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बिहार का नालंदा जिला विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
नालंदा भारत के बिहार प्रान्त का एक जिला है नालंदा जिला मगध का क्षेत्र हैं इस क्षेत्र के लोग मगही बोलते हैं जिसका मुख्यालय बिहार शरीफ है। [1][2] नालंदा अपने प्राचीन् इतिहास के लिये विश्व में प्रसिद्ध है। यहाँ विश्व कि सबसे प्राचीन् नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी मौज़ूद है, जहाँ सुदूर देशों से छात्र अध्ययन के लिये भारत आते थे।
राज्य |
बिहार भारत |
---|---|
प्रभाग | पटना मंडल |
मुख्यालय | बिहार शरीफ |
क्षेत्रफल | 2,355 कि॰मी2 (909 वर्ग मील) |
जनसंख्या | 28,77,653 (2011) |
जनघनत्व | 1,222/किमी2 (3,160/मील2) |
साक्षरता | 66.41 (M=77.11; F=54.76) |
लिंगानुपात | 922 (2011) |
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र | नालंदा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र |
राजमार्ग | NH 31, NH 30A, NH 82, NH 110 |
आधिकारिक जालस्थल |
बुद्ध और महावीर कई बार नालन्दा में ठहरे थे। माना जाता है कि महावीर ने मोक्ष की प्राप्ति पावापुरी में की थी, जो नालन्दा जिला में स्थित है। बुद्ध के प्रमुख छात्रों में से एक, शारिपुत्र, का जन्म नालन्दा में हुआ था।
नालंदा पूर्व में अस्थामा तक पश्चिम में तेल्हारा तक दक्षिण में गिरियक तक उत्तर में हरनौत तक फैला हुआ है।
विश्व के प्राचीनतम् विश्वविद्यालय के अवशेषों को अपने आंँचल में समेटे नालन्दा बिहार का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यहाँ पर्यटक विश्वविद्यालय के अवशेष, संग्रहालय, नव नालंदा महाविहार तथा ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल देखने आते हैं। इसके अलावा इसके आस-पास में भी भ्रमण (घूमने) के लिए बहुत से पर्यटक स्थल है। राजगीर, पावापुरी, गया तथा बोध-गया यहां के नजदीकी पर्यटन स्थल हैं। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था। भगवान बुद्ध ने सम्राट अशोक को यहाँ उपदेश दिया था। भगवान महावीर भी यहीं रहे थे। प्रसिद्ध बौद्ध सारिपुत्र का जन्म यहीं पर हुआ था।
नालंदा में राजगीर में कई गर्म पानी के झरने है, इसका निर्माण् बिम्बिसार ने अपने शासन काल में करवाया था, राजगीर नालंदा का मुख सहारे है, ब्रह्मकुण्ड, सरस्वती कुण्ड और लंगटे कुण्ड यहाँ पर है, कई विदेशी मन्दिर भी है यहाँ चीन का मन्दिर, जापान का मन्दिर आदि। नालंदा जिले में जामा मस्जिद भी है जॊ कि बिहार शरीफ में पुल पर स्थित है। यह बहुत ही पुराना और विशाल मस्जिद है।
नालन्दा विश्वविद्यालय के अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। माना जाता है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई॰ में गुप्त शासक कुमारगुप्त ने की थी।[3][4] इस विश्वविद्यालय को इसके बाद आने वाले सभी शासक वंशों का सर्मथन मिला। महान शासक हर्षवर्द्धन ने भी इस विश्वविद्यालय को दान दिया था। हर्षवर्द्धन के बाद पाल शासकों का भी इसे संरक्षण मिला। केवल यहाँ के स्थानीय शासक वंशों ने ही नहीं वरण् विदेशी शासकों से भी इसे दान मिला। इस विश्वविद्यालय का अस्तित्व 12वीं शताब्दी तक बना रहा। 12वीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जला डाला। जो कुत्तुबुद्ददीन का सिपह-सलाहकार।
नालंदा प्राचीन् काल का सबसे बड़ा अध्ययन केंद्र था तथा इसकी स्थापना पांँचवी शताब्दी ई० में हुई थी। दुनिया के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष बोधगया से 62 किलोमीटर दूर एवं पटना से 90 किलोमीटर दक्षिण में स्थित हैं। माना जाता है कि बुद्ध कई बार यहां आए थे। यही वजह है कि पांचवी से बारहवीं शताब्दी में इसे बौद्ध शिक्षा के केंद्र के रूप में भी जाना जाता था। सातवी शताब्दी ई० में ह्वेनसांग भी यहां अध्ययन के लिए आया था तथा उसने यहां की अध्ययन प्रणाली, अभ्यास और मठवासी जीवन की पवित्रता का उत्कृष्टता से वर्णन किया। उसने प्राचीनकाल के इस विश्वविद्यालय के अनूठेपन का वर्णन किया था। दुनिया के इस पहले आवासीय अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में दुनिया भर से आए 10,000 छात्र रहकर शिक्षा लेते थे, तथा 2,000 शिक्षक उन्हें दीक्षित करते थे। यहां आने वाले छात्रों में बौद्ध यात्रियों की संख्या ज्यादा थी। गुप्त राजवंश ने प्राचीन कुषाण वास्तुशैली से निर्मित इन मठों का संरक्षण किया। यह किसी आंँगन के चारों ओर लगे कक्षों की पंक्तियों के समान दिखाई देते हैं। सम्राठ अशोक तथा हर्षवर्धन ने यहां सबसे ज्यादा मठों, विहार तथा मंदिरों का निर्माण करवाया था। हाल ही में विस्तृत खुदाई यहां संरचनाओं का पता लगाया गया है। यहां पर सन् 1951 में एक अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शिक्षा केंद्र की स्थापना की गई थी। इसके नजदीक बिहारशरीफ है, जहां मलिक इब्राहिम बाया की दरगाह पर हर वर्ष उर्स का आयोजन किया जाता है। छठ पूजा के लिए प्रसिद्ध सूर्य मंदिर भी यहां से दो किलोमीटर दूर बडागांव में स्थित है। यहां आने वाले नालंदा के महान खंडहरों के अलावा 'नव नालंदा महाविहार संग्रहालय भी देख सकते हैं।
14 हेक्टेयर क्षेत्र में इस विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं। खुदाई में मिले सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया था। यह परिसर दक्षिण से उत्तर की ओर बना हुआ है। मठ या विहार इस परिसर के पूर्व दिशा में स्थित थे। जबकि मंदिर या चैत्य पश्िचम दिशा में। इस परिसर की सबसे मुख्य इमारत विहार-1 थी। वर्तमान समय में भी यहां दो मंजिला इमारत मौजूद है। यह इमारत परिसर के मुख्य आंगन के समीप बना हुई है। संभवत: यहां ही शिक्षक अपने छात्रों को संबोधित किया करते थे। इस विहार में एक छोटा सा प्रार्थनालय भी अभी सुरक्षित अवस्था में बचा हुआ है। इस प्रार्थनालय में भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा भग्न अवस्था में है।
यहां स्थित मंदिर नं 3 इस परिसर का सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर से समूचे क्षेत्र का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यह मंदिर कई छोटे-बड़े स्तूपों से घिरा हुआ है। इन सभी स्तूपो में भगवान बुद्ध की मूर्त्तियाँ बनी हुई है। ये मूर्त्तियाँ विभिन्न मुद्राओं में बनी हुई है।
विश्वविद्यालय परिसर के विपरीत दिशा में एक छोटा सा पुरातत्वीय संग्रहालय बना हुआ है। इस संग्रहालय में खुदाई से प्राप्त अवशेषों को रखा गया है। इसमें भगवान बुद्ध की विभिन्न प्रकार की मूर्तियों का अच्छा संग्रह है। साथ ही बुद्ध की टेराकोटा मूर्तियांँ और प्रथम शताब्दी का दो जार भी इसी संग्रहालय में रखा हुआ है। इसके अलावा इस संग्रहालय में तांँबे की प्लेट, पत्थर पर टंकन (खुदा) अभिलेख, सिक्के, बर्त्तन तथा 12वीं सदी के चावल के जले हुए दाने रखे हुए हैं।
यह एक शिक्षा संस्थान है। इसमें पाली साहित्य तथा बौद्ध धर्म की पढ़ाई तथा अनुसंधान होता है। यह एक नया संस्थान है। इसमें दूसरे देशों के छात्र भी पढ़ाई के लिए यहां आते हैं।
यह एक नवर्निर्मित भवन है। यह भवन चीन के महान तीर्थयात्री ह्वेनसांग की याद में बनाया गया है। इसमें ह्वेनसांग से संबंधित वस्तुओं तथा उनकी मूर्ति देखा जा सकता है।
यह गांँव नालन्दा और राजगीर के मध्य स्थित है। यहां बनने वाली प्रसिद्ध मिठाई खाजा का स्वाद लिया जा सकता है।
यहां भगवान सूर्य का प्रसिद्ध मंदिर तथा एक झील है। यहां वर्ष में दो बार मेले का आयोजन होता है। एक चैत (मार्च-अप्रैल) तथा दूसरा कार्तिक (अक्टूबर- नवंबर) महीने में। इन दोनों महीनों में यहां प्रसिद्ध छठ त्योहार मनाया जाता है। दूर-दूर से लोग छठ उत्सव मनाने यहांँ आते हैं।
यहांँ से निकट हवाई अड्डा जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा (पटना) मेें है।जो 89 किलोमीटर दूर है। कलकत्ता, रांँची,मुंबई, दिल्ली तथा लखनऊ से पटना के लिए सीधी हवाई सेवा है।
नालन्दा में रेलवे स्टेशन है। लेकिन यहां का प्रमुख रेलवे स्टेशन राजगीर है। राजगीर जाने वाली सभी ट्रेने नालंदा होकर जाती है।
नालंदा सड़क मार्ग द्वारा राजगीर (12 किमी), बोध-गया (110 किमी), गया (95 किमी), पटना (90 किमी), पावापुरी (26 किमी) तथा बिहार शरीफ (13 किमी) से अच्छी तरह जुड़ा है । यहाँ विश्व की प्राचीन अभिलेख (पुस्तकें) का संग्रह स्थित था जो कि आक्रमण में नष्ट हो गया !
विकियात्रा पर Nalanda के लिए यात्रा गाइड |
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