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पहला भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर भारत सरकार द्बारा १९५१ में स्थापित अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) और प्रौद्योगिकी -उन्मुख एक स्वायत्त उच्च शिक्षा संस्थान है। सात आईआईटी में यह सबसे पुरानी है। भारत सरकार ने इसे आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान माना है और इसकी गणना भारत के सर्वोत्तम इंजीनियरिंग संस्थानों में होती है। आई आई टी खड़गपुर को विभिन्न इंजीनियरिंग शिक्षा सर्वेक्षणों जैसे कि इंडिया टुडे और आउटलुक में सर्वोच्च इंजीनियरिंग कॉलेजों में से एक का स्थान दिया गया है।[1]
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर | |
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आदर्श वाक्य: | योगः कर्मसु कौशलम् ([Yoga Karmasu Kaushālam] Error: {{Lang}}: text has italic markup (help)) |
स्थापित | 1951 |
प्रकार: | शिक्षा और शोध संसथान |
निदेशक: | दामोदर आचार्य |
शिक्षक: | 470 |
कर्मचारी संख्या: | 2403 |
स्नातक: | ४५00 (अनुमानित) |
स्नातकोत्तर: | २५00 (अनुमानित) |
अवस्थिति: | खड़गपुर, पश्चिम बंगाल,, भारत |
परिसर: | २१०० एकड़ (8.5 वर्ग किमी) |
१९४७ में भारत की स्वाधीनता के बाद आई आई टी खड़गपुर की स्थापना उच्च कोटि के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को प्रसिक्षित करने के लिए हुई थी। इसका संस्थागत ढांचा दूसरी IITओं की ही तरह है और इसकी प्रवेश की विधि भी बाकी IITओं के साथ ही होती है। आई आई टी खड़गपुर के छात्रों को अनौपचारिक तौर पर केजीपिअन् (KGPians) कहा जाता है। सभी IITओं में इसका कैम्पस क्षेत्रफल सबसे ज्यादा (२१०० एकड़) है[2] और साथ ही विभाग और छात्रों की संख्या भी सर्वाधिक है। आई आई टी खड़गपुर, इल्लुमिनेशन, रंगोली, क्षितिज और स्प्रिन्ग्फेस्ट जैसे अपने वार्षिक उत्सवों के कारण जाना जाता है।
भारत में युद्धोपरांत औद्योगिक विकास हेतु उच्चतर तकनीकी संस्थानों कि स्थापना के लिए दो भारतीय शिक्षाविदों हुमायूँ कबीर और जोगेंद्र सिंह ने १९४६ में तत्कालीन पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बिधान चन्द्र रॉय की मदद से एक कमिटी का गठन किया। इसके बाद नलिनी रंजन सरकार कि अगुवाई में २२-सदस्यीय एक कमिटी का गठन हुआ। अपने अंतरिम रिपोर्ट में कमिटी में देश के विभिन्न भागों में मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (MIT) की तर्ज़ पर सम्बद्ध दूसरे दर्जे के संस्थानों के साथ उच्चतर तकनीकी संस्थानों कि स्थापना का प्रस्ताव रखा। रिपोर्ट में देश के चार भागों में प्रमुख संस्थानों कि जल्द स्थापना के लिए कार्य आरंभ करने पर जोर दिया गया, साथ ही यह भी कहा गया कि पूर्व और पश्चिम में संस्थानों की स्थापना अतिशीघ्र होनी चाहिए।
उस वक़्त पश्चिम बंगाल में उद्योगों के सर्वाधिक केन्द्रीकरण की दलील देते हुए बिधान चन्द्र रॉय ने भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि पहले संस्थान की स्थापना पश्चिम बंगाल में ही हो। इस प्रकार पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कि स्थापना मई १९५० में "Eastern Higher Technical Institute" के नाम से हुई। .[3] आरम्भ में संस्थान कोलकाता के पूर्वी एस्प्लेनेड में स्थित था और सितमबर १९५० में अपने स्थायी कैम्पस कोलकाता से १२० किमी दक्षिण पूर्व में हिजली, खड़गपुर में विस्थापित किया गया। जब अगस्त १९५१ में पहला सत्र आरम्भ हुआ, तब संस्थान में २२४ छात्र और १० विभागों में ४२ शिक्षक थे। सारी कक्षाएं, प्रयोगशालाएं और प्रशासनिक कार्यालय ऐतिहासिक हिजली कारावास शिविर (अभी शहीद भवन के नाम से जाना जाने वाला) में स्थित थे जहाँ कि अंग्रेजी शासन काल में राजनितिक क्रांतिकारिओं को बंदी बना कर रखा जाता था और प्राण दंड दिया जाता था। इस कार्यालय के भवन में ही द्वितीय विश्व युद्ध के वक़्त U.S. 20th Air Force का मुख्यालय भी था।
१८ अगस्त १९५१ को मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के द्वारा औपचारिक उद्घाटन से पूर्व "भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान" का नाम ग्रहण किया गया था। १५ सितम्बर १९५६ को भारतीय संसद ने "भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (खड़गपुर) अधिनियम" पारित कर दिया जिसके तहत संस्थान को "राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान" का दर्जा मिला। १९५६ में प्रधानमंत्री नेहरु ने संस्थान के पहले दीक्षांत अभिभाषण में कहा:[4]
“ | ऐतिहासिक हिजली बंदी ग्रह जो भारत के बेहतरीन स्मारकों में से एक है अब भारत के नये भविष्य के रूप में बदल रहा है। यह चित्र मुझे उन परिवर्तनों का आभास कराता है जो कि भारत में हो रहे हैं। | ” |
शहीद भवन को १९९० में एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।[5] श्रीनिवास रामानुजन् परिसर को एक नए शैक्षणिक परिसर के तौर पर शामिल किया गया जहाँ तक्षशिला ने २००२ और विक्रमशिला ने २००३ में काम करना प्रारंभ किया।
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