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प्रथम राजाराज चोल दक्षिण भारत के के महान सम्राट थे जिन्होंने ९८५ से १०१४ तक राज किया। उनके शासन में चोलों ने दक्षिण में श्रीलंका तथा उत्तर में कलिंग तक साम्राज्य फैलाया।[2][3] राजराज चोल ने कई नौसैन्य अभियान भी चलाये, जिसके फलस्वरूप मालाबार तट, मालदीव तथा श्रीलंका को आधिपत्य में लिया गया।
राजाराज चोल १ | |||||
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Rājakēsari मुम्मदी चोलन,[1] | |||||
Chola Emperor | |||||
शासनावधि | ल. 985 | ||||
पूर्ववर्ती | Uttama Chola | ||||
उत्तरवर्ती | राजेन्द्र प्रथम | ||||
king of Anuradhapura King of Polonnaruwa | |||||
Reign | ल. 992 | ||||
पूर्ववर्ती | Mahinda V | ||||
उत्तरवर्ती | राजेन्द्र प्रथम | ||||
जन्म | Arulmozhi Varman ल. 947 तंजावूर, चोल राजवंश (modern day Tamil Nadu, India) | ||||
निधन | 1014 (aged 66–67) तंजावूर, चोल राजवंश (modern day Tamil Nadu, India) | ||||
Queens | Thiripuvana Madeviyar Lokamahadevi Cholamahadevi Trailokyamahadevi, Panchavanmahadevi Abhimanavalli Latamahadevi Prithivimahadevi | ||||
संतान |
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राजवंश | चोल राजवंश | ||||
पिता | Parantaka II | ||||
माता | Vanavan Mahadevi | ||||
धर्म | हिन्दू धर्म | ||||
हस्ताक्षर |
राजराज चोल ने हिंदुओं के विशालतम मंदिरों में से एक, तंजौर के बृहदीश्वर मन्दिर का निर्माण कराया जो वर्तमान समय में यूनेस्को की विश्व धरोहरों में सम्मिलित है। उन्होंने सन 1000 में भू-सर्वेक्षण की महान परियोजना शुरू कराई जिससे देश को वलनाडु इकाइयों में पुनर्संगठित करने में मदद मिली।
राजराज चोल ने "शशिपादशेखर" की उपाधि धारण की थी। राजराज प्रथम ने मालदीव पर भी विजय प्राप्त की थी।
चोलों का उदय नौवीं शदी में हुआ। इनका राज्य तुंगभद्रा तक फैला हुआ था। चोल राजाओ ने शक्तिशली नौसैना का विकास किया। इस वंश की स्थापना विजयालय ने की। चोल वंश का दूसरा महान शासक कोतूतुङ त्रितीय था।
Uplabdhiya
1.rajrajeswar(vradheswar mandir) bnvaya 2.maldeep vijaya
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