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2012 में बनी अनुराग बासु की फिल्म विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
बर्फी! 2012 में प्रदर्शित रोमेंटिक हास्य-नाटक हिन्दी फ़िल्म है जिसके लेखक, निर्देशक व सह-निर्माता अनुराग बसु हैं। 1970 के दशक में घटित फ़िल्म की कहानी दार्जिलिंग के एक गूंगे और बहरे व्यक्ति मर्फी "बर्फी" जॉनसन के जीवन और उसके दो महिलाओं श्रुति और मंदबुद्धि के साथ सम्बन्धों को दर्शाती है। फ़िल्म में मुख्य भूमिका में रणबीर कपूर, प्रियंका चोपड़ा और इलियाना डी'क्रूज़ हैं तथा सहायक अभिनय करने वाले सौरभ शुक्ला, आशीष विद्यार्थी और रूपा गांगुली हैं।
बर्फी! | |
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नाटकीय फ़िल्म पोस्टर | |
निर्देशक | अनुराग बसु |
लेखक | अनुराग बसु |
पटकथा | अनुराग बसु |
कहानी |
अनुराग बसु तानी बसु |
निर्माता |
रोनी स्क्रूवाला सिद्धार्थ रॉय कपूर अनुराग बसु |
अभिनेता |
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कथावाचक | इलियाना डी'क्रूज़ |
छायाकार | रवि वर्मन |
संपादक | अकिव अली |
संगीतकार | प्रीतम |
निर्माण कंपनी |
इशना सिनेमा |
वितरक | यूटीवी मोशन पिक्चर्स |
प्रदर्शन तिथियाँ |
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लम्बाई |
150 मिनट[1] |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
लागत | ₹30 करोड़ (US$4.38 मिलियन)[2] |
कुल कारोबार | ₹175 करोड़ (US$25.55 मिलियन)[3] |
लगभग ₹30 करोड़ (US$4.38 मिलियन) के बजट में बनी, बर्फी! विश्व स्तर पर 14 सितम्बर 2012 को व्यापक समीक्षकों की प्रशंसा के साथ प्रदर्शित हुई। समीक्षकों ने अभिनय, निर्देशन, पटकथा, छायांकन, संगीत और शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के सकारात्मक चित्रण की प्रशंसा की। फ़िल्म को बॉक्स-ऑफिस पर बड़ी सफ़लता प्राप्त हुई, परिणामस्वरूप यह भारत और विदेशों में 2012 की उच्चतम अर्जक बॉलीवुड फ़िल्मों की श्रेणी में शामिल हुई तथा तीन सप्ताह पश्चात बॉक्स ऑफिस इंडिया द्वारा इसे "सूपर हिट" (उत्तम सफलता) घोषित कर दिया गया। दुनिया भर में फ़िल्म ने रु.. 175 करोड़ (US$ 25.55 मिलियन) अर्जित किए।
फ़िल्म को 85वें अकादमी पुरस्कारों की सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फ़िल्म श्रेणी के नामांकन के लिए भारतीय आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया। बर्फी ने भारत भर के विभिन्न पुरस्कार समारोहों में कई पुरस्कार और नामांकन अर्जित किए। 58वें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में इस फ़िल्म ने 13 नामांकन प्राप्त किए और इसने सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, कपूर को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता तथा प्रीतम को मिले सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक पुरस्कार सहित सात (अन्य किसी भी फ़िल्म से अधिक) पुरस्कार जीते।
मर्फी उर्फ़ बर्फी जॉनसन (रणबीर कपूर) एक आशावादी, युतिसम्पन्न और मनोहर युवक है जो दार्जिलिंग में एक नेपाली दम्पति के मूक-बधिर बालक के रूप में जन्म लेता है। उसकी माँ का बचपन में ही देहान्त हो जाता है और उसके पिता, जो मोटर चालक हैं, अकेले ही उसका पालन-पोषण करते हैं। बर्फ़ी बचपन से ही अपनी शरारतों के लिए जाना जाता है – जो बिजली का खंभा काटना, मासूम लोगों के साथ ठिठोली करना जैसे कार्य करता है, जिसकी वजह से स्थानीय पुलिस अधिकारी सुधांशु दत्ता (सौरभ शुक्ला) उसका पीछा करता रहता है। बर्फी श्रुति घोष (इलियाना डी'क्रूज़) से मिलता है जो अभी-अभी दार्जिलिंग पहुँची है। श्रुति की रणजीत सेनगुप्ता (जीशु सेनगुप्ता) के साथ सगाई हो चुकि है तथा उनका तीन महीने में विवाह होने वाला है। इसी बीच बर्फी श्रुति से टकराता है और उसे प्यार हो जाता है। वह भी बर्फी से प्यार करने लगती है लेकिन उसकी माँ (रूपा गांगुली) उसे ऐसा न करने के लिए समझाती है क्योंकि वह अपनी अपंगता और धन की कमी की वजह से उसका ध्यान नहीं रख सकता। श्रुति अपनी माँ की सलाह मान लेती है और विवाह कर लेती है। विवाह के पश्चात वह कोलकाता चली जाती है तथा बर्फी से सभी सम्पर्क समाप्त कर देती है।
इसी बीच में बर्फी के पिता बीमार हो जाते हैं और पिता के इलाज के लिए बर्फी को धन की आवश्यकता पड़ती है। बैंक डकैती के असफल प्रयास के पश्चात बर्फी अपने बचपन की स्वपरायण (मंदबुद्धि) दोस्त और अपने धनी पितामह की एकमात्र उत्तराधिकारिणी झिलमिल (प्रियंका चोपड़ा) का फिरौती के लिए अपहरण करने का विचार करता है। अपने आगमन पर वह देखता है कि झिलमिल का तो पहले से ही अपहरण हो चुका है। वह उसे एक वैन में देखता है और चुपके से उसमें घुस कर झिलमिल को फिरौती इकट्ठा करने वाले स्थान से भगा ले जाता है। पुलिस झिलमिल की खोज में है और बर्फी उसे अपने अपार्टमेंट में छिपा लेता है। फिरौती की रकम बर्फी स्वयं प्राप्त कर के जब अपने पिता के ओपरेशन के लिए अस्पताल में भुगतान कर रहा होता है तब उसे पता चलता है कि उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है। उदास बर्फी झिलमिल को उसकी देख-भाल करने वाले के गाँव में छोड़ने की कोशिश करता है, परन्तु वह उसका साथ छोड़ने से मना कर देती है और वो दोनों कोलकाता चले जाते हैं, जहाँ बर्फी झिलमिल को अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर उसका ध्यान रखता है।
छः वर्ष पश्चात बर्फी और श्रुति संयोग से मिलते हैं। श्रुति अपने विवाह से खिन्न है और वे दोनों अपनी दोस्ती को पुनः जागृत करते हैं। बर्फी और श्रुति के सम्बंधों को देख कर, बर्फी से प्यार करने वाली झिलमिल ईर्ष्या और क्रोध की भावनाओं के साथ चिढ़ती है और वह फिर से गुम हो जाती है। श्रुति झिलमिल के लापता होने की रपट लिखवा देती है। दार्जिलिंग पुलिस को रपट के बारे में पता चलता है और वह बर्फी का पुनः पीछा आरम्भ कर देती है तथा अन्ततः उसे गिरफ्तार कर लेती है। उससे पूछताछ चल रही होती है तभी झिलमिल के लिए एक अन्य फिरौती की मांग आती है और इस विनिमय प्रक्रिया में कथित तौर पर उसकी हत्या हो जाती है, हालांकि उसका शव कभी किसी को भी प्राप्त नहीं होता। मामले को खत्म करने के लिए पुलिस झिलमिल की हत्या बर्फी के सर मढ़ने की कोशिश करती है। पुलिस अधिकारी सुधांशु दत्ता, जिसके मन में बर्फी के उपद्रवों की जाँच करते-करते उसके प्रति लगाव उत्पन्न हो चुका है, उसे दूसरा मौका देते हुए श्रुति से उसे दूर ले जाने के लिए कहता है। वह सहमत हो जाती है और आशा करती है कि चूँकि अब झिलमिल इस दुनिया में नहीं है अतः वह बर्फी के साथ रह सकती है।
बर्फी झिलमिल के खो जाने के कारण बुरी तरह से प्रभावित होता है और निरर्थक रूप से श्रुति के साथ रहते हुए झिलमिल को ढूँढता है। झिलमिल के बचपन के घर की स्थिति प्राप्त कर के वह वहाँ उसे तलाशने श्रुति के साथ जाता है। उन्हें पता चलता है कि झिलमिल अभी भी ज़िन्दा है और दोनों अपहरण उसके पिता के मनगढ़ंत थे जिससे वह झिलमिल के न्यास निधि (ट्रस्ट) से पैसा गबन कर सके। दूसरे प्रयास में, दूसरी बार उन्होंने उसकी मौत का नाटक किया जिससे उसे उसकी शराबी माँ से दूर विशेष देखभाल गृह में ले जाया जा सके। बर्फी का झिलमिल से पुनर्मिलन होता है और वो शादी कर लेते हैं, जबकि श्रुति बाकी के सभी दिन बर्फी का साथ मिलने के मौके को हाथ से निकाल देने के पछतावे के रूप में अकेले गुज़ारती है।
कुछ वर्ष पश्चात बर्फी अस्पताल में गम्भीर रूप से बीमार है और मौत के बहुत करीब है। झिलमिल वहाँ पहुँचती है तथा चिकित्सालय के बिस्तर पर बर्फी के साथ लेट जाती है तथा वाचक के रूप में श्रुति कहती है कि दोनों शान्ति से एक साथ मर जाते हैं, वे दोनों एक-दूसरे को जीवन या मृत्यु में पीछे नहीं छोड़ना चाहते थे। फ़िल्म बर्फी और झिलमिल के अन्तिम दिनों को दिखाते हुए समाप्त हो जाती है।
अपनी पूर्व निर्देशित फ़िल्म काइट्स (2010) के निर्माण के दौरान, निर्देशक अनुराग बसु ने दो-पृष्ठों की एक लघु कहानी लिखी जो बाद में बर्फी! की पटकथा के रूप में विकसित हुई।[8] बसु की लिखी पटकथा और फ़िल्म का वाचन दो समयावधियों के बीच आगे-पीछे जाते हैं। बसु का कहना है कि फ़िल्म-पटकथा पात्रों के लिए 30- वर्ष की समयावधि मांगती है अतः फ़िल्म की पृष्ठभूमि (कहानी की शुरुआत) 1970 रखी गयी।[9] जून 2010 में, अनुराग बसु ने पुष्टि की कि फ़िल्म में तीन लोग, एक बहरा और गूंगा आदमी, एक मानसिक रूप से विकलांग लड़की और एक वाचक प्रमुख भूमिका में होंगे।[10] यद्यपि बसु ने निर्दिष्ट किया था कि फ़िल्म उल्लासपूर्ण होगी, फ़िल्म के खामोशी अथवा साइलेंस जैसे पूर्व शीर्षकों के बारे में मीडिया रपटें कहती हैं कि कहानी गम्भीर तथा अंधेरी है।[11] बसु के अनुसार उन्होंने बस्टर कीटन और चार्ली चैप्लिन की मूक फ़िल्मों के दौर से प्रेरित शारीरिक कॉमेडी का प्रयोग इन कलाकारों को श्रद्धांजली के रूप में किया था।[12]
निर्देशक अनुराग बसु ने फ़िल्म में रणबीर कपूर को लेने का निर्णय पटकथा लिखना आरम्भ करने से पूर्व ही ले लिया था और उसके वाचक के रूप में कैटरीना कैफ पहली पसन्द थी।[13][14] मार्च 2010 में, द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया ने प्रतिवेदित किया था कि रणबीर कपूर और कैटरीना कैफ को फ़िल्म में मुख्य भूमिका के लिए तथा शीर्षक खामोशी चुन लिया गया है उसके बाद शीर्षक को बदलकर साइलेंस कर दिया गया, बसु ने इसकी पुष्टि भी की थी।[15] बसु स्वपरायण (मानसिक विकलांग अथवा मंदबुद्धि) लड़की का अभिनय निभाने के लिए कोलकाता से एक नयी लड़की को फ़िल्म में लेना चाहते थे। बसु की पत्नी ने इस अभिनय के लिए चोपड़ा का नाम सुझाया था। परन्तु बसु को आशंका थी कि दर्शक प्रसिद्ध अभिनेत्री होने के नाते "प्रियंका चोपड़ा" को देखेंगे पात्र को नहीं।[16][17] बसु का कहना था कि, "मुझे डर था कि मैं झिलमिल के पात्र के रूप में प्रियंका चोपड़ा देख रहा होउँगा और झिलमिल पात्र ठीक तरह से दर्शाना संभव नहीं हो पाएगा। यह बहुत फ़िल्मों के साथ हो चुका है जहाँ ज्ञात चेहरे ने पात्र को नुकसान पहुँचाया है।"[17] प्रियंका चोपड़ा ने कुछ भाग निभाया लेकिन इसकी घोषणा नहीं की गयी क्योंकि बसु पहले इस पर कार्य करके देखना चाहते थे कि यह कैसा रहता है। तीन दिन की कार्यशाला के पश्चात, आश्वस्त हो गये कि चोपड़ा स्वपरायण लड़की का अभिनय कर सकती हैं तथा प्रतिबिम्बित किया कि वो खुश हैं कि उन्होंने प्रियंका को इस अभिनय के लिए चुना।[17][18] बाद में, बसु ने प्रत्यक्ष रूप में कहा कि उन्होंने स्वपरायण का अभिनय करने के लिए चोपड़ा के अलावा किसी अन्य से आग्रह नहीं किया।[9] फ़िल्म में चोपड़ा का चयन करने के बाद कैफ़ ने अज्ञात कारणों से योजना को छोड़ दिया।[19] मीडिया ने प्रतिवेदित किया कि चोपड़ा को मज़बूत अभिनय वाला भाग मिलने के कारण उन्होंने अपने आप को फ़िल्म से बाहर कर लिया होगा।[20] बाद में, मीडिया ने प्रतिवेदित किया कि असिन ने कैफ के स्थान पर वाचक के अभिनय के लिए प्रस्ताव रखा था।[21] यद्यपि असिन ने फ़िल्म में कभी किसी प्रस्ताव को नहीं चुना। मीडिया रपटों के अनुसार कोई भी अन्य अभिनेत्री फ़िल्म में अभिनय नहीं करना चाहती क्योंकि उनके अनुसार स्वपरायण भाग बहुत मज़बूत है। जुलाई 2010 में, मुंबई मिरर ने लिखा कि चोपड़ा वाचक का अभिनय करने को राज़ी हैं और स्वपरायण के अभिनय को छोड़ रही हैं, अतः अन्य अभिनेत्री को फ़िल्म के लिए निर्धारित किया जा सकता है; चोपड़ा नहीं चाहती कि फ़िल्म रुकी रहे।[22] बसु ने फ़िल्म के विकास की पुष्टि की और कहा, "यह सत्य है कि हम अन्य भाग का पात्र-निर्धारण करने में असमर्थ रहे हैं।" पात्र निर्धारण सम्बंधी अनेक समस्याओं का सामना करने के पश्चात दूसरे महिला पात्र के अभिनय के लिए बसु ने एकदम नया चेहरा चुना।[23] दिसम्बर 2010 के पूर्वार्द्ध में इलियाना डी'क्रूज़ को वाचक एवं कपूर के पहले प्यार की द्वितीय प्रमुख महिला अभिनय के लिए चुना गया।[24]
रणबीर कपूर ने फ़िल्म में एक बहरे और गूंगे आदमी का अभिनय किया। रणबीर के अनुसार, उन्होंने स्क्रीन किंवदंतियों जैसे अकादमी अवार्ड विजेता अभिनेता, रॉबर्टो बेनिगनी, चार्ली चैप्लिन और अपने पितामह राज कपूर से प्रेरणा ली।[25] नायक की शारीरिक विकलांगता के कारण, बसु किसी भी संकेत भाषा का उपयोग नहीं करना चाहते थे, लेकिन फ़िल्म में कुछ व्यावहारिक प्रतिमानों का उपयोग हुआ है।[26] कपूर ने अपने पात्र का वर्णन करते हुए कहा कि वह एक मस्तमौला और अच्छे दिल वाला आदमी है।[27] फ़िल्म में रणबीर के अभिनय के बारे में उनके पिता ऋषि कपूर सबसे अलग विचार रखते हैं। उनके अनुसार - "उन्हें एक ऐक्टर के तौर पर रणबीर की फिल्में पसंद नहीं आतीं, क्योंकि मुझे उसमें अभी वो बात नहीं नजर आती है, जो एक बेहतरीन एक्टर में दिखती हैं।"[28]
प्रियंका चोपड़ा ने झिलमिल का अभिनय किया है। बसु के अनुसार चोपड़ा का अभिनय फ़िल्म का सबसे मुश्किल भाग था।[17] अपनी भूमिका के लिए तैयारी करने के लिए चोपड़ा विभिन्न मानसिक संस्थाओं में गयीं और स्वपरायण लोगों के साथ समय बिताया। उनका कहना है कि उन्होंने अभिनय के लिए इस पर शोध किया था क्योंकि भारत में स्वपरायणता की स्थिति के बारे में जागरूकता बहुत कम है।[29] चोपड़ा ने बताया कि एक हिन्दी फ़िल्म नायिका के रूप में शायद उन्हें हर अवरोध की सम्भावना का सामना करना पड़ा। उन्होंने उल्लिखित किया कि उन्हें झिलमिल बनने के लिए दो पल की आवश्यकता है क्योंकि वह उसके सोच व व्यवहार में भिन्नता होने के कारण उसके चरित्र को समझ नहीं पायी।[30] डी'क्रूज़, जिन्होंने वाचक के रूप में कहानी बयान की है और फ़िल्म के प्रमुख पुरुष पात्र का प्रथम प्यार का अभिनय करती हैं, कहती हैं, "श्रुति, अभिनय के लिए ऐसे संवेदनशील भूमिका है जैसे कि वह फ़िल्म में एक अन्य ही चरण में चली जाती है।"[31] बसु के अनुसार, कपूर, चोपड़ा और डी'क्रूज़ के पात्रों के पश्चात सौरभ शुक्ला अभिनीत पात्र इंस्पेक्टर दत्ता सबसे महत्वपूर्ण है। बसु ने इस पात्र को को "अद्भुत" बताते हुए वर्णन किया है कि जब वह हँसता है तो बाकी पात्रों को रोना आ जाता है।[32]
प्रमुख फोटोग्राफी मार्च 2011 में आरम्भ की।[33][34] बर्फी! का फ़िल्मांकन मुख्य रूप से दार्जिलिंग में जून 2011 और फरवरी 2012 के मध्य किया गया।[35] मार्च 2011 में, बसु ने नगर में फ़िल्मांकन का स्थान निर्धारित करने के लिए कोलकाता की यात्रा की। मुम्बई में फ़िल्मांकन 20 मार्च 2011 को आरम्भ हुआ और मई 2011 तक चला।[36] जून 2011 में नायक नायिका और अन्य सहकर्मियों ने दार्जिलिंग में फ़िल्म शूटिंग की।[37] दिसम्बर 2011 में, कुछ दृश्य काफ़ी दूर कोयंबटूर, मुख्य रूप से पोलाची और ऊटी में फ़िल्माये गये।[38] वो दृश्य जिनमें कपूर के अभिनय पात्र का पुलिसकर्मी छत के ऊपर पीछा करते हैं, कोलकाता में जनवरी 2012 के अन्त में फ़िल्माया गया।[39] चोपड़ा के कुछ विशेष दृश्यों को छोड़कर फ़िल्म की शूटिंग अप्रैल 2012 तक पूर्ण हुई। निर्माता ने फ़िल्म की प्रदर्शन तिथि जुलाई 13 को 31 अगस्त 2012 तक स्थगित कर दिया क्योंकि सितम्बर 2011 में शूटिंग नहीं हो पायी थी और फ़िल्मांकन के इन्तजार में थी।[11][40] बसु ने इलियाना के डबिंग अंश पर अप्रैल 2012 के अन्त में ही कार्य करना आरम्भ कर दिया था क्योंकि डी'क्रूज़ हिन्दी भाषा के साथ सहज नहीं थी और फिल्माने के दौरान सीखना चाहती थीं।[41]
बर्फी! | ||||
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ध्वनि आवरण | ||||
संगीत प्रीतम द्वारा | ||||
जारी | 20 अगस्त 2012 | |||
रिकॉर्डिंग | 2012 | |||
संगीत शैली | फीचर फिल्म साउंडट्रैक | |||
लंबाई | 38:52 | |||
भाषा | हिन्दी | |||
लेबल | सोनी संगीत | |||
निर्माता |
रोनी स्क्रूवाला प्रीतम | |||
प्रीतम कालक्रम | ||||
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प्रीतम ने फिल्म के संगीत और पार्श्व संगीत की रचना की है तथा गीत स्वानन्द किरकिरे, आशीष पण्डित, नीलेश मिश्रा एवं सईद क़ादरी ने लिखे हैं। गीत-सूची में छह गाने हैं।[42] संगीत ब्राज़ील बोस्सा नोवा से प्रभावित थी।[43] प्रियंका चोपड़ा को फ़िल्म में एक गीत गाना था लेकिन यूनिवर्सल म्यूजिक के साथ उसके अनुबंध के कारण यह सम्भव नहीं हो सका।[44] गीत ऐलबम में प्रीतम द्वारा गाया गया "फटाफटी" शीर्षक गीत शामिल है जो अन्तिम फ़िल्म में काम में नहीं लिया गया लेकिन एकल प्रचार 10 सितम्बर 2012 को यूट्यूब पर प्रदर्शित कर दिया गया जो पृष्ठभूमि दृश्यों सहित है। कुछ अतिरिक्त स्वर रणबीर कपूर ने भी गाये हैं। "फटाफटी" (लाजवाब के लिए बंगाली शब्द) गीत भी बंगाली गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य द्वारा रचित है।[45][46]
ट्रेक सूचीकरण | |||||
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क्र॰ | शीर्षक | गीतकार | संगीतकार | गायक | अवधि |
1. | "आला बर्फी" | स्वानन्द किरकिरे | प्रीतम | मोहित चौहान | 5:19 |
2. | "मैं क्या करूँ" | आशीष पण्डित | प्रीतम | निखिल पॉल जॉर्ज | 4:30 |
3. | "क्यों" | नीलेश मिश्रा | प्रीतम | पापोन, सुनिधि चौहान | 4:26 |
4. | "फिर ले आया दिल" | सईद क़ादरी | प्रीतम | अरिजीत सिंह | 5:05 |
5. | "आशियाँ" | स्वानन्द किरकिरे | प्रीतम | श्रेया घोषाल, निखिल पॉल जॉर्ज | 3:56 |
6. | "सावली सी रात" | स्वानन्द किरकिरे | प्रीतम | अरीजीत सिंह | 5:08 |
7. | "आला बर्फ़ी (आवृति)" | स्वानन्द किरकिरे | प्रीतम | स्वानन्द किरकिरे | 5:41 |
8. | "फिर ले आया दिल (आवृति)" | सईद क़ादरी | प्रीतम | रेखा भारद्वाज | 4:45 |
9. | "फिर ले आया दिल (आवृति प्रक्रम)" | सईद क़ादरी | प्रीतम | शफकत अमानत अली | 5:03 |
10. | "आशियाँ (एकल)" | स्वानन्द किरकिरे | प्रीतम | निखिल पॉल जॉर्ज | 4:08 |
11. | "फटाफटी" | अमिताभ भट्टाचार्य | प्रीतम | प्रीतम, रणबीर कपूर | 3:46 |
बर्फी! के गीतों को समीक्षकों से सकारात्मक समीक्षाएँ मिली। हिन्दुस्तान टाईम्स ने इस ऐलबम को 5 में से 4.5 सितारों से सुसज्जित करते हुए लिखा "कुल मिलाकर गाने दोषरहित और आनन्दायक हैं। प्रीतम ने बहुत सफलतम गाने दिये हैं लेकिन लाइफ़ इन ए... मेट्रो की तरह इसकी धुन को भी उसकी आवाज़ में एकरसता तोड़ने के लिए याद किया जाता रहेगा। यहाँ पुनः दुहराव और रिमिक्स नहीं हैं, परन्तु सरलता ही ऐलबम को विजेता बनाती है।"[47] कोईमोई ने ऐलबम को 5 में से 4.5 सितारों से रंगते हुए लिखा है, "सरल शब्दो में, बर्फी! का सबसे उत्कृष्ट संगीत है। बहुत ही विरल होता है जहाँ आप बिना किसी गाने को छोड़े ऐलबम के सारे गाने सुन सकते हो। अतः, बस सुनते जाओ और संगीत का आनंद और बर्फी! की दुनिया जीते जाओ।"[48] बॉलीवुड हंगामा के जोगिंदर टुटेजा ने ऐलबम को 5 में से 3.5 सितारे देते हुए निर्दिष्ट किया है कि "बर्फी! का संगीत बहुत ही अच्छा है और आसानी से प्रीतम की अच्छी गुणवत्ता वाली रचनाओं में से एक है। उनका अंदाज़ पूर्णतया नया है जो बॉलीवुड के मानदण्डों और दावों को, अपनी खुद की एक ध्वनि से खारिज कर देता है।"[49]
सभी अभिनेताओं को दर्शाता फ़िल्म का आधिकारिक ट्रेलर 2 जुलाई 2012 को जारी किया गया। इसमें कोई संवाद नहीं था, इशारों और अनुयोजनों के माध्यम से हास्य चित्रित किया गया था।[50] चोपड़ा के पात्र को ज़्यादा नहीं दिखाया गया था जिससे दर्शक इस पात्र के बारे में अपनी जिज्ञासा के अनुसार अधिक जानकारी नहीं जुटा पायें और फ़िल्म के प्रदर्शन के समय ही पता चले। यूटीवी की कार्यकारी निदेशक (विपणन) शिखा कपूर ने स्पष्ट किया, "प्रियंका ने बर्फी में एक बहुत ही विशेष पात्र का अभिनय किया है, अतः हम इसका रहस्य बरकरार रखना चाहते हैं। प्रथम ट्रेलर में, बर्फी — रणबीर द्वारा अभिनीत — का अनावरण किया जायेगा। हमारी प्रियंका को फ़िल्म के जारी होने तक दर्शाने की कोई योजना नहीं है।"[51] यूटीवी मोशन पिक्चर्स ने फ़िल्म के विपणन लिए यूट्यूब पर द फ्लेवर ऑफ़ बर्फी (The Flavour of Barfi) नामक एक ऐप्लिकेशन सृजित की। ऐप्लिकेशन में रणबीर कपूर के पात्र का चित्रण किया गया है। उपयोगकर्ता क्रियाएँ टाइप कर सकते हैं जिन्हें वह पात्र कर के दिखाता है। एप्लीकेशन में दो भाग दिखाये गये हैं: एक जिसमें उपयोगकर्ता बर्फी के मूड बदल सकते हैं और दूसरा जिसमें बर्फी को फ्लर्ट करते हुए देखा जा सकता है।[52] फ़िल्म का भारत के विभिन्न शहरों में प्रचार किया गया। फ़ीनिक्स मॉल, बंगलौर में फ़िल्म के प्रचार के दौरान उत्तेजित भीड़ ने उन्हें कलाकरों से अलग करने वाली बाड़बंधी को तोड़ डाला।[53] 12 सितम्बर 2012 को ब्रिटिश रेडियो निर्माता, मर्फी रेडियो ने दावा किया कि उनका मर्फी बेबी का ट्रेडमार्क लोगो, जो उन्होंने 1970 में विज्ञापन में काम लिया था, 'बर्फी!' में बिना अनुमति के काम में लिया गया है।[54] निर्माता सिद्धार्थ राय कपूर ने बताया कि उनके पास मर्फी का कानूनी नोटिस आया है लेकिन उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है एवं ब्रांड को एक "बहुत सकारात्मक नज़रिये" में दिखाया गया है।[55]
'बर्फी!' 14 सितम्बर 2012 को भारत के 700 सिनेमाघरों में 1300 पर्दों पर प्रदर्शित की गयी।[56] फ़िल्म प्रदर्शन के पश्चात विभिन्न ब्लॉगों और समाज मीडिया जालस्थलों ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब पर निर्देशक पर साहित्यिक चोरी के आरोप लगाये गए।[57] मीडिया ने आगे आरोप लगाया कि बसु ने दृश्यों के लिए मूल स्रोतों को श्रेय देने की कोशिश नहीं की। यूट्यूब पर कॉप्स, द एडवेंचर, सिटी लाइट्स, सिंगइन इन द रैन, प्रोजेक्ट ए, द नोटबुक और बेनी एंड जून जैसी हॉलीवुड फ़िल्मों के साथ साथ-साथ तुलना दिखाती हुई विडियो अपलोड की गयी। उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि 'बर्फी!' के संगीत निर्देशक प्रीतम ने इसका पार्श्व संगीत फ़्रान्सीसी फ़िल्म एमीली से प्रतिलिपी किया है।[58] बसु ने फ़िल्म का यह कह के बचाव किया कि वो इन फ़िल्मों से प्रेरित थे और 'बर्फी!' का कथानक, पटकथा, पात्र और स्थितियाँ सब मूल रूप से इसके ही हैं।[59] बसु ने यह भी कहा कि वो कीटन और चैप्लिन को श्रद्धांजली दे रहे हैं।[12] बर्फी! का भारत की ओर से ऑस्कर में सर्वश्रेष्ट विदेशी भाषा फ़िल्म के नामांकन के रूप में चुने जाने की साहित्यिक चोरी के कारण निंदा की गयी, लेकिन ऑस्कर चयन समिति की प्रमुख मंजू बोरह ने यह कहते हुए फ़िल्म का बचाव किया कि "बर्फी! बाहर भेजने योग्य है। चयन एक खुली प्रक्रिया के तहत किया गया है जिसमें तीन-चार दौर तक काफ़ी विचार-विमर्श किया गया है और उसके बाद ही अन्तिम तीन सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में से इसे चुना गया है।"[60]
रिलायंस होम इंटरटेनमेंट ने एनटीएससी प्रारूप के नियमों का पालन करते हुए सभी क्षेत्रों में एकल डिस्क पैक के साथ बर्फी! को डीवीडी और ब्लू-रे डिस्क पर मध्य-नवम्बर 2012 को प्रकाशित किया।[61] डीवीडी और ब्लू-रे डिस्क को "फटफटी – पर्दे के पिछे" की निर्माण सामग्री और हटाये गये दृश्यों के बोनस के साथ बाजार में उतारा गया।[62] विडीयो सीडी संस्करण भी उसी समय प्रकाशित किया गया।[63] फ़िल्म का प्रसारण करने के अनन्य अधिकार ज़ी नेटवर्क और यूटीवी मूवीज़ द्वारा क्रय किया गया। जिसमें यूटीवी प्रस्तुतियों के साथ फ़िल्म के अन्य प्रीमियर अधिकार भी शामिल हैं। ये अधिकार फिल्म के प्रीमियर (दोनों चैनलों के लिए) सहित सात वर्षों के लिए हैं। ज़ी नेटवर्क के पास कुछ चयनित प्रदर्शन अधिकार हैं बल्कि यूटीवी मूवीज के पास बहुविध (गुणित) प्रदर्शन अधिकार होंगे। सौदे की कीमत का फ़िल्म निर्माण कंपनी द्वारा खुलासा नहीं किया गया।[64]
फ़िल्म के प्रदर्शन, निर्देशन, पटकथा, छायांकन, संगीत और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के सकारात्मक प्रतिचित्रण सहित समालोचकों द्वारा फ़िल्म को सकारात्मक समीक्षाएँ मिली।[65] समुच्चय समीक्षा साइट रिव्युगैंग ने 11 अनुभवी समीक्षक समीक्षाओं के आधार पर इस फ़िल्म को 10 में से 7 सितारों के साथ तारांकित किया।[66] रोटन टोमेटोज नामक फ़िल्म समीक्षक साइट ने अपने श्रेणी निर्धारण में फ़िल्म को 83% शुद्ध अंक प्रदान किये है।[67] जी न्यूज इस फ़िल्म को पाँच में से पाँच सितारे देते हुए कहा है कि अनुराग बसु की फ़िल्म 'बर्फी!' दर्शकों के लिए परिपूर्ण हास्य उपचार है। जैसे कि ऊपर चर्चा की जा चुकी है फ़िल्म निर्माताओं को जो विकलांग किरदारों को सुस्त बनाकर फ़िल्म को पकाऊ और उबाऊ बनाते हैं, को 'बर्फी!' से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।[68] द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया की मधुरीता मुख़र्जी ने इसे 4/5 अंक देते हुए कहा है कि, "रणबीर ने अपने अब तक के कैरियर के सबसे चुनौतीपूर्ण प्रदर्शन से सबको भौंचक्का कर दिया। पारंपरिक शांत-तकिया कलाम की बैसाखी, धमाकेदार-डायलॉगबाज़ी, नग्न शरीर प्रदर्शन और ऐसे ही किसी अन्य विषय के उपयोग के बिना; यह आपको अचंभित कर देती है। प्रियंका के लिए यहाँ एक ही शब्द है – वाह-वाह! एक ऐसे पात्र के अभिनय में जहाँ उन्हें (मानसिक विकलांगता दर्शाने हेतु) कम भाव दिखाने की आवश्यकता थी, उन्होंने यह कार्य बहुत शानदार ढंग से किया है।"[69] बॉलीवुड हंगामा के तरण आदर्श ने यह कहते हुए कि "बर्फी! एक ताजा हवा के झोंके के एहसास के समान है। इसका महत्त्वपूर्ण अभिभूत यह है कि यह एक शक्तिशाली भावना : खुशी, के साथ छोड़ती है।" फ़िल्म को 5 में से 4 सितारे फ़िल्म के पक्ष में दिये हैं।[70] इंडो एशियन न्यूज सर्विस ने फ़िल्म को 5 में से 4 सितारे देते हुए कहा है कि, "बर्फी! सम्भव रूप से फ़िल्म के रूप में आधुनिक कृत्तियों के बहुत निकट है। इसे भूल जाना अपराध होगा। यह गले लगाने के लिए उदात्त प्रेमी की सन्ध्या है"।[71] डेली न्यूज एंड एनालिसिस की अनिरुद्धा गुहा ने 5 में से 4 अंकों के साथ फ़िल्म अभ्युति की "बर्फी को भूला नहीं जा सकता। यह धैर्य की मांग है, लेकिन अदायगी अविश्वसनीय है"।[72] वेबदुनिया पर फ़िल्म को 3.5/5 रेटिंग मिली।[73]
द टेलीग्राफ के प्रतिम दासगुप्ता ने कहा कि "बर्फी! की प्रतिभा यह है कि पूरी कहानी कोई कहानी नहीं सुनाती, यह पूर्णतया निर्देशक की एक उनकी कुशलता तेज में भव्य प्रतिभा का शीर्ष प्रकट करती है। केवल वो जिसने दरवाजे पर मौत देखी है जीने के लिए खिड़कियाँ खोल सकता है।"[74] फ़िल्मफ़ेर ने 5 में से 4 भरते हुये वर्णित किया है, "बर्फी! वह दुर्लभ फ़िल्म है जो आपके चेहरे पर खुशी ला सकती है और उसी दृश्य में आपको रुला भी सकती है। इसकी तकनीकी प्रतिभा केवल इसकी भावनात्मक जटिलता और गहराई से बेहतर है। प्रीतम का संगीत पहले से ही शानदार कहानी के लिए एक अच्छा मूक युग का आकर्षण पैदा करता हैं और इसे एक अवसर बनाता है जिसके लिए साधारणतया शब्द पर्याप्त नहीं होते।"[75] रीडिफ.कॉम पर राजा सेन ने इसे 3.5/5 सितारे देते हुए लिखा है, "बर्फी! की कथा को आगे-पीछे करने के लुभावन रूप सहित एक अच्छी तरह से तैयार की गयी पटकथा है लेकिन अन्त में ये सब दक्षिण (दायाँ) की ओर जाता है।"[76] हिन्दुस्तान टाईम्स के लिए लिखने वाली अनुपमा चोपड़ा ने इसे 5 में से 3 सितारे देते हुए लिखा है कि, "[य]ह फ़िल्म प्यार के साथ बनाई गयी है, शानदार नक्काशी विगनेट्स से इसे बल मिला, रणबीर कपूर के अद्भूत प्रदर्शन किया और तथा प्रीतम ने शानदार संगीत दिया है और अब तक, मेरे लिए, बर्फी मेरे लिए निराशा का अनुभव करने के लिए एक बिन्दु भी नहीं दिखाती, लेकिन फ़िल्म अपने भागों के संकलन से अधिक नहीं है।"[77] सीएनएन आईबीएन के राजीव मसन्द ने इसे 5 में से 3 सितारे देते हुये कहा है कि, "बर्फी के पास महान सिनेमा का दम है, लेकिन जैसी यह है आदरणीय फ़िल्म है अभी भी उन सबसे बेहतर है जो कुछ आप देखते हैं।"[78] इसके विपरित, आउटलुक की नम्रता जोशी को लगता है कि "फ्लैशबैक के भीतर फ्लैशबैक से वाचक आडम्बरी और अनाड़ीपन का रास्ता चुनता है, रहस्यमय मोड़ बिल्कुल व्यर्थ हैं [....] जो बहुत ही चालाकी भरे और अपने आप में जानबूझकर भव्य बनाने की कोशिश करते हैं जो खासे सतही और प्लास्टिक लगते हैं।"[79]
बर्फी! ने विभिन्न श्रेणियों में नामांकन और पुरस्कार प्राप्त किये जो प्रमुखतः स्व-अभिज्ञान से लेकर इसके छायांकन, निर्देशन, पटकथा, संगीत और पात्र अभिनय तक है। फ़िल्म 85वें अकादमी अवार्ड्स के लिए विदेशी भाषा फ़िल्म के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चयनित हुई।[80] फ़िल्म को 58वें फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड्स के लिए तेरह नामांकन प्राप्त किये जिनमें से सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, कपूर को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, प्रीतम को सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक सहित 7 में जीत दर्ज की।[81][82] 'बर्फी!' ने 19वें स्क्रीन अवार्ड्स में तेईस नामांकन बटोरे जिनमें कपूर को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, बसु को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और कपूर-चोपड़ा को जोड़ी नम्बर वन (सर्वश्रेष्ठ युग्म) सहित नौ पुरस्कार जीते।[83][84][85] 14 वें जी सिने अवार्ड्स में, 'बर्फी!' को नौ नामांकन मिले जिनमें से सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, बसु को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और चोपड़ा को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सहित आठ उड़ा लिए।[86][87]
फ़िल्म पर इसके महत्त्वपूर्ण दृश्यों के लिए विभिन्न पश्चिमी फ़िल्मों जैसे चार्ली चैप्लिन की द एडवेंचरर एंड सिटी ऑफ़ लाइट्स, जबकि अन्य द नोटबुक, सिंगिंग इन द रैन और भारतीय फ़िल्म कोशिश से प्रतिलिपि करने सम्बंधी साहित्यिक चोरी के आरोप लगे। यहां तक कि पृष्ठभूमि संगीत थोड़ा अधिक ही एमिली में प्रयुक्त धुन की तरह लगता है।[88] अकादमी पुरस्कारों के लिए 'बर्फी!' को भेजने के निर्णय पर ज़ी न्यूज़ ने लिखा, "सभी के बाद फ़िल्म जो देश और सौ वर्ष पुराने फ़िल्म उद्योग को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में निरूपित करेगी और वहाँ एक ऐसी फ़िल्म को भेजने के फैसले के कारण जो पहले से ही साहित्यिक चोरी आरोपों का सामना कर रही है निश्चिततया विभिन्न हलकों में असंतोष की तरंगों को भेज रहा है।"[57] इन आलोचनाओं के उत्तर में निर्देशक ने कहा, "मैंने उस प्रत्येक फ़िल्म से चोरी की है जो कभी बनाई गयी है। मैं इसे प्यार करता हूँ। यदि मेरे कार्य में कुछ है तो वह यह है कि मैनें यह यहाँ से और वह वहाँ से लिया और उन दोनों को मिश्रित कर दिया।[89]
प्रदर्शन की तिथि से ही 'बर्फी!' ने भारतभर के मल्टीप्लेक्सों को 80-90% तक भर दिया, लेकिन सीमित प्रदर्शन के लिए निचला स्तर ही पा सकी।[90] फ़िल्म ने अपने उद्घाटन के दिन ही रु.. 8.56 करोड़ (US$ 1.25 मिलियन) अर्जित करने में सफल रही।[91] इसके द्वितीय दिन में कमाई में 35% की वृद्धि हुई और फ़िल्म दूसरे दिन रु.. 11.50 करोड़ (US$ 1.68 मिलियन) की कमाई करने में सफल रही।[92] इसके प्रथम सप्ताह में रु.. 34 करोड़ (US$ 4.96 मिलियन) अर्जित किये।[56] 'बर्फ़ी!' अपने प्रथम सप्ताह में कुल कमाई को रु.. 56.46 करोड़ (US$ 8.24 मिलियन) तक पहुंचाने में सफल रही,[93] और आठवें दिन तक रु.. 3.25 करोड़ (US$ 4,74,500) अर्जित कर लिए जबकी हीरोइन सिनेमाघरों में लग चुकी थी।[94] बर्फी! ने द्वितीय सप्ताहांत में रु.. 15 करोड़ (US$ 2.19 मिलियन) कमाये।[95] 'बर्फी!' का दूसरा सप्ताह भी अच्छा रहा जहाँ इसने कुल मिलाकर रु.. 24.18 करोड़ (US$ 3.53 मिलियन) अर्जित किये।[96] तीसरे सप्ताह में, फ़िल्म ने कुल मिलाकर रु.. 15.75 करोड़ (US$ 2.3 मिलियन) उपार्जित किये[97] और चतुर्थ सप्ताह में भी अपनी आय में रु.. 6.15 करोड़ (US$ 0.9 मिलियन) जोड़े।[98] अपने सिनेमाई रिलीज अवधि के दौरान, 'बर्फी!' ने कुल मिलाकर भारत में रु.. 106 करोड़ (US$ 15.48 मिलियन) अर्जित किये।[99] फिल्म ने अखिल भारतीय वितरकों को मिलाकर रु.. 50 करोड़ (US$ 7.3 मिलियन) उपार्जित करने में सफलता प्राप्त की।[100] 'बर्फी!' 2012 की उच्चतम अर्जक फ़िल्मों में से एक है और तीन सप्ताह की सफलता के पश्चात बॉक्स ऑफिस इंडिया ने इस फ़िल्म को "सुपरहिट" घोषित किया।[101][102][103] विश्वस्तर पर फ़िल्म की कमाई रु.. 175 करोड़ (US$ 25.55 मिलियन) तक पहुँच गई।[3][104]
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, 'बर्फी' ने प्रथम सप्ताहांत में लगभग रु.. 12.42 करोड़ (US$ 1.81 मिलियन) कमाये जो राजनीति (2010) से अधिक है जो रु.. 11.58 करोड़ (US$ 1.69 मिलियन) – कमाने के साथ रणबीर कपूर की उच्चतम अर्जक फ़िल्म थी।[105] इसने 17 दिन में लगभग US$5.3 मिलियन कमाये।[106] इसके अन्त तक, 'बर्फी!' ने भारत के बाहर $6.25 मिलियन बनाये और 2012 की उच्चतम अर्जक बॉलीवुड फ़िल्मों में से एक रही।[107]
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