राम नाथ शास्त्री (15 अप्रैल, 1914 - 8 मार्च, 2009) डोगरी कवि, नाटककार, कोशकार, निबन्धकार, शिक्षाशास्त्री, अनुवादक तथा सम्पादक थे। उन्होने डोगरी भाषा के उत्थान और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उन्हें 'डोगरी का जनक' कहा जाता है। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह बदनामी दी छां के लिये उन्हें सन् १९७६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (डोगरी) से सम्मानित किया गया।[1]

सामान्य तथ्य राम नाथ शास्त्री, पेशा ...
राम नाथ शास्त्री
पेशासाहित्यकार
भाषाडोगरी भाषा
राष्ट्रीयताभारतीय
विधाकहानी
उल्लेखनीय कामsबदनामी दी छां
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सन २००१ में उन्हें साहित्य अकादमी फेलोशिप प्रदान किया गया था।

जीवन परिचय

प्रो. शास्त्री ने डोगरी भाषा की अस्मिता की रक्षा के लिए आंदोलन शुरू किया और सन १९४४ में जम्मू में डोगरी संस्था की नींव रखी। उसके बाद उन्होंने पीछे नहीं देखा और अपना पूरा जीवन डोगरी के लिए अर्पित कर दिया। सन १९५३ में उन्होंने डोगरी मैगजीन 'नमीं चेतना' को शुरू की। जम्मू विश्वविद्यालय में डोगरी रिसर्च सेंटर गठित किया गया जिसका श्रेय भी प्रो. शास्‍त्री को जाता है। यही सेंटर बाद में डोगरी विभाग में बदला। उनके विशेष योगदान के लिए साहित्य अकादमी ने सन १९७६ में लघु कहानियों के लिए किताब ‘बदनामी दा चन्न’ और सन १९८९ में अनुवाद (मिट्टी दी गड्डी) के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया। २४ मार्च १९९० में उनको पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। प्रो. शास्त्री को साहित्य अकादमी की फैलोशिप भी मिली है।

जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने वाले डुग्गर के महानायक किसान बाबा जित्तो के जीवन से ज्यादा से ज्यादा किसानों को प्ररेणा मिले, इसके लिए प्रो. शास्‍त्री के लिखे नाटक बाबा जित्तो का मंचन १९४८ में उधमपुर के टिकरी क्षेत्र में आयोजित किसान सभा में किया गया।[2]

प्रमुख कृतियाँ

  • धरती दा रिण (कविता संग्रह)
  • बदनामी दा छांंs (कहानी संग्रह)
  • तलखियाँ (ग़ज़ल संग्रह )
  • कलमकार चरण सिंह (संपादन)
  • बावा जित्तो (नाटक)
  • डुग्गर दे लोकनायक (शोध)
  • झकदियाँ किरणांं (एकांकी संग्रह)

सन्दर्भ

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