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जेरेमी बेन्थम (Jeremy Bentham) (15 फ़रवरी 1748 – 6 जून 1832) इंग्लैण्ड का न्यायविद, दार्शनिक तथा विधिक व सामाजिक सुधारक था। वह उपयोगितावाद का कट्टर समर्थक था। वह प्राकृतिक विधि तथा प्राकृतिक अधिकार के सिद्धान्तों का कट्टर विरोधी था।
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सन् १७७६ में उसकी 'शासन पर स्फुट विचार' (Fragment on Government) शीर्षक पुस्तक प्रकाशित हुई। इसमें उसने यह मत व्यक्त किया कि किसी भी कानून की उपयोगिता की कसौटी यह है कि जिन लोगों से उसका संबंध हो, उनके आनंद, हित और सुख की अधिक से अधिक वृद्धि वह करे। उसकी दूसरी पुस्तक 'आचार और विधान के सिद्धांत' (Introduction to Principles of Morals and Legislation) १७८९ में निकली जिसमें उसके उपयोगितावाद का सार मर्म सन्निहित है। उसने इस बात पर बल दिया कि 'अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख' ही प्रत्येक विधान का लक्ष्य होना चाहिए। 'उपयोगिता' का सिद्धांत वह अर्थशास्त्र में भी लागू करना चाहता था। उसका विचार था कि प्रत्येक व्यक्ति को, किसी भी तरह के प्रतिबंध के बिना, अपना हित संपन्न करने की स्वतंत्रता रहनी चाहिए। सूदखोरी के समर्थन में उसने एक पुस्तक 'डिफेंस ऑव यूज़री' (Defence of Usury) सन् १७८७ में लिखी थी। उसने गरीबों संबंधी कानून (पूअर लाँ) में सुधार करने के लिए जो सुझाव दिए, उन्हीं के आधार पर सन् १८३४ में उसमें कई संशोधन किए गए। पार्लियामेंट में सुधार कराने के संबंध में भी उसने एक पुस्तक लिखी थी (१८१७)। इसमें उसने सुझाव दिया था कि मतदान का अधिकार प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को मिलना चाहिए और चुनाव प्रति वर्ष किया जाना चाहिए। उसने बंदीगृहों के सुधार पर भी बल दिया। और १८११ में 'दंड और पुरस्कार' (Punishments and Rewards) शीर्षक एक पुस्तक लिखी।
जेरेमी बेंथम के बारे में
उपयोगितावाद के प्रवर्तक जेरेमी बेंथम का जन्म 1748 ईस्वी में इंग्लैंड के एक संपन्न वकील घर आने में हुआ था , बेंथम बचपन से ही असाधारण प्रतिभाशाली था और अपनी इस प्रतिभा के बल पर उसने 15 वर्ष की आयु में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास कर ली बेंथम अपने असाधारण योग्यता के कारण ही अपने गुरुओं के और अयोग्य तथा साथियों को मूर्ख समझता था, स्नातक उपाधि प्राप्तत करने के बाद उसने 'लिकंस इन ' मैं कानून का अध्ययन करनेे के लिए प्रवेश लिया 1772 में उसने वकालत करना प्रारंंभ किया लेकिन थोड़ेे थोड़े समय के बाद ही उसने इस व्यवसाय को छोड़ दिया अपनेे युग के इस बौद्धिक आचार्यय को थोड़े समय तक वकालत करने परतत्कालीन कानून व्यवस्था के दोषों का ज्ञान हो गया और वकालत करने के स्थान पर अपने जीवन का भी कानूनी पद्धतिि का संशोधन करना निश्चित किया
1772 मे वह कानूनी पद्धति के संशोधन कार्य में लग गया और 1776 ई. में उसकी प्रथम पुस्तक " शासन पर कुछ विचार "(fragments on government ) प्रकाशित हुई, इस पुस्तक में उस समय के विगत विधि शास्त्री ब्लैक स्टोन की आलोचना कर के कानून के क्षेत्र में हलचल मचा दी ,बेंथम प्रतिदिन नियमित रूप से लिखने वाला और साधारण व्यक्ति था और ज्ञान विज्ञान के सभी क्षेत्रों में उसकी निवाद गती थी, लेकिन उसका लेखन कार्य अत्यधिक अव्यवस्थित था 1788 सी में उसकी भेंट जेनेवा वासी कुमारी dumont से हुई जिसने उसकी रचनाओं का सभी जगत की फ्रेंच भाषा में अनुवाद किया इससे फ्रेंंच भाषा भाषी प्रदेशों में उसकी ख्याति बढ़ी 1821 में उसे 28 वर्षीय बोरिंग नामक भक्त नवयुवक के सहयोोग मिला जिसने उसके कुछ ग्रंथों को एक 11 खंडों में प्रकाशित किया, किंतु उसके लेखों का एक बड़ा भाग अब तक प्रकाशित है ा वृद्धा अवस्था तक बेंथम कितना अधिक सक्रियता इसका प्रमाण यह हैै कि अपनेे उग्र विचारों का प्रचार करने के लिए उसने 70 वर्ष की आयु वेस्ट मिनिस्टर रिव्यू नामक पत्र निकाला और 89 वर्ष की अवस्था में उसने लंदन विश्वविद्यालय के मूल्य यूनिवर्सिटी कॉलेज को इस उद्देश्य स्थापित किया कि या ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज के दूषित वातावरण से मुक्त रे उसने उपयोगितावाद के साथ साथ सुधारवादी नीव मजबूत की ा , चीर कुंवारे रहते हैं ,आनंद पूर्वक एक दीर्घ जीवन व्यतीत करने के बाद 1832 में इस महान विचारक की मृत्यु हो गई ा
प्रसिद्ध कृतियां
1. Fragments on government
2. Introduction to the principles of morals and legislation
3. Essay on political tactics
4. Principles of international relations
5. Anarchical fallacies
6. manual of political economy
7. Radicalism not '
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