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अकार्बनिक रसायन में फ़ास्फ़ोरिक अम्ल तथा क्षारों की क्रिया से जो लवण बनते हैं, वे फ़ॉस्फ़ेट (Phosphate) कहलाते हैं। कार्बनिक रसायन में फास्फोरिक अम्ल के इस्टर को फॉस्फेट या आर्गैनोफास्फेट कहते हैं। कार्बनिक फास्फेटों का जैवरसायन और पर्यावरण में बहुत महत्व है। अकार्बनिक फास्फेट [खान|खानों]से निकाले जाते हैं और उनसे फॉस्फोरस प्राप्त किया जाता है जो कृषि एवं उद्योगों में उपयोगी है।
यदि ऑर्थोफ़ॉस्फ़ोरिक अम्ल को सोडियम हाइड्रॉक्साइड के साथ मिलाया जाय, तो अम्ल और क्षार के अनुपातों के अनुसार तीन ऑर्थोफ़ॉस्फ़ेट बनेंगे, जो क्रमश: मोनोसोडियम-डाइहाइड्रोजन-फॉस्फेट, डाइसोडियम-हाइड्रोजन-फॉस्फेट तथा ट्राइसोडियम फ़ॉस्फ़ेट कहलाते हैं। इन्हें प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक फ़ॉस्फ़ेट भी कहा जाता है। फ़ॉस्फ़ोरिक अम्ल के त्रिक्षरकी होने के कारण तीन प्रकार के लवण फ़ॉस्फ़ेट संभव हैं। इन तीनों प्रकारों में सोडियम, पोटैशियम तथा अमोनियम के फ़ॉस्फ़ेटों का छोड़कर प्राय: अन्य सभी द्विक्षारकी तथा त्रिक्षारकी फ़ॉस्फ़ेट जल में अविलेय हैं। संपूर्ण मोनोफ़ास्फ़ेट जल में विलेय होते हैं। प्राय: सभी फ़ॉस्फ़ेट सलफ्यूरिक अम्ल, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, नाइट्रिक अम्ल, फ़ास्फ़ोरिक अम्ल (सीसा, टिन, पारद तथा बिस्मथ फ़ॉस्फ़ेटों के अतिरिक्त), तथा ऐसीटिक अम्ल (सीसा, ऐलुमिनियम तथा लौह फ़ॉस्फ़ेटों के अतिरिक्त) में विलेय हैं। सभी त्रिक्षारकी फ़ॉस्फ़ेट अत्यंत क्षारीय होते हैं, द्विक्षारकी कम क्षारीय तथा प्राथमिक फ़ॉस्फ़ेट अल्प अम्लीय होते हैं। ऑर्थोफ़ॉस्फ़ेटों को संबंधित तत्वों के ऑक्साइड, हाइड्रॉक्साइड या कार्बोनेट तथा फ़ॉस्फ़ोरिक अम्ल की क्रिया से प्राप्त किया जाता है। अल्प विलेय फ़ॉस्फ़ेटों को उभ्य अपघटन से प्राप्त किया जा सकता है। गरम करने पर त्रिक्षारकी फ़ॉस्फ़ेट स्थायी रहते है तथा द्विक्षारकी पाइरोफ़ॉस्फ़ेट बनते हैं, जबकि प्राथमिक फ़ॉस्फ़ेटों को गरम करने पर जल की हानि होने से मेटाफ़ॉस्फ़ेट बनते हैं। पाइरो तथा मेटाफ़ॉस्फ़ेट पानी में अल्प विलेय हैं। क्रिस्टलीय फ़ॉस्फ़ेटों में ऑर्थोफ़ॉस्फ़ेट (PO4-3) पाइरोफ़ॉस्फ़ेट (P2O7-4) तथा ट्राइफ़ॉस्फ़ेट (P3O10-5) प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त टेट्राफ़ॉस्फ़ेट तथा उच्चतर फ़ॉस्फ़ेटों की उपस्थिति भी बताई जाती हैं, किंतु एक्स-रे तथा रासायनिक विधियों से उनकी पुष्टि नहीं होती। अक्रिस्टली फ़ॉस्फ़ेटों में काँचीय फ़ॉस्फ़ेट बड़े महत्वपूर्ण हैं, जो मेटाफ़ॉस्फ़ेटों को उच्च ताप पर गलाकर फिर मंद गति से ठंढा करने पर प्राप्त होते हैं। इन्हें चक्रीय फ़ॉस्फ़ेट भी कहा जाता है। ये जलीय विद्युद्विश्लेषण पर ऋणायन उत्पन्न करते हैं। क्षारों की उपस्थिति में मेटाफ़ॉस्फ़ेट शृंखलाएँ सरलता से टूट जाती हैं। ऑर्थोफ़ॉस्फ़ेटों का भी जलीय विद्युत-विश्लेषण होता है।
ऑर्थोफ़ॉस्फ़ेट अमोनियम मालिब्डट तथा नाइट्रिक अम्ल के साथ गरम किए जाने पर पीले रंग का अवक्षेप बनाते हैं। यह इनकी परीक्षा में सहायक होता है। सिवर नाइट्रेट के साथ मेटाफ़ॉस्फ़ेट श्वेत अवक्षेपण बनाते हैं, जबकि ऑर्थोफ़ॉस्फ़ेट पीला। मैग्नीशियम सल्फेट को अमोनिय हाइड्रॉक्साइड के साथ क्षारीय बनाकर जब आर्थोफ़ॉस्फ़ेट के साथ मिश्रित करके गर्म किया जाता है, तब एक श्वेत अवक्षेप बनता है, किंतु मेटाफ़ॉस्फ़ेट के साथ कोई अवक्षप नहीं बनता।
फ़ॉस्फ़ेटों का सर्वाधिक प्रयोग फ़ॉस्फ़ेट उर्वरकों के निर्माण में होता है। प्रकृति में चट्टानीय-फ़ॉस्फ़ेटों में ट्राइकैल्सियम फ़ॉस्फ़ेट पाया जाता है, जिसपर सल्फ़्यूरिक अम्ल की क्रिया से सुपरफॉस्फेट बनाया जाता है। यह उर्वरक के रूप में प्रचुरता होता है। फॉस्फोरिक अम्ल की क्रिया से त्रयंगी फ़ॉस्फ़ेट बनता है जो अत्यंत सांद्र फॉस्फेट उर्वरक है। अस्थिनिर्माण तथा अन्य शारीरिक प्रक्रियाओं में फॉस्फेट महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण करते हैं। ठीक से बीज उत्पादन के लिए पौधों को फॉस्फेट की आवश्यकता पड़ती है। फ़ॉस्फ़ेटों को धातु-पालिशों के बनाने, चीनी के परिष्कार किण्वीकरण तथा खमीर उत्पादन, पेय पदार्थों के निर्माण तथा पेट्रोल के शोधन के काम में लाया जाता है। सोडिय फॉस्फेट का सर्वाधिक प्रयोग ऊनी तथा सूती वस्त्रों से तेल तथा चिकनाई के दाग छुड़ाने में होता है। रँगाई में डाइसोडिय फॉस्फेट तथा फोटोग्राफी में सोडियम, पोटैशियम तथा चाँदी के फॉस्फेटों का प्रयोग होता है। ट्राइकैल्सियम फॉस्फेट को भोज्य पदार्थ (विशेषतया पावरोटी बनाने में), जल से फ्लोरीन दूर करने, खाने के लवण को शुष्क बनाने तथा चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने में प्रयुक्त किया जाता है। ऐलुमिनियम मेटाफॉस्फेट का प्रयोग काच के निर्माण में भी होता है।
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