मापिकी, मापविद्या या मापविज्ञान (Metrology) में मापन के सभी सैद्धांतिक और व्यावहारिक पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। यह मापन एवं उसके अनुप्रयोगों का विज्ञान है।
मापिकी (Metrology) भौतिकी की वह शाखा है जिसमें शुद्ध माप के बारे में हमें ज्ञान होता है। मापविज्ञान में मूल रूप से हम तीन रशियों, अर्थात् द्रव्यमान, लम्बाई एवं समय के बारे में चर्चा करते हैं और इन्हीं तीन राशियों के ज्ञान से हम अन्य राशियों, जैसे घनत्व, आयतन, बल तथा शक्ति आदि को मापते हैं।
मापविज्ञान द्वारा अपरिवर्तनीय मानकों (standards) का निर्देश ही नहीं मिलता, वरन् इन्हें कायम भी रखा जाता है। इन्हीं मानकों द्वारा हम वस्तुओं के गुणों की माप तथा तुलना भी करते हैं। दूसरा पक्ष यह है कि किसी कार्यविशेष को दृष्टि में रखकर मापविज्ञान से ऐसे तरीके प्राप्त होते हैं जिनसे तुलनाएँ काफी उच्च स्तर की शुद्धता तक की जा सकें। आधुनिक विज्ञान तथा उद्योगों में उपर्युक्त मौलिक तुलनाओं (fundamental comparisons) का अत्यंत शुद्ध होना आवश्यक है। माप पूर्णतया ठीक नहीं होती और निश्चित रूप से उसमें कुछ न कुछ प्रायोगिक गलती सदा ही रहती है। आजकल मापविज्ञान की अधिक मौलिक क्रियाओं में यथार्थता की निम्नलिखित सन्निकटताएँ (approximations) प्राप्त है:
- अंतरराष्ट्रीय आदिरूप (prototype) किलोग्राम के दो प्लैटिनम इरीडियम नमूनों की तुलना में : 10,00,00,000 में एक भाग। साधारण रासायनिक बाटों की तुलना में : 10,00,000 में एक भाग। सूक्ष्ममापी तुला द्वारा छोटे छोटे भारों की तुलना में : 10,00,00,000 में एक भाग।
- दो गजों या मानक मीटरों की तुलना में : 1,00,00,000 में एक भाग। अंत्य मानक (End standard) की रेखामानक (Line standard) से तुलना में : 10,00,000 में एक भाग।
- साधारण आयतन तथा घनत्व के निर्धारण में : 10,000 में एक भाग। अंत्य मानक के कुलक के अंशांकन (calibration), 1 इंच की लंबाई से कम नहीं में 10,00,000 में एक भाग।
- चिह्नांकित गज या धातु पैमानों के उपविभागों के अंशाकन की पूरी लंबाई के पदों (terms) में 0.000005 इंच, या 0.0001 मिलीमीटर।
लmबाई के मानक
तरंगदैर्घ्य प्राकृतिक मानक के रूप में (Wavelength as natural standard)-- बाद की प्रगति ने काफी हद तक हमारी मान्यताओं में परिवर्तन ला दिया है। सर्वप्रथम, वैज्ञानिक माइकेल्सन (Michelson) के प्रयोगों ने एक प्राकृतिक मानक, (कैडमियम के स्पेक्ट्रम में लाल रेखा (red line) का तरंगदैर्ध्य, स्थापित किया, जो सर्वसम्मति से मान लिया गया यह मानक कम से कम उतनी ही उच्च स्तर की शुद्धता के साथ पुनरुत्पादनीय है जितनी द्रव्यात्मक मानकों की तुलनाओं में पाया जाता है। लेकिन इस मानक की सर्वोत्कृष्ट विशेषता यह है कि यह दीर्घकालिक विचरण (secular variation) की संभावना से परे है, जबकि अन्य सभी प्रकार के मानकों का ही प्रयोग होता है। पृथ्वी के किसी भी भाग में हम इस प्राकृतिक मानक की सहायता से द्रव्यात्मक मानकों का सत्यापन कर सकते हैं। यदि द्रव्यात्मक मानकों को अंतरराष्ट्रीय केंद्रीय प्रयोगशाला में भेजकर आदिप्ररूप मीटर से तुलना करानी होती है, तो आवागमन में उसे हानि पहुँचने की संभावना रहती है, किंतु प्राकृतिक मानक की सहायता से हम अपनी ही प्रयोगशाला में यह कार्य कर सकते हैं। दूसरी बात यह है कि इस प्रकार के सुधारों से चपटे सिरोंवाले मानकों का विकास हुआ। आजकल ऐसे दंड भी प्राप्य हैं जिनके सिरे एकदम समांतर हैं। इस प्रकार के दंडों की लंबाइयों को रेखीय मानक से न निकालकर सीधे प्रकाशीय व्यतिकरण (optical interference) से निकाला जाता है।
माइकेल्सन के व्यतिकरणमापी (interferometer) का उपयोग इस बात को जानने में भी किया गया कि एक मानक मीटर में कितनी प्रकाश की तरंगें आती है तथा उनकी संख्या क्या है? माइकेल्सन ने 150 सेंटीग्रेड ताप तथा 760 मिमी0 वायुमंडल के दबाव पर अंतरराष्ट्रीय मीटर का, जो पैरिस के पास माप और तौल के अंतरराष्ट्रीय संस्थान में रखा हुआ है, मान कैडमियम की लाल तरगों में, ज्ञात किया। यह मान 15,53,163.5 है, जो 2´106 में एक सीमा तक सही है। फैब्री पैरॉ (Fabri Perot) के बाद के प्रयोगों से ज्ञात हुआ कि 15° सें0 तथा 760 मिलीमीटर दबाव पर शुष्क हवा में एक मीटर में यह संख्या 15,53,164.13 है। यदि माइकेल्सन के प्रयोगें में जलवाष्प के प्रभाव के लिये संशोधन किया जाय, तो यह स्पष्ट होता है कि दोनों के मान में कोई अंतर नहीं है।
द्रव्यमात्क मानकों का व्यवहार
इस बात का प्रमाण है कि द्रव्यात्मक मानक गज अपने निर्माणकाल से लेकर आज तक सभवत: 0.0002 इंच घट चुका है, लेकिन जहाँ तक अंतरराष्ट्रीय आदिप्ररूप मीटर का सवाल है वह अपरिवर्तित रहा है। माइकेल्सन तथा फैब्री पैरॉ के प्रयोगों ने इसे सिद्ध भी कर दिया है। इनकी तुलना का आधार कैडमियम की लाल रेखा थी। द्रव्य के सब सब मानक मीटर एक मिश्रधातु के बनाए जाते हैं, जिसके निर्माण में 90% प्लैटिनम तथा 10% इरीडियम नामक धातु होती है। इस प्रकार में मीटरों को आधारभूत मानकों के लिये सबसे संतोषप्रद माना जाता है।
इनवार (Invar) का व्यवहार
बहुत से कार्यों में, जहाँ अत्यंत ही यथार्थ माप की समस्या आ खड़ी होती है, वहाँ यह आवश्यक है कि हम ऐसे द्रव्य का व्यवहार करें जिसका तापीय प्रसार नाम मात्र का हो। ऐसी धातुओं की खोज हो चुकी है तथा इनमें से एक को 'इनवार' कहते हैं। यह निकल तथा इस्पात की मिश्रधातु है, जिसमें 36% निकल रहता है। दूसरी मिश्रधातु को स्टेबल इनवार (Stable invar) की संज्ञा दी गई है। इसमें थोड़ा क्रोमियम भी होता है। इस मिश्रधातु में साधारण इनवार की अपेक्षा यथेष्ट कम प्रसार होता है, तो भी इसको अचर के रूप में नहीं माना जा सकता।
संगलित सिलिका (frsed silica) तथा प्राकृतिक क्रिस्टल क्वार्ट्ज (crystal quartz)
दूसरा द्रव्य संगलित सिलिका है, जिसका प्रसार गुणांक बहुत ही कम है। यह द्रव्य एक डिग्री सें0 ताप बढ़ने पर केवल 0.4x10-6 बढ़ता है। संगलित सिलिका का मानक मीटर एक नली के आकार का होता है, जिसके सिरे पर समान्तर पट्ट (plates) संलीन (fused) होते हैं। इसके प्लैटिनीकृत तल पर सीमांकित रेखाएँ खुदी होती है। इस मानक के बारे में जहाँ तक ज्ञात है, इसकी लंबाई में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। चूँकि इस प्रकार का मानक बहुत ही नाजुक होता है, इसलिये न तो इसे मौलिक निर्देश मानक के रूप में स्वीकार किया गया और न इसका प्रचलन दैनिक कार्यों में हुआ। केवल मापविज्ञान प्रयोगशालाओं में इसे प्रयोग में लाया जाता है।
द्रव्यमान (संहति) का मानक
किसी भी प्राकृतिक मानक द्वारा अभी तक इकाई संहति की परिभाषा देने का प्रयास नहीं किया गया। हम सभी लागों को यह ज्ञात है कि रेडियो सक्रिय पदार्थो की खोज में पहले संहति या द्रव्यमान पदार्थ का एक आवश्यक स्थिर गुण माना जाता था। बटखरों की संहति या द्रव्य मानक में परिवर्तन की आशंका अपघर्षण, ऑक्सीकरण तथा आर्द्रताग्राही अवशोषण के कारण ही संभव है। यदि द्रव्यों के मानकों का संरक्षण तथा उपयोग उचित सावधानी के साथ किया जाय, तो ये काफी हद तक भार की स्थिरता का प्रदर्शन करते हैं।
भार का आधारभूत मानकनिर्देश प्लैटिनम तथा इरीडियम मिश्रधातु का बना है। इसी मिश्रधातु का उपयोग 'राजकीय मानक पाउंड' तथा 'अंतरराष्ट्रीय आदि प्ररूप किलोग्राम' के निर्माण में किया गया है। कई वर्षों के बाद जब किलोग्राम की विभिन्न राष्ट्रीय प्रतियों की पुनः तुलना की गई, तो यह ज्ञात हुआ कि स्थिरता का स्तर 108 में एक भाग तक है। इससे मानकों की यथार्यता ही नहीं वरन् तुलनाओं की पूर्णता भी परिलक्षित होती है।
एक दूसरा द्रव्य, जिसमें संहति की उच्च स्तर की स्थिरता पाई जाती है, क्रिस्टल क्वार्ट्ज कहलाता है। इसमें त्रूटियाँ ये हैं कि इसका घनत्व अपेक्षाकृत कम है और यह आर्ता अवशोषक है।
हवा में संहति के मानकों की तुलना करते समय ये मानक वायु के विभिन्न आयतनों को हटाते हैं। अत: संहति के मानकों की तुलना करने में ऊपरी उत्प्लावन प्रभाव का विचार अवश्य रखना चाहिए। यदि मानक का घनत्व कम होगा, तो उत्प्लावन संशोधन ज्यादा होगा। प्लैटिनम-इरीडियम मानकों की आपसी तुलना में जो शुद्धता प्राप्त होती है, वह इस सत्यांश पर आधृत है कि इनका घनत्व अधिक ही नहीं वरन् बहुत पास पास होता है। इसके कारण उत्प्लावन संशोधन बहुत ही कम होता है। उन भारों की तुलना में उत्प्लावन संशोधन एक समस्या के रूप में आ खड़ा होता है जिनके घनत्व में बहुत अंतर होता है जिनके, जैसे प्लैटिनम, क्वार्ट्ज तथा पीतल आदि। इस दोष को दूर करने के लिये वायुरहित वातावरण में तौलना आवश्यक है। प्रतिदिन के व्यापारिक कार्यों में तौल का कार्य हवा में ही होता है और उत्प्लावन के कारण जो अंतर बाटों तथा माल में होता है, वह व्यापारिक दृष्टिकोण से नगण्य है। निरीक्षक व्यापारिक बाटों की तुलना के लिये पीतल के, जिसका घनत्व 8.143 है, बाटों के मानक काम में लाते हैं।
तुला का उपयोग
जब हम वायुरहित वातावरण में तौल नहीं करते हैं, तब भी द्रव्यमान के प्राथमिक मानकों की सही तुलना के लिये तुला की बनावट उत्तम, प्रयोग की रीति दक्ष तथा सतर्क होनी चाहिए। तुला के शून्य पठनांक को स्थिर रखने के लिये यह आवश्यक है कि तापस्थिरता में अत्यंत सावधानी बरती जाय। इसलिये जिस कक्ष में तुला रखी हो उसको ताप स्थापकीय रीति से (thermostatically) नियंत्रित होना आवश्यक है और निरीक्षक को तौलने का कार्य कक्ष से बाहर से करना चाहिए, या उसे कुछ दूरी से तौलना चाहिए। बाटों को काम में लाने का कार्य तुला के बाहर से यांत्रिक नियंत्रण द्वारा, या लंबी छड़ों से चलाकर, किया जाना चाहिए। तुला की डंडी (beam) का संचलन या तो दूरदर्शी से देखना चाहिए अथवा पैमाने के आर पार डंडी से लगे हुए शीशे से परावर्तित होते एक प्रकाशपुंज की मापनी (scale) पर गति से।
ताप का प्रभाव तुला पर कम से कम हो, इसलिये यह आवश्यक है कि इनवार की डंडी व्यवहार में लाई जाय, किंत इनवार कुछ हद तक चुंबकीय है। यदि अत्यन्त उच्च स्तर की शुद्धता की आवश्यकता हो, तो यह आवश्यक है कि तुला की डंडी चुंबकीय प्रभाव से पूर्णतया प्रच्छन्न (screened) हो और तुला को एक लोहे के बक्स (case) में रखा जाए।
छोटी छोटी मात्राओं को तौलने के लिये और विशेष कर गैसों के घनत्वों की तुलना में, सूक्ष्म तुला प्रयोग में लाई जाती है, जो पूर्णतया बलित क्वार्ट्ज की बनी होती है। इस प्रकार की तुलाओं द्वारा 108 में एक भाग की शुद्धता तक 1/10 ग्राम भी तौला जा चुका है।
राष्ट्रीय मापिकी संस्थानों (एन.एम.आई) की भूमिका
राष्ट्रीय मापिकी संस्थानों (एन.एम.आई) की भूमिका देश की राष्ट्रीय माप प्रणाली स्थापित करना; माप की मूल इकाइयों जैसे माप की बुनियादी और अन्य इकाइयों के लिए माप मानकों को बनाए रखना, विकसित करना; और अर्थव्यवस्था में मेट्रोलॉजिकल विशेषज्ञता प्रदान करने जैसी गतिविधयां शामिल है।
सी.एस.आई.आर- राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला(निदेशक) को भारत में राष्ट्रीय मेट्रोलॉजी संस्थान के रूप में नामित किया गया है । [1]
विभिन्न एशियाई देशों के एन.एम.आई. संस्थान
चीन - नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेट्रोलॉजी, चीन (स्थापना - वर्ष 1955) (प्रमुख वर्ष- 2020 : फेंग जियांग)
भारत- सी.एस.आई.आर- राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (एन.पी.एल-इंडिया) (स्थापना - वर्ष 1947) (प्रमुख वर्ष-2020 : डी.के. असवाल)
इंडोनेशिया - नेशनल स्टैंडर्डज़ेशन एजेंसी ऑफ़ इंडोनेशिया (स्थापना - वर्ष 1997) (प्रमुख वर्ष-2020 : आई.आर. बेम बैंगप्रेसेत्या)
ईरान - इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्टैंडर्ड्स एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑफ़ ईरान (स्थापना - वर्ष 1960) (प्रमुख वर्ष-2020 : न्यारेह पिरौजबख्त)
इराक- सेंट्रल आर्गेनाईजेशन फॉर स्टॅण्डर्डाइजेशन एंड क्वालिटी कंट्रोल ऑफ़ इराक (स्थापना - वर्ष 1979) (प्रमुख वर्ष-2020 : ---)
इजराइल - स्टैण्डर्ड इंस्टिट्यूट ऑफ़ इजराइल - (स्थापना - वर्ष 1953) (प्रमुख वर्ष-2020 : ---)
इन्हें भी देखें
- विधिक मापविज्ञान (लीगल मेट्रोलॉजी)
- मापन
सन्दर्भ
- Organisation Internationale de Metrologie Legale. (2000), International Vocabulary of Terms in Legal Metrology, [Online] https://web.archive.org/web/20130528013652/http://www.oiml.org/publications/V/V001-ef00.pdf. (Latest version draft can be downloaded at http://www.ncsli.org/vim/wg2_doc_N318_VIM_3rd_edition_2006-08-01%20(3).pdf)%5Bमृत+कड़ियाँ%5D
- Bureau International des Poids et Mesures. (2005), "What is metrology", Copyright BIPM 2004, [Online] https://web.archive.org/web/20061201063036/http://www.bipm.org/en/bipm/metrology/.
- Sarle, W. (1995), Measurement theory: Frequently asked questions, Copyright 1995 by Warren S. Sarle, Cary, NC, USA [Online] SAS Institute web pages: ftp://ftp.sas.com/pub/neural/measurement.faq
- Bureau International des Poids et Mesures. (2000), The International System of Units (SI), [Online] BIPM web pages: https://web.archive.org/web/20030207210821/http://www.bipm.fr/enus/3_SI/
- Bureau International des Poids et Mesures. (2000), The Convention of the meter, [Online] BIPM web pages: https://web.archive.org/web/20030621190754/http://www.bipm.fr/enus/1_Convention/
- Melville, D.J. (2001). Sumerian metrological numeration systems, Mesopotamian Mathematics, [Online] St. Lawrence University web pages, https://web.archive.org/web/20080515172036/http://it.stlawu.edu/%7Edmelvill/mesomath/sumerian.html
- National Institute of Standards and Technology. (1999), The NIST Reference of Constants, Units, and Uncertainty, [Online] NIST web pages: https://web.archive.org/web/20181223153235/https://physics.nist.gov/cuu/index.html
- National Institute of Standards and Technology / Sematech. (n.d.). Engineering Statistics Handbook. [Online] NIST web pages: https://web.archive.org/web/20100531031208/http://www.nist.gov/itl/div898/handbook/
- National Physical Laboratory, UK - National Measurement Laboratory - Metrology related resources including many free PDF downloads including Good Practice Guides: [Online] https://web.archive.org/web/20080513095650/http://www.npl.co.uk/
- Ken Alder, "The Measure of All Things", Little, Brown 2002. (An historical account on the origin of the metric system, the meridian project).
- Kimothi, S. K., "The Uncertainty of Measurements: Physical and Chemical Metrology: Impact and Analysis", 2002, ISBN 0-87389-535-5
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