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भारत के राष्ट्रीय पुस्तकालय की स्थापना 1948 में कोलकाता में हुई थी।
भारत का राष्ट्रीय पुस्तकालय का इतिहास :-
देश के लिए एक राष्ट्रीय पुस्तकालय स्थापित करने का प्रावधान भारतीय संविधान में संघ सूची की सातवीं अनुसूची के अनुच्छेद 62 में दिया हैं
भारत के राष्ट्रीय पुस्तकालय का इतिहास शुरू होता हैं, कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी से जिसकी स्थापना सन् 1835 ई. में हुई थी, और लोगों को पढ़ने के लिए इसे मार्च 1836 ई. में खोला गया। 1844 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड मेटकॉफ ने एक बड़े भवन मे स्थानातरण कर दिया । 1857 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम भड़कने के बाद यूरोपीय समुदायों ने पुस्तकालय को अनुदान देना बंद कर दिया और 1859 ई. में मे इस पुस्तकालय को कलकत्ता नगरपालिका ने अपने प्रबंधन मे लिया।
1899 ई. में लार्ड कर्जन भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल इस पुस्तकालय को सुचारू रूप से चलाने के लिए स्वामित्व अधिकार लिए और सरकार द्वारा संपोषित इंपीरियल लाइब्रेरी के अंतर्गत मिला दिया, तथा इस नवीन इंपीरियल लाइब्रेरी ऑफ़ इंडिया को 30 जनवरी 1903 को जनता के लिए खोल दिया गया । तथा जॉन मैकफार्लेन, ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन के सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष को इम्पीरियल लाइब्रेरी का प्रथम पुस्तकालय के अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
1928 में भारत सरकार नें जे ए रिचे की अध्यक्षता में इस पुस्तकालय के प्रशासनिक पुनगठन के लिए एक समिति का गठित की जिसने पुस्तकालय को प्रतिलिप्याधिकार निक्षेपण पुस्तकालय का दर्जा देने की सिफारिश की गई।
आजादी के बाद सन 1948 में भारत सरकार द्बारा इम्पीरियल लाइब्रेरी का नाम राष्ट्रीय पुस्तकालय कर दिया गया तथा तत्कालीन गवर्नर जनरल श्री बी. सी. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने बेलवेडियर पैलेश को राष्ट्रीय पुस्तकालय के लिए मुहैया कराया । तथा इस नवीन राष्ट्रीय पुस्तकालय के प्रथम पुस्तकालय अध्यक्ष के पद पर श्री बी. एस. केशवन की नियुक्ति की गई, तथा 1 फरवरी, 1953 को भारत संघ के मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने राष्ट्रीय पुस्तकालय को सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए खोल दिया। तथा 1954 में राष्ट्रीय पुस्तकालय में पुस्तक प्रदाय (सार्वजनिक पुस्तकालय) अधिनियम पारित किया गया, जिसे 1956 में संशोधित करके पत्र-पत्रिकायों को भी सम्मलित किया गया । जिसके अधीन भारत में प्रकाशित प्रत्येक ग्रन्थ की एक प्रति इस पुस्तकालय निशुल्क प्रकाशकों से प्राप्त होती है।
👉भारत के पुस्तकालय के विभिन्न प्रकार होते हैं:
यूनेस्को और भारत सरकार के संयुक्त प्रयास से स्थापित दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी का उद्घाटन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 27 अक्टूबर 1951 को किया। 15 वर्ष की इस अल्प अवधि में इस पुस्तकालय ने अभूतपूर्व उन्नति की है। इसमें ग्रंथों की संख्या लगभग चार लाख है। नगर के विभिन्न भागों में इसकी शाखाएँ खोल दी गई। इसके अतिरिक्त प्रारंभ से ही चलता-फिरता पुस्तकालय भी इसने शुरू किया।
पुस्तकालय के संदर्भ और सूचना विभाग में नवीनतम विश्वकोश, गैजट, शब्दकोश और संदर्भ साहित्य का अच्छा संग्रह है। बच्चों के लिए बाल पुस्तकालय विभाग है। पुस्तकों के अतिरिक्त इस विभाग में तरह-तरह के खिलौने, लकड़ी के अक्षर, सुन्दर चित्र आदि भी हैं। सामाजिक शिक्षा विभाग समय-समय पर फिल्म प्रदर्शनी, व्याख्यान, नाटक, वादविवाद प्रतियोगिता का आयोजन करता है। इसके अतिरिक्त इस विभाग के पास आधुनिकतम दृश्यश्रव्य उपकरण भी हैं। इस पुस्तकालय के सदस्यों की संख्या लगभग एक लाख है।
इस पुस्तकालय की स्थापना जे॰एच॰ स्टाकलर के प्रयत्न से 1836 ई॰ में कलकत्ता में हुई। इसे अनेक उदार व्यक्तियों से एवं तत्कालीन फोर्ट विलियम कालेज से अनेक ग्रंथ उपलब्ध हुए। प्रारंभ में पुस्तकालय एक निजी मकान में था, परंतु 1841 ई॰ में फोर्ट विलियम कालेज में इसे रखा गया। सन् 1844 ई॰ में इसका स्थानांतरण मेटकाफ भवन में कर दिया गया। सन् 1890 ई॰ में कलकत्ता नगरपालिका ने इस पुस्तकालय का प्रबंध अपने हाथ में ले लिया। बाद में तत्कालीन बंगाल सरकार ने इसे वित्तीय सहायता दी। 1891 ई॰ में इंपीयिल लाइब्रेरी की स्थापना की गई और लार्ड कर्जन के प्रयत्न से कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी तथा इंपीरियल लाइब्रेरी को 1902 ई॰ में एक में मिला दिया गया। उदार व्यक्तियों ने इसे बहुमूल्य ग्रंथों का निजी संग्रह भेंट स्वरूप दिया।
सन् 1926 ई॰ में रिचे समिति ने इस पुस्तकालय के विकास के संबंध में भारत सरकार को अपना प्रतवेदन दिया। सितंबर, 1948 में यह पुस्तकालय नए भवन में लाया गया और इसकी रजत जयंती 1 फ़रवरी 1953 ई॰ को मनाई गई। स्वतंत्रता के पश्चात् इसका नाम बदलकर 'राष्ट्रीय पुस्तकालय' कर दिया गया। इसमें ग्रंथों की संख्या लगभग 12 लाख है। 'डिलीवरी ऑव बुक्स ऐक्ट 1954' के अनुसार प्रत्येक प्रकाशन की एक प्रति इस पुस्तकालय को प्राप्त होती है। वर्ष 1964-65 में इस योजना के अतंगर्त 18642 पुस्तकें इसे प्राप्त हुईं एवं भेंत स्वरूप 7000 से अधिक ग्रंथ मिले। केन्द्रीय संदर्भ पुस्तकालय ने राष्ट्रीय ग्रंथसूची को नौ जिल्दों में प्रकाशित कर एवं राज्य सरकार ने तमिल, मलयालम तथा गुजराती की ग्रंथसूचियाँ प्रकाशित कीं।
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