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दृष्टिवाद (Immaterialism या Subjective Idealism), पदार्थवाद का अस्वीकार है। पदार्थवाद के अनुसार ज्ञान का विषय ज्ञाता से स्वाधीन अस्तित्व रखता है और होने या न होने से उसकी स्थिति में कोई भेद नहीं पड़ता। दृष्टिवाद एक रूप में, प्रृकति के स्वतंत्र अस्तित्व से इनकार करता है; दूसरे रूप में, कहता है कि ज्ञात होने से ही इसका रंग रूप बदल जाता है और हमारे लिए संभव नहीं कि बाहरी सत्ता को उसके वास्तविक रूप में देख सकें। पश्चिमी दर्शन में जार्ज बर्कले और कांट दोनों इस धारणा के समर्थक हैं।
किसी पदार्थ का ज्ञान उसके गुणों से होता है, वह गुणों का आश्रय है। जॉन लॉक का कथन है कि प्रधान गुण (विस्तार, आकार, ठोसपन) तो पदार्थों में विद्यमान हैं, परंतु अप्रधान गुण (रूप, रस आदि) ऐसे परिणाम हैं जो पदार्थ अपने आघात से हमारे मन में पैदा करते हैं। बर्कले ने कहा है कि दोनों प्रकार के गुण एक साथ मिलते हैं और जो युक्तियाँ अप्रधान गुणों के मानवी होने के पक्ष में दी जाती हैं, वे प्रधान गुणों के मानवी होने के पक्ष में भी दी जा सकती हैं। ज्ञान का विषय मानसिक अवस्थाओं से परे, उनसे अलग कुछ नहीं है।
कांट ने कहा है कि देश और काल, जिनमें पदार्थों की स्थिति बताई जाती है, बाह्य पदार्थ नहीं, न ऐसे पदार्थों के बीच कोई संबध है; वे तो मन की गुणग्राही शक्ति की आकृतियाँ हैं। सभी इंद्रियप्रदत्त इन दो साँचों में ढलकर मन तक पहुँचते हैं। हम इतना तो जानते हैं कि हमारे बोध किसी पदार्थ पर आश्रित हैं, परंतु हमारा ज्ञान प्रकटनों तक सीमित होता है, सत्ता के स्वरूप का जानना हमारे लिए संभव नहीं।
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