राम जन्मभूमि

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हिन्दुओं की मान्यता है कि श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और उनके जन्मस्थान पर एक भव्य मन्दिर विराजमान था जिसे मुगल आक्रमणकारी बाबर ने तोड़कर वहाँ एक मस्जिद बना दी।

सामान्य तथ्य श्री राम जन्मभूमि, धर्म संबंधी जानकारी ...
श्री राम जन्मभूमि
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श्री राम जन्मभूमि में स्थापित भगवान श्री राम के बाल रूप (रामलला) का विग्रह
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्मਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ
देवताश्री राम
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिअयोध्या, उत्तर प्रदेश, भारत
वास्तु विवरण
निर्माताविक्रमादित्य द्वितीय
स्थापितअज्ञात
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सामान्य तथ्य राम जन्मभूमि, स्थान ...
राम जन्मभूमि
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Ayodhya
Ayodhya
Ayodhya (उत्तर प्रदेश)
स्थान अयोध्या
क्षेत्र उत्तर प्रदेश
निर्देशांक 26.7956°N 82.1943°E / 26.7956; 82.1943
स्थल टिप्पणियां
स्वामित्व श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र[1]
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में इस स्थान को मुक्त करने एवं वहाँ एक नया मन्दिर बनाने के लिये एक लम्बा आन्दोलन चला। ६ दिसम्बर सन् १९९२ को यह विवादित ढ़ांचा गिरा दिया गया और वहाँ श्री राम का एक अस्थायी मन्दिर निर्मित कर दिया गया।

इतिहास

राम जन्मभूमि विवाद का संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार से है:[2]

  • १५२८ में राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी। रामायण और हिन्दुओं के अन्य धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार यहीं भगवान राम का जन्म हुआ था।
  • १८५३ में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ।
  • ३० नवम्बर १८५८ को बाबा फकीर सिंह खालसा की अगुवाई में 25 निहंग सिखों ने बाबरी ढाँचे पर कब्जा कर लिया। उन्होंने कई दिनों तक बाबरी पर कब्जा बनाए रखा था और राम नाम का पाठ किया। उन्होंने बाबरी ढाँचे पर राम नाम भी लिख दिया। [3]
  • १८५९ में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा।
  • १९४९ में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया।
  • सन् १९८६ में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
  • सन् १९८९ में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की।
  • ६ दिसम्बर १९९२ को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई। परिणामस्वरूप देशव्यापी दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं।
  • १६ दिसम्बर १९९२ को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। लिब्रहान आयोग को १६ मार्च १९९३ को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में १७ साल लगाए।
  • १९९३ में केंद्र के इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली। चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारुकी था। मगर कोर्ट ने इस चुनौती को ख़ारिज कर दिया कि केंद्र सिर्फ इस जमीन का संग्रहक है। जब मलिकाना हक़ का फैसला हो जाएगा तो मालिकों को जमीन लौटा दी जाएगी। हाल ही में केंद्र की और से दायर अर्जी इसी अतिरिक्त जमीन को लेकर है।
  • १९९६ में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गयी। इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसे १९९७ में कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दिया।
  • २००२ में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुई तो असलम भूरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
  • २००३ में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
  • ३० जून २००९ को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में ७०० पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा।
  • जांच आयोग का कार्यकाल ४८ बार बढ़ाया गया।
  • ३१ मार्च २००९ को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने अर्थात् ३० जून तक के लिए बढ़ा गया।
  • २०१० में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए। लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
  • उच्चतम न्यायालय ने ७ वर्ष बाद निर्णय लिया कि ११ अगस्त २०१७ से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा किया और ७० वर्ष बाद ३० मार्च १९४६ के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित अर दिया गया था।[4]
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि ५ दिसंबर २०१७ से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि ५ फरवरी २०१८ से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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