भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (भा.पु.स.) भारत की सांस्कृतिक विरासतों के पुरातत्वीय अनुसंधान तथा संरक्षण के लिए एक प्रमुख संगठन है। इसका प्रमुख कार्य राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों तथा पुरातत्वीय स्थलों और अवशेषों का रखरखाव करना है। इसके अतिरिक्त, प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के अनुसार यह देश में सभी पुरातत्वीय गतिविधियों को विनियमित करता है। यह पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 को भी विनियमित करता है। यह संस्कृति मंत्रालय के अधीन है।[2]
संक्षेपाक्षर | भा.पुरा.सर्वे.वि (ए.एस.आई) |
---|---|
स्थापना | १८६१ |
मुख्यालय | जनपथ, नई दिल्ली - ११००११ |
स्थान |
|
सेवित क्षेत्र |
भारत गणराज्य Republic Of India |
आधिकारिक भाषा |
हिंदी और अंग्रेजी |
पैतृक संगठन |
संस्कृति मंत्रालय, भारत गणराज्य की सरकार |
बजट |
₹662 करोड़ (US$96.65 मिलियन) (2015-2016)[1] |
जालस्थल |
asi |
राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों तथा पुरातत्वीय स्थलों तथा अवशेषों के रखरखाव के लिए सम्पूर्ण भारत को 24 मंडलों में विभाजित किया गया है। संगठन के पास मंडलों, संग्रहालयों, उत्खनन शाखाओं, प्रागैतिहासिक शाखा, पुरालेख शाखाओं, विज्ञान शाखा, उद्यान शाखा, भवन सर्वेक्षण परियोजना, मंदिर सर्वेक्षण परियोजनाओं तथा अन्तरजलीय पुरातत्व स्कन्ध के माध्यम से पुरातत्वीय अनुसन्धान परियोजनाओं के संचालन के लिए बड़ी संख्या में प्रशिक्षित पुरातत्वविदों, संरक्षकों, पुरालेखविदों, वास्तुकारों तथा वैज्ञानिकों का कार्यदल है।
वर्तमान में ३६५० से अधिक प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्व का अवशेष उपस्थित हैं। ये स्मारक विभिन्न काल से संबंधित हैं, प्रागैतिहासिक काल से औपनिवेशिक काल तक और विभिन्न भौगोलिक संरचना में स्थित हैं। वे मंदिरों, मस्जिदों, कब्रों, चर्चों, कब्रिस्तान, किलों, महलों, कदम-कुएं, रॉक-कट गुफाओं और धार्मिक वास्तुकला के साथ-साथ प्राचीन घाटियों और स्थलों को भी शामिल करते हैं, जो प्राचीन निवास के अवशेषों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विभिन्न मंडलों के माध्यम से यह स्मारक और साइटें संरक्षित और रक्षित की जाती हैं, जो पूरे देश में फैली हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के उपकार्यालय इन स्मारकों और संरक्षण गतिविधियों पर शोध करते हैं। इसका मुख्यालय देहरादून में है और इसकी विज्ञान शाखा आगरा में स्थित है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) ब्रिटिश पुरातत्वशास्त्री विलियम जोन्स, द्वारा १५ जनवरी, १७८४ को स्थापित एशियैटिक सोसायटी का उत्तराधिकारी है। सन १७८८ में इसका पत्र द एशियाटिक रिसर्चेज़ प्रकाशित होना आरम्भ हुआ था और सन १८१४ में इसका प्रथम संग्रहालय बंगाल में बना।
ए.एस.आई. अपने वर्तमान रूप में सन १८६१ में ब्रिटिश शासन के अधीन सर ऐलेक्ज़ैंडर कनिंघम द्वारा, तत्कालीन वाइसरॉय चार्ल्स जॉन कैनिंग की सहायता से स्थापित हुआ था। उस समय इसके क्षेत्र में अफगानिस्तान भी आता था। सन १९४४ में, जब मॉर्टिमर व्हीलर महानिदेशक बने, तब इस विभाग का मुख्यालय, रेलवे बोर्ड भवन, शिमला में स्थित था। स्वतंत्रता उपरांत, यह सन १९५८ की प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष धारा के अन्तर्गत आया।
अभी हाल ही में खुदाई में निकले अवशेषों में हर्ष-का-टीला, थानेसर, हरियाणा के अवशेशः हैं। इनसे कुशाण काल से मध्यकाल के भारत की सांस्कृतिक झलक मिलती है।
महानिदेशक
- 1871 - 1885 अलेक्ज़ैंडर कन्निघम
- 1886 - 1889 जेम्स बर्गस
- 1902 - 1928 जॉन मार्शल (पुरातत्वशास्त्री)
- 1928 - 1931 हैरोल्ड हर्ग्रीव्स
- 1931 - 1935 राय बहादुर दया राम साहनी
- 1935 - 1937 जे.एफ.ब्लॅकिस्टन
- 1937 - 1944 राय बहादुर के.एन. दीक्षित
- 1944 - 1948 सर मॉर्टिमर व्हीलर
- 1948 - 1950 एन.पी.चक्रवर्ती
- 1950 - 1953 माधव स्वरूप वत्स
- 1953 - 1968 ए.घोष
- 1968 - 1972 बी.बी.लाल
- 1972 - १९७८ एम० एन० देशपांडे (पुरातत्वशास्त्री)
- १९७८ - १९८१ बी.के.थापर (पुरातत्वशास्त्री)
- 1981−1983 : देबला मित्र
- 1984−1987 : एम एस नगराज राव
- 1987−1989 : जे पी जोशी
- 1989−1993 : एम सी जोशी
- 1993−1994 : अचला मौलिक
- 1994−1995 : एस के महापात्र
- 1995−1997 : बी पी सिंह
- 1997−1998 : अजय शंकर
- 1998−2001 : एस बी माथुर
- 2001−2004 : के जी मेनन
- 2004−2007 : सी बाबू राजीव
- 2009−2010 : के एन श्रीवास्तव
- 2010−2013 : गौतम सेनगुप्त
- 2013−2014 : प्रवीण श्रीवास्तव
- 2014−2017 : राकेश तिवारी
- 2017−2020 : उषा शर्मा
- 2020−2023 : वी० विद्यावती
- 2023− वर्तमान में : यदुवीर सिंह रावत
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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