संगम 1964 में बनी हिन्दी भाषा की रूमानी फिल्म है। इसका निर्देशन राज कपूर ने किया और इसमें वो स्वयं वैजयंतीमाला और राजेन्द्र कुमार के साथ मुख्य चरित्रों को निभाए हैं। यह राज कपूर की पहली रंगीन फिल्म थी इसे कभी-कभी राज कपूर की शानदार और प्रसिद्ध रचना भी माना जाता है, क्योंकि यह उनके सबसे अच्छे कामों में से एक है। जारी होने पर ये वर्ष की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी थी। यह अत्यंत लंबी होने के लिये भी प्रतिष्ठित थी जिसके कारण इसे सिनेमाघर में दो विराम (interval) के साथ दिखाया गया था।[1]

सामान्य तथ्य संगम, निर्देशक ...
संगम
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संगम का पोस्टर
निर्देशक राज कपूर
लेखक इंदर राज आनंद
निर्माता राज कपूर
अभिनेता राज कपूर,
वैजयंतीमाला,
राजेन्द्र कुमार
संपादक राज कपूर
संगीतकार शंकर-जयकिशन
प्रदर्शन तिथियाँ
18 जून, 1964
लम्बाई
238 मिनट
देश भारत
भाषा हिन्दी
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संक्षेप

सुन्दर (राज कपूर), गोपाल (राजेन्द्र कुमार) और राधा (वैजयंतीमाला) बचपन से दोस्त रहते हैं। बड़े होने के बाद राधा से सुन्दर प्यार करने लगता है, पर वो गोपाल को पसंद करते रहती है। जब सुन्दर अपने प्यार के बारे में गोपाल को बताता है तो गोपाल अपने प्यार को मन में ही दबा देता है।

सुन्दर भारतीय वायुसेना में शामिल हो जाता है और उसे कश्मीर में एक मिशन पर जाना होता है। वो जाने से पहले गोपाल से वादा लेता है कि वो किसी को भी राधा और उसके बीच नहीं आने देगा और ऐसा बोल कर वो चले जाता है। इसके बाद उसका विमान नष्ट होने की खबर आती है, जिससे सभी मान लेते हैं कि उसकी मौत हो चुकी है। सुन्दर के मर जाने के बाद, राधा से अपने दिल की बात कहने के लिए गोपाल एक प्रेम पत्र लिखता है, और वो उस पत्र को लेकर अपने पास कहीं छुपा लेती है। दोनों शादी करने की सोचते रहते हैं कि तभी सुन्दर पूरी तरह सुरक्षित और अच्छे हालत में वापस आ जाता है। सुन्दर को देख कर गोपाल फिर से अपने प्यार को मन में ही दबा लेता है। सुन्दर वापस आने के बाद वो राधा को शादी के लिए मनाने की कोशिश करते रहता है और बाद में उन दोनों की शादी भी हो जाती है।

शादी के बाद सुन्दर बहुत खुश रहता है, क्योंकि उसका सपना अब हकीकत बन चुका है। राधा भी अपने दिमाग से गोपाल को निकाल देती है और उससे बोलती है कि वो उसके और उसके पति से दूर रहे, ताकि उसके पास रहने से उसे कष्ट होता है। दोनों की शादीशुदा जिंदगी अच्छी चल रही होती है कि एक दिन सुन्दर को बिना दस्तखत किया हुआ एक प्रेम पत्र मिलता है, जो गोपाल ने लिखा था। उस प्रेम पत्र को देख कर सुन्दर के पैरों तले जमीन खिसक जाती है, उसे लगता है कि राधा का किसी और के साथ चक्कर चल रहा है। वो बंदूक निकाल लेता है और उससे उसके प्रेमी का नाम पुछने लगता है, जिससे कि वो उस प्रेमी को मार सके, पर राधा उसे बताने से इंकार कर देती है।

सुन्दर के मन में उस पत्र को लिखने वाले की खोज करने का जुनून सवार रहता है और उसके कारण राधा का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। वो गोपाल से इस बारे में मदद मांगती है। सुन्दर भी उस लेखक को ढूंढने में मदद के लिए गोपाल से मदद मांगने जाता है। तीनों एक ही जगह पर मिलते हैं और गोपाल ये मान लेता है कि वो पत्र उसी ने राधा के लिए लिखा था। गोपाल को इस समस्या से बाहर निकालने का कोई रास्ता नहीं सूझता है और वो सुन्दर की बंदूक ले कर खुद को गोली मार लेता है। अंत में राधा और सुन्दर वापस एक हो जाते हैं।

मुख्य कलाकार

संगीत

सभी शंकर-जयकिशन द्वारा संगीतबद्ध।

अधिक जानकारी क्र॰, शीर्षक ...
क्र॰शीर्षकगीतकारगायकअवधि
1."ओ महबूबा तेरे दिल"हसरत जयपुरीमुकेश5:04
2."बोल राधा बोल"शैलेन्द्रमुकेश, वैजयंतीमाला4:21
3."ये मेरा प्रेम पत्र"हसरत जयपुरीमोहम्मद रफी4:25
4."मैं का करूँ राम"हसरत जयपुरीलता मंगेश्कर3:45
5."ओ मेरे सनम"शैलेन्द्रलता मंगेश्कर, मुकेश4:28
6."हर दिल जो प्यार करेगा"शैलेन्द्रमुकेश, लता मंगेश्कर, महेन्द्र कपूर4:45
7."दोस्त दोस्त ना रहा"शैलेन्द्रमुकेश5:46
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नामांकन और पुरस्कार

अधिक जानकारी पुरस्कार, श्रेणी ...
पुरस्कार श्रेणी नामित व्यक्ति नतीजा टिप्पणी सन्दर्भ
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म राज कपूर नामित आर॰ के॰ फिल्म्स की ओर से
सर्वश्रेष्ठ निर्देशक जीत
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता नामित
सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री वैजयंतीमाला जीत
सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता राजेन्द्र कुमार नामित
सर्वश्रेष्ठ कथा इंदर राज आनंद
सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक शंकर-जयकिशन
सर्वश्रेष्ठ गीतकार शैलेन्द्र "दोस्त दोस्त ना रहा" के लिये
सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक मुकेश
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सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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