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भारत के वायसराय (१८७६-१८८०) विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
लार्ड लिटन भारत का वाइसराय था। वे ई.स. १८७६-१८८० तक भारतके वायसरॉय रहे. लिटन साम्राज्यवादी सोच का था.उसको ब्रिटिश भारत का सबसे अधिक प्रतिक्रियावादी गवर्नर जनरल माना गया है। उसका उद्देश्य उभरती भारतीय राष्ट्रवाद की भावना का दमन करना था.भारत में ब्रिटिशसत्ता को मजबूत करने के लिए उसने यहां की जनता पर अन्याय, अत्याचार किए.१८५७ के विद्रोव के बाद इंग्लैंड की रानी विक्टोरिया ने भारतीयों को आश्वासन दिया था कि वो भर्तियोकी और उनके हितों की रक्षा करेंगी परंतु ब्रिटिश शासन ने रानी विक्टोरिया के इस आश्वासन को अपने पैरोतले रोंद दिया. १८७६ से १८८० तक भारतीय जनतापर अन्याय और अत्याचार की उच्चंक गठा.१८७६ से १८७८ तक भारत में भीषण सूखा पड़ा था. भारतिय जनता पीड़ा में थी लेकिन वाइसरॉय लिटनने इस सूखे की समस्या पर कुछ कड़े कदम नहीं उठाए,जनता की मदत नहीं की कोई उपाय योजना नहीं की, दिल्ली में राजशाही दरबार भराकर लिटन ने सारा आर्थिक बोजा भारतीयों पर डाला.
व्हाईसरॉय रोबर्ट बुलेवियर लिटन | |
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पद बहाल १८७६ – १८८० | |
राजा | विक्टोरिया एडवर्ड VII |
पूर्वा धिकारी | द अर्ल ऑफ नॉर्थ ब्रुक |
उत्तरा धिकारी | लॉर्ड रिपन |
जन्म | ८ नोव्हेंबर १८३१ |
वह अप्रैल, १८७६ में वाइसरॉय होकर भारत आया और सन् १८८० तक इस पद पर काम करता रहा। लिटन के वाइसरॉय नियक्त होने पर बहुत लोगों को आश्चर्य हो रहा था क्योंकि उसे शासन का कोई विशेष अनुभव नहीं था, यद्यपि अपनी नीतिज्ञता का पचिय वह कई बार दे चुका था। वह अंग्रेजी भाषा का अच्छा विद्वान् था। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बीकंसफ़ील्ड ने लिटन को मध्य एशिया की जटिल समस्या को सुलझाने के लिए विशेष रूप से भारत भेजा था। सन् १८७७ में लिटन ने दिल्ली में एक विशाल दरबार किया जिसमें विक्टोरिया को 'भारत की साम्राज्ञी' घोषित किया गया। इसी समय दक्षिण में भीषण अकाल था जिसमें लाखों व्यक्ति भूखों मर गए। पश्चिमोत्तर प्रांत तथा मध्य प्रांत में भी खाद्यान्न की कमी थी। भारतीयों के इस दारुण दु:ख को दूर करने के लिए लिटन ने कुछ प्रयत्न अवश्य किया पर ऐसे कष्ट के समय दिल्ली दरबार में लाखों रुपया उड़ाना तथा अन्नंद मनाना लोगों को पंसद नहीं आया।
इसके अतिरिक्त, सरकार की नीति से भारतीय जनता असंतुष्ट थी। भारतीय समाचापत्रों में सरकार की कटु आलोचना हो रही थी। सन् १८७८ में लिटन ने वर्नाक्युलर-प्रेस-ऐक्ट पास कर दिया जिसके द्वारा देशी भाषाओं में प्रकाशित होनेवाले समाचारपत्रों पर कुछ प्रतिबंध लगा दिए गए और उनकी स्वतंत्रता छिन गई। मध्य एशिया की समस्या सुलझने के बजाय और उलझ गई। लिटन ने जिस नीति से काम लिया उसका फल हुआ सन् १८७८ का द्वितीय अफ़गानन युद्ध। युद्ध के फलस्वरूप अफ़गानिस्तान छिन्न भिन्न हो गया। लिटन की अफ़गान नीति की हर तरफ से तीव्र आलोचना की गई। उसका मुख्य आलोचक ग्लैड्सटन था जो बाद में प्रधानमंत्री हो गया, तभी लिटन को अपना पद छोड़ना पड़ा।
वाईसरॉय लीटन के भारतीयों पर किए गए अन्न्याय और अत्याचार के प्रसंग-
*१८७६ से १८७८ तक भारत में भीषण सूखा पड़ा था. उसपर लिटन ने कोई उपाययोजना नहीं की, उसने दिल्ली में राजशाही दरबार भराकर इस सूखे के नुुकसान का आर्थिकबोझ भारतीयों पर डाला .
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