थी।
अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सैनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह इस जेल की नींव 1897 में रखी गई थी। इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं। इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल जोल को रोकना था। आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं। कारागार की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं। यहां एक संग्रहालय भी है जहां उन अस्त्रों को देखा जा सकता है जिनसे स्वतंत्रता सैनानियों पर अत्याचार किए जाते थे।
अंडमान में उपनिवेश (उपनिवास बस्ती या कालोनी) स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य समुद्री तूफानों में फॅसे जहाजों को सुरक्षित स्थान उपलब्ध कराना था| ये सोचा गया की एक स्थाई बस्ती ही समुद्री जहाजों की सुरक्षा का एकमात्र समाधान है| इन द्वीपों में बस्ती बसाने का पहला प्रयास १७८९ में किया गया जब कैप्टेन आर्चिबाल्ड ब्लेयर ने चाथम द्वीप में एक बस्ती बसाई| इस बस्तीको बाद में उत्तरी अंडमान में पोर्ट कॉर्नवालिस स्थानांतरित कर दिया गया क्योंकि उस स्थान को नौसेनिक दृस्टि से उपयुक्त समझा गया| बस्ती बसाने का यह प्रयास सफल नहीं रहा और इसे १७९६ में समाप्तः कर दिया गया|
६० वर्षों के बाद पुनः इन द्वीपों में समुद्री जहाजों की सुरक्षा हेतु स्थाई बस्ती बसाने का सवाल आया परन्तु बंदी उपनिवेश की स्थापना वास्तव में १८५७ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के देशभक्तों को जिला वतन करने के लिए स्थापित किया गया|
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के २०० स्वतंत्रता सेनानियों के पहले जत्थे के अंडमान तथा निकोबार तथा निकोबार द्वीपों में १० मार्च १८५८ के आगमन के साथ बंदी उपनिवेश की शुरुआत हुई| सभी लम्बी अवधि और आजीवन कारावास की सजा पाए देशभक्तों जो किसी कारणवश बर्मा और भारत में मृत्यु दण्ड से बच गए थे, उन्हें अंडमान के बंदी उपनिवेश में भेजा गया|
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात वहाबी विद्रोह, मणिपुर विद्रोह, आदि से जुड़े सेनानियों और अन्य देशभक्तों को अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने के जुर्म में अंडमान के बंदी उपनिवेश भेजा गया|
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