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लगान २००१ में बनी हिन्दी चलचित्र है। लगान (उर्फ़ लगान: वन्स अपॊन अ टाइम इन इन्डीया) हिन्दी चलचित्र ई.स.२००१ में भारत में प्र्स्तुत की गई थी। यह फ़िल्म आशुतोष गौरीकर की मूल कथा पर आधारित है, जिसका उन्होनेही दिग्दर्शन किया है। आमीर ख़ान इसके सहनिर्माता होने के अलावा मुख्य अभिनेता भी है। साथ मे ग्रेसी सींह, रचेल शॅली और पॉल ब्लॅकथॉर्न ने पात्र निभाये है।
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लगान | |
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लगान - वन्स अपॉन ए टाइम इन इन्डिया का पोस्टर | |
निर्देशक | आशुतोष गोवारिकर |
लेखक | आशुतोष गोवारिकर |
पटकथा | आशुतोष गोवारिकर |
निर्माता | आमिर ख़ान, रीना दत्ता |
अभिनेता |
आमिर ख़ान, ग्रेसी सिंह, रैचेल शैली, पॉल ब्लैकथॉर्न, सुहासिनी मुलय, कुलभूषण खरबंदा, रघुवीर यादव, राजेन्द्र गुप्ता |
संगीतकार | ए आर रहमान |
प्रदर्शन तिथि |
१५ जून २००१ |
लम्बाई |
३ घंटे ४४ मिनट २९ सेकंड |
देश | भारत |
भाषायें |
हिन्दी अवधी भोजपुरी अंग्रेज़ी |
लागत | २५ करोड रुपये |
फ़िल्म रानी विक्टोरिया के ब्रिटानी राज की एक सूखा पीडित गांव के किसानो पर कठोर ब्रीटानी लगान की कहानी है। जब किसान लगान कम करने की मांग कर्ते हैं, तब ब्रिटानी अफ़्सर एक प्रस्ताव देतें है। अगर क्रिकॅट के खेल में उन्को गांव वासिओं ने पराजित किया तो लगान मांफ स्वीकारने के बाद गांव निवासीऒं पर क्या बीतती है, यही इस फ़िल्म का चरित्र है।
इस फ़िल्म की समालोचनात्मक सराहना के अलावा इस को कई देसी और विदेशी पुरस्कार भी मिले हैं। ऑस्कर के "सर्वोत्तम अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म" पुरस्कार के लिये नियुक्त की गई यह तीसरी हिन्दी फ़िल्म है। इससे पहले "मधर इंडिया" और "सलाम बॉम्बे" नियुक्त किये जा चुके हैं। ई.स.२००१ की यह बहुत लोकप्रिय फ़िल्म रही। ई.स.२००७ तक इस की डीवीडी की बिक्री सबसे अव्वल थी।
यह फ़िल्म १९वी सदी में बसी अंग्रेज़ राज के दौर की एक कहानी है। चम्पानेर गांव का निवासी भूवन एक हौसलामन्द और आदर्शवादी नौजवान है। मध्य प्रान्तो की अंग्रेज़ छावनी के सेनापती, कॅप्टन रस्सॅल के साथ उसकी नही बनती थी। अंग्रेज़ों ने जब साल का लगान दुगना वसूलने का आदेश दिया तब राजा पूरन सिंह से लगान माफ़ करवाने की विनती करने गांववाले भूवन के साथ ब्रिटिश छावनी गये। वहां राजा, ब्रिटिश अफ़सरों का क्रिकॅट का खेल देख रहे थे। जब एक अफ़सर ने एक गांववासी को गाली दी तो भूवन अफ़सरों से झगड पडा और क्रिकॅट के खेल की बराबरी गिल्ली-डंडा से की।
राजा के समक्ष भूवन ने कठोर लगान के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज किया। कॅप्टन रस्सॅल को यह पसंद नही आया और उसने भूवन को क्रिकॅट खेलने की चुनौती दी। जीते तो सालभर का लगान माफ़, हारे तो लगान तिगुना!!! गांववाले तो इस चुनौती से मुकरना चाहते थे, मगर कॅप्टन रस्सॅल ने ये फ़ैसला सिर्फ़ भूवन के हाथों में सौंपा। चुनौती को और बढाते, तीन साल का लगान माफ़ करने का भी लालच दे दिया। भूवन ने मैदान पर द्वन्द्व का न्योता स्वीकार कर लिया।
अब सारा चम्पानेर मानो भूवन को सूली पर चढाना चाहता था। सबकी ज़िन्दगी तो अब तबाह होने जा रही थी। मगर भूवन के लिए तो जब तक साँस तब तक आस। कई सालों से सूखा चल रहा था। आखिर एक साल का लगान भी तो कहां से भरते? और फिर कॅप्टन रसॅल भी तो चुनौती से नहीं हटने वाले थे।
अगवानी करते हुये भूवन ने लकड़ी का बल्ला और गेंद बनाए। कुछ गिने-चुने लोगों का दल छोडकर, सारा गांव भूवन के खेल पर हंस रहा था। क्रिकॅट सीखने यह दल चोरी छुपे छावनी पर जाने लगा। वहां कॅप्टन रसॅल की बहन ऍलिज़ाबॅथ ने उनको झाडियों में छिपे देख लिया। उसे अपने भाई का गांव वासियों से व्यवहार पसन्द नहीं आया। वह गांव के खिलाड़ियों को गांव के नजदीक मैदान पर क्रिकॅट सिखाने लगी। हिन्दी भाषांतर के लिये एक नौकर भी छावनी से अपने साथ ले आती।
धीरे-धीरे, सहज-सहज, भूवन का ये दल अपने अपूर्व ढंग से क्रिकॅट का खेल सीखने लगी। हाथ मज़बूत करने वे लकड़ी काटते। फ़ील्डिन्ग सीखने मुर्गीयों का पीछा कर उन्हे पकडते। गोली अपने हाथ पवन चक्की की तरह घुमा गेंदबाज़ी करने लगा।
अब गांव के लोगों में भी उत्साह दिखने लगा और अखिर दस खिलाडी तो बन गये। एक दिन खेलते वक्त गेंद कचरा के पास गिरी। कचरा गांव का अछूत सफ़ाई सेवक था। लौटाते वक्त उसने गेंद इस तरह घुमाकर फैंकी की भूवन दंग रह गया। गांव की टीम को ग्यारहवाँ चयन मिल गया। मगर गांव वाले एक अछूत को किस तरह अपनाते? वे तो उसे छूते तक नहीं। गांव और सदियों से चली इस परंपरा की भूवन ने आलोचना की। भूवन के भाव भरे शब्दों से गांव के निवासी मान गए।
आख़िर मुक़ाबले का दिन जागा। सारे प्रांत से लोग खेल देखने आए। कॅप्टन रसॅल के वरिष्ठ अफ़्सर भी मौजूद थे। खेल तीन दिनो का निश्चित किया गया था। गांववासिओं ने पहले गेंद फेंकना शुरू किया। उनका श्रीगणेष अच्छा हुआ। जल्द ही एक रनाऊट से विकॅट गिरी। गोली की अनोखी गेंद फैकने की अदा से घबड़ा कर एक और गोरा खिलाडी आउट हुआ। मगर ब्रिटिष खिलाड़ी भी कम न थे। धीर-धीरे वे पारी संभालते गये। अचानक कचरा गेंद घुमाने से रहा। लाखा ने तो कई कॅच भी ग़वाए। पहले दिन के अन्त में गोरी टोली हावी थी।
उस रात ऍलिज़ाबॅथ ने छावनी में लाखा को कॅप्टन रसॅल से मिलते देख लिया। अब पता चला की लाखा गांववालों से ग़द्दारी कर रहा था। ऍलिज़ाबॅथ गांववासीयों को क्रिकॅट की तालीम देती थी यह बात कॅप्टन रसॅल को बता दी। यह भी बताया की कॅच भी जानबूझ कर ग़वाए। जब गांववासीयों को पता चला तो लाखा की खाल उधेडना चाह्ते थे। उनसे भाग निकले लाखा ने गांव के मंदिर में पनाह ली। लाखा ने कुबूल किया की भूवन से जलन के कारण उसने यह धोखेबाज़ी की। वह भी भुवन की तरह गौरी को चाहता था मगर गौरी भूवन को पसंद करती थी। एक मौका और लाखा को दिया गया।
अगले दिन लाखा ने ज़बर्दस्त कॅच किए। कचरा भी अपना जादू फिर चलाने लगा। उस ने एक साथ तीन गेंदों में तीन विकॅटें ली। गोरों की पारी करीब तीन सौ रन पर समाप्त हुई।
भूवन की टोली ने बल्लेबाज़ी की जोरदार शुरूआत की। ब्रिटिष सेना के भूतपूर्व सिपाही देवा कमनसीबी से आउट हो गये। फिर ब्रिटिष खिलाडिओं ने गांव के बल्लेबाज़ों की निंदा कर उनको अकुलाया और वे जल्द आउट होने लगे। दूसरा दिन ख़त्म हुआ और आधे रन बनाने अभी बाकी थे। उधर आधी टीम आउट हो चुकी थी। मगर भुवन अभी खेल मे जीवित था।
तीसरे दिन गांव के बैद ईश्वर काका ने और इस्माइल ने भूवन का साथ दिया। इस्माइल को तो पिछ्ले दिन चोट लगी थी। बहुत जवाब्दारी से दोनो ने बल्लेबाज़ी की। दोनो रन-आउट हो गये। अब कचरा ने बल्लेबाज़ी संभाली। भूवन ने बहुत कोषिश की कि ज़्यादा बल्लेबाज़ी वही संभाले। आख़्ररी गेंद पर कचरा को छ रनो की ज़रूरत थी। मगर वह एक ही रन ले पाया। क्या गांववाले हारे? अम्पायर ने नो-बॉल का इशारा किया। अब एक और गेंद का समना भूवन ने झेला। भुवन ने छक्का मारा और गांव मुक़ाबला जीत गया। और साथ ही बरसात भी शुरू हुइ।
कॅप्टन रस्सॅल को उन्के वरिष्ठों ने मध्य अफ़रीका भेज दिया। ऍलिज़ाबॅथ लन्धन लौटी। रोते रोते भूवन और गांव के लोगों से उसने बिदाई ली। फ़िल्म के अन्त में एक पार्श्ववाणी बताती है कि कॅप्टन रस्सॅल की बदली अफ़्रीका हुई और ऍलिज़ाबॅथ सारी ज़िन्दगी स्वयम को भुवन की राधा मान कर, कँवारी रही। भुवन और गौरी का विवाह हो गया।
जावेद अख़्तर के लिखे हुए गीतों और ए आर रहमान द्वारा रचित इस फ़िल्म के संगीत को काफ़ी लोकप्रियता मिली। फ़िल्म के संगीत को अमेज़न की 'विश्व के १०० श्रेश्ठ संगीत एल्बम' मे ४४वाँ स्थान मिला। संगीत को ३ राष्ट्रीय पुरुस्कार मिले, ए आर रहमान को श्रेष्ठ संगीत के लिए, उदिन नारायण को 'मितवा' गीत के लिए श्रेष्ठ पुरुष पार्श्व गायक और जावेद अख़्तर को 'घनन घनन' व 'राधा कैसे न जले' के लिए श्रेष्ठ गीतकार का पुरुस्कार मिला।
गीत | गायक | समय |
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घनन घनन | उदित नारायण, सुखविंदर सिंह, अल्का याग्निक, शंकर महादेवन, शान | ६:११ |
मितवा | उदित नारायण, सुखविंदर सिंह, अल्का याग्निक, श्रीनिवास | ६:४७ |
राधा कैसे ना जले | आशा भोसले, उदित नारायण, वैशाली | ५:३४ |
ओ रे छोरी | उदित नारायण, अल्का याग्निक, वसुंधरा दास | ५:५९ |
चले चलो | ए आर रहमान, श्रीनिवास | ६:४० |
वाल्ट्ज़ ऑफ़ रोमांस | वाद्य | २:२९ |
ओ पालनहारे | लता मंगेशकर, साधना सरगम, उदित नारायण | ५:१९ |
लगान - वन्स अपॉन ए टाइम इन इन्डिया | अनुराधा श्रीराम | ४:१२ |
५७.८० करोड रुपये (१०.५२ मिलियन अमरीकी डॉलर)
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