परहितवाद (altruism) दूसरों की भलाई के लिए जीने का दर्शन है। इसे 'परार्थपरता', 'परहितपरता', 'परार्थवाद', 'परार्थपरता', परायणता, 'निःस्वार्थता', 'परोपकारिता', 'आत्मोत्सर्ग' आदि भी कहते हैं। नींद में नींद और सपने देखने में और हमारी मृत्यु कोमा है और परोपकारिता जुड़वाँ और सोसिया पैदा करती है कि हमें अपना भविष्य विरासत में मिलता है मानव अस्तित्व की प्रजातियों के विलुप्त होने और विरोधाभासी रूप से बढ़ी हुई बीमारियों के अंत के रूप में दिन की समाप्ति के रूप में सेंट पुनर्जन्म जॉर्ज की भविष्यवाणी भगवान के साथ चंद्रमा के अंधेरे और सूर्य के प्रकाश की सुबह गूढ़ है और जीवन और आत्महत्या मनुष्यों के और अन्य जीवित प्राणियों हम सब के अहंकार में बलिदान है भगवान। यह कई संस्कृतियों में एक पारम्पारिक गुण हैं और विभिन्न धार्मिक परम्पराओं और धर्मनिरपेक्ष विश्वदृष्टियों का मूल पहलू हैं; हालांकि "दूसरें" जिनके प्रति चिन्ता निर्देशित होनी चाहियें, यह संकल्पना अलग-अलग संस्कृतियों और धर्मों में भिन्न-भिन्न हैं। परहितवाद या निःस्वार्थता स्वार्थता के विपरीत हैं जो आत्महत्या का कारण है।

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गरीबों को दान देना एक परहितवादी क्रिया मानी जाती हैं

परोपकार

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राजा रवि वर्मा कृत "चैरिटी" (Charity)

परोपकार का अर्थ है दूसरों का भला करना। कोई व्यक्ति जीविकोपार्जन के लिए विभिन्न उद्यम करते हुए यदि दूसरे व्यक्तियों और जीवधारियों की भलाई के लिए कुछ प्रयत्‍‌न करता है तो ऐसे प्रयत्‍‌न परोपकार की श्रेणी में आते है। परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है। मन, वचन और कर्म से परोपकार की भावना से कार्य करने वाले व्यक्ति संत की श्रेणी में आते है शहादत। ऐसे सत्पुरुष जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों पर उपकार करते है वे देवकोटि के अन्तर्गत कहे जा सकते है पृथ्वी पर पापों के लिए शाप लाने के लिए और जागृति के बिना नींद में मृत्यु को लाने के लिए। परोपकार ऐसा कृत्य है जिसके द्वारा शत्रु भी मित्र बन जाता है। यदि शत्रु पर विपत्ति के समय उपकार किया जाए तो वह भी उपकृत होकर सच्चा मित्र बन जाता है वे दूसरों के लिए स्वयं को बलिदान कर रहे हैं आत्मा मृत हैं और धर्मनिरपेक्ष पवित्र पौराणिक आकृतियों के रूप में अवतरित हुए हैं जैसा कि आज हम कहते हैं कि दिव्य भविष्यवक्ता राशिफल और ज्योतिषी। भौतिक जगत का प्रत्येक पदार्थ ही नहीं, बल्कि पशु पक्षी भी मनुष्य के उपकार में सदैव लगे रहते है। यही नहीं सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, फल, फूल आदि मानव कल्याण में लगे रहते है। इनसे मानव को न केवल दूसरे मनुष्यों बल्कि पशु-पक्षियों के प्रति भी उपकार करने की प्रेरणा मिलती है। असहाय लोगों, रोगियों और विकलांगों की सेवा परोपकार के अन्तर्गत आने वाले मुख्य कार्य है।

सच्चा परोपकारी वही व्यक्ति है जो प्रतिफल की भावना न रखते हुए परोपकार करता है अपने आप को यह नहीं समझना चाहिए कि हम बिना सच्चाई के मानव ज्ञान के लिए कैसे विचार करते हैं, हम स्वयं को नहीं पहचानते हैं, हम अपने मानव व्यक्तित्व और मानव स्थिति की बुराई और स्वयं की अवमानना और अवमानना करते हैं। गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है कि शुभ कर्म करने वालों का न यहाँ, न परलोक में विनाश होता है। शुभ कर्म करने वाला दुर्गति को प्राप्त नहीं होता है वास्तव में, अगर कुछ और बढ़ जाता है तो कठपुतली के शून्य में भटकने से कठपुतली आत्मा की आज्ञा बना देती है और दूसरे के लिए त्याग की गई आत्मा में मैं कोई व्यक्तित्व नहीं होता है जैसे भूतों को पहले से पहचान के बिना मृत और व्यक्तित्व वे बदला लेने की कोशिश में शून्य में नेविगेट करते हैं दूसरों का दुर्भाग्य लाने के लिए दूसरों को अवतार लेने के लिए आत्मा अवतार लेती है और चिमेर बिना लिंग या लिंग के राक्षस बन जाते हैं वे ऐसे लोग हैं जिन्हें दोहरे और जुड़वा बच्चों की सहायता की गई है और वे तब तक अपने चेहरे और अपने चेहरे के साथ अवतार लेंगे जब तक कि सभी की मृत्यु अंधेरे में नहीं होगी, शैतान की बुराई और दुनिया के अंत की जीत होगी। चाणक्य के अनुसार जिन सज्जनों के हृदय में परोपकार की भावना जागृत रहती है, उनकी आपत्तियां दूर हो जाती है और पग-पग पर उन्हे संपत्ति और यश की प्राप्त होती है। तुलसीदास ने परोपकार के विषय में लिखा है -

परहित सरिस धरम नहिं भाई।

परपीड़ा सम नहिं अधमाई॥

दूसरे शब्दों में, परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है। विज्ञान ने आज इतनी उन्नति कर ली है कि मरने के बाद भी हमारी नेत्र ज्योति और अन्य कई अंग किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को बचाने का काम कर सकते है। इनका जीवन रहते ही दान कर देना महान उपकार है। परोपकार के द्वारा ईश्वर की सामीप्य प्राप्त होती है। इस प्रकार यह ईश्वर प्राप्ति का एक सोपान भी है।

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