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हिन्दू देवता विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
परमेश्वर का शाब्दिक अर्थ 'परम ईश्वर' है। इसके अन्य पर्याय है ईश्वर, भगवान, खुदा, परमात्मा आदि! संसार में जितने भी आस्तिक व्यक्ति हैं उनकी मान्यता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति का मूल कारण परमेश्वर अर्थात ईश्वर है! ईश्वर की भिन्न-भिन्न मान्यताओं को लेकर विश्व में अनेक धर्म और संप्रदाय हैं! फिर भी ईश्वर को लेकर कुछ बातों में सारे संप्रदाय एकमत है और वो ये है, कि ईश्वर स्रष्टा( संसार का रचयिता), सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, अमर और दयालु है! ईश्वर को लेकर बाकी अन्य मान्यताएं, जैसे उसके रूप और अन्य गुण सभी धर्म और संप्रदाय में भिन्न-भिन्न है! जहां एक तरफ नास्तिक व्यक्ति इसे एक कल्पना मात्र मानते हैं तो वही आस्तिक व्यक्ति, ईश्वर पर आस्था और भरोसा रखते हैं! अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण एवं ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए आस्तिक व्यक्ति ईश्वर-भक्ति करते हैं और भिन्न-भिन्न स्थानों की तीर्थ यात्रा करते हैं!
शैव सम्प्रदाय, हिंदू धर्म के 4 मुख्य सम्प्रदाय में से एक है। हिंदू धर्म की अन्य मुख्य सम्प्रदाय: वैष्णव सम्प्रदाय, स्मार्त सम्प्रदाय व शाक्त सम्प्रदाय हैं। शैव सम्प्रदाय में भगवान शिव को सर्वोच्च इश्वर माना जाता है। शैव सिद्धांत, शैव सम्प्रदाय के 6 मुख्य विचारधारा विद्यालयों में से एक है। शैव सिद्धांत के अनुसार भगवान शिव की 3 परिपूर्णता या पहलु हैं। यह तीन परिपूर्णता:- परशिव, पराशक्ति एवं परमेश्वर हैं। परमेश्वर व पराशक्ति की परिपूर्णता में भगवान शिव का आकार होता है परन्तु परशिव की परिपूर्णता में भगवान शिव निराकार हैं। परमेश्वर की परिपूर्णता में वह मनुष्य के शरीर जैसा आकार लेते हैं जिसमें उनके हाथ में त्रिशूल, गले में सांप और हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में होता है।
परमेश्वर की परिपूर्णता में शिव में यह पाँच रूप या शक्तियाँ होती हैं:
परमेश्वर को शैव सिद्धांत में 'मूल आत्मा' भी कहा जाता है क्यों कि इस परिपूर्णता में भगवान शिव अपनी छवि और समानता में आत्माओं की रचना करते हैं और यह समस्त आत्माओं का प्रोटोटाइप है।[1] [2]
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