जेम्स टॉड (लेफ्टिनेंट-कर्नल जेम्स टॉड; 20 मार्च 1782 – 18 नवम्बर 1835)ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एक अधिकारी तथा भारतविद थे। इंग्लेंड निवासी जेम्स टाॅड वर्ष 1817-18 में पश्चिमी राजपूत राज्यों के पाॅलिटिकल एजेंट बन कर उदयपुर आए। इन्होंने 5 वर्ष तक राजस्थान की इतिहास-विषयक सामग्री एकत्र की एवं इंग्लैंड जा कर वर्ष 1829 में "एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान अथवा सेंट्रल एंड वेस्टर्न राजपूत स्टेट्स ऑफ इंडिया" है। इस रचना में सर्वप्रथम 'राजस्थान' शब्द का प्रयोग हुआ। कर्नल जेम्स टॉड को राजस्थान के इतिहास-लेखन का पितामह माना जाता है।
उनका नाम और काम, इतिहास और यात्रा-साहित्य - दोनों के अध्येताओं में बड़े सम्मान से लिया जाता है।
२० मार्च १७८२ को स्कॉटलैंड के इस्लिंगटन में जन्मे टॉड की नियुक्ति केवल १७ बरस की किशोर आयु में ईस्ट इण्डिया कम्पनी में हो गई थी। भारत में कोलकाता, हरिद्वार और दिल्ली उनके प्रमुख कार्यक्षेत्र थे। अपनी गहन अन्वेषण और शोध प्रवृत्ति के कारण इनकी सेना में कमीशंड पद पर सीधी नियुक्ति हो गयी जहाँ वह भौगोलिक मानचित्र बनाने के विशेषज्ञ-अभियंता के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
सन् 1813 में टॉड को कप्तान के पद पर पदोन्नति मिली। रेज़िडेंट सर रिचर्ड स्ट्रेची ने इन्हें अपना सहायक नियुक्त किया। सन् 1818 से 1822 तक टॉड पश्चिमी राजपूताने के 'पोलिटिकल एजेंट' के रूप में कार्यरत रहे।
ब्रिटिश राज के राजनैयिक प्रतिनिधि के तौर पर राजस्थान में इनका योगदान उल्लेखनीय था।
"His successes were plentiful and the Oxford Dictionary of National Biography notes that Tod was... so successful in his efforts to restore peace and confidence that within less than a year some three hundred deserted towns and villages were re-peopled, trade revived, and, in spite of the abolition of transit duties and the reduction of frontier customs, the state revenue had reached an amount never before known. During the next five years Tod earned the respect of both the chiefs and the people; and was able to rescue more than one princely family, including that of the ranas of Udaipur, from the destitution to which they had been reduced by Mahratta raiders." [1]
सन १८०६ ईस्वीं में अपनी फौज की नौकरी के दौरान पहली बार वह उदयपुर पहुँचे। राजपूताना और आसपास के प्रदेशों के टोपोग्राफिकल नक़्शे तैयार करते हुए उन्होंने स्थानीय इतिहास के कई मौखिक और अनगिनत लिखित अभिलेखों से साक्षात्कार किया और तय किया कि वह 'राजपूताना' पर नया ग्रन्थ लिख कर इस के इतिहास का पुनर्लेखन करेंगे।
सन १८१९ में अक्टूबर में जोधपुर पहुँचे कर्नल टॉड ने वहाँ रह कर पुरातत्व पर गहन शोध-कार्य किया और जाते समय टॉड ने मार्ग में कई मुद्राओं और अभिलेखों का संग्रहण किया जो इतिहास लेखन के लिये अत्यंत उपयोगी स्रोत साबित हुए। बाद में अजमेर, पुष्कर, जयपुर, सीकर, झुंझनू, पाली, मेड़ता आदि स्थानों पर रह कर अपने ग्रन्थ के लिए आधार-सामग्री जुटाई।[2] कड़ी और अनथक मेहनत के बाद १४ जनवरी १८२३ को मुम्बई से इनका ग्रन्थ ' ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया' प्रकाशित हुआ। सन १८२९ में इनकी कालजयी रचना 'एनल्स एंड एंटीक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान ' का पहला खण्ड और सन १९३४ में दूसरा खंड प्रकाशित हुआ।[3]
प्रख्यात इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने (कर्नल)"टॉड साहब का जीवन-चरित्र" शीर्षक से एक लम्बा परिचयात्मक निबन्ध लिखा है जो कर्नल जेम्स टॉड के इतिहास के (पंडित) गिरिधर शुक्ल द्वारा किये गए हिन्दी अनुवाद में प्रकाशित और पुनः २०१२ में 'साहित्यागार' द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ 'राजस्थान का इतिहास' (दो खंड) में पुनर्प्रकाशित किया गया है। जो पाठक कर्नल के जीवन की मुख्य घटनाएं और उनकी तिथियाँ या वर्ष जानना चाहें, उनके लिए इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा का यह आलेख पठनीय है।
कर्नल टॉड और अजमेर का क़स्बा टाडगढ़
कर्नल टॉड सर्वेक्षण के सिलसिले में अजमेर और उदयपुर के कई स्थानों पर रहे थे- उनमें भीम नामक कस्बे के निकट समुद्र तल से 3281 फिट ऊंचाई पर बसा का एक छोटा सा गाँव बोरसवाडा भी था- जो जंगलों और अरावली-पहाड़ों से घिरा हुआ है। यहाँ से कई किलोमीटर दूर का भूभाग स्पष्ट दिखलाई देता है। उन्हें यह जगह पसंद आई तो उदयपुर के महाराजा भीम सिंह की सहमति से स्वयं के लिए बोरसवाडा में एक छोटा सा किला बनवा लिया। महाराज भीम सिंह ने कर्नल की सेवाओं से प्रभावित हो कर गाँव का नाम टॉडगढ़ रख दिया, जो कालान्तर में टाडगढ़ कहलाने लगा। टाडगढ़ आज अजमेर जिले की एक तहसील का मुख्यालय है। कर्नल टॉड के किले में आज एक सरकारी स्कूल चलता है।[4]
इनका विवाह १६ नवम्बर १८२६ को लन्दन के डॉ॰ क्लटरबक की बेटी जूलिया क्लटरबक से हुआ। उनके एक पुत्री और दो पुत्र हुए.[5]
दिन रात पुस्तकों और अनुसन्धान में डूबे रहने वाले इस अद्वितीय अंग्रेज इतिहासकार की मृत्यु केवल ५३ साल की उम्र में, १७ नवम्बर १८३५ को इंग्लेंड में हो गई।[6]
Tod, James (1824). "Translation of a Sanskrit Inscription, Relative to the Last Hindu King of Delhi, with Comments Thereon". Transactions of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland (London: Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland) 1 (1): 133–154.
Tod, James (1826). "Comments on an Inscription upon Marble, at Madhu Kharghar; And Three Grants Inscribed on Copper, Found at Ujjayani". Transactions of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland (London: Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland) 1 (2): 207–229.
Tod, James (1826). "An Account of Greek, Parthian, and Hindu Medals, Found in India". Transactions of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland (London: Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland) 1 (2): 313–342.
Tod, James (1829). "On the Religious Establishments of Mewar". Transactions of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland (London: Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland) 2 (1): 270–325. doi:10.1017/S0950473700001415.
Tod, James (1829). "Remarks on Certain Sculptures in the Cave Temples of Ellora". Transactions of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland (London: Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland) 2 (1): 328–339. doi:10.1017/S0950473700001439.
Tod, James (1829). Annals and Antiquities of Rajast'han or the Central and Western Rajpoot States of India, Volume 1. London: Smith, Elder.
Tod, James (1830). "Observations on a Gold Ring of Hindu Fabrication found at Montrose in Scotland". Transactions of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland (London: Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland) 2 (2): 559–571.
Tod, James (1831). "Comparison of the Hindu and Theban Hercules, illustrated by an ancient Hindu Intaglio". Transactions of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland (London: Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland) 3 (1): 139–159.
Tod, James (1832). Annals and Antiquities of Rajast'han or the Central and Western Rajpoot States of India, Volume 2. London: Smith, Elder.
Tod, James (1839). Travels in Western India. London: W. H. Allen.
जेम्स ने कुछ अपने इतिहास लेखन में कुछ अत्यन्त गम्भीर तथ्यात्मक त्रुटियाँ की हैं-
उसने मीरा बाई को राणा कुम्भा की पत्नी बताया है जबकि मीरा, राणाकुम्भा के पौत्र की पत्नी थीं।
यद्यपि एक जैन साधु यति ज्ञानचन्द्र ने राजस्थान के इतिहास लेखन में जेम्स की बड़ी सहायता की, किन्तु स्वयं जैन धर्म के बारे में टॉड की जानकारी गलत थी। उसने जैन धर्म को बौद्ध धर्म का अंग कहा है और पार्श्वनाथ को '२३वाँ बुद्ध' ।[7]
कर्नल जेम्स टॉड ने अहीर, गुज्जर, जाट, किरार, लोधी इत्यादि अनेक जातियों को भी क्षत्रिय बताया है जो कि भारतीय पुरातत्व व इतिहास से कोई तालमेल नहीं रखता और निराधार है।
3.Col. James Tod lived and worked in Merwada-Ajmer region. In his memory the village, where he camped for sometime was named after him in 1819 AD by Maharana Bheem Singh of Udaipur as "TODGARH". About 120 KMs from Ajmer and 144 Kms from Udaipur (7 KM off NH 8)is situated this sleepy tranquil small town, where "Pragya-Shikar-Charitable Trust" Archived 2014-07-24 at the वेबैक मशीन, Mumbai,has established a small school, a Guest-House, a Museum (depicting the historical photos relating to Col. Tod's association with TADGARH), some of his published volumes and a "Yoga-Hall". More details about Col. Tod and his association with BORASWADA alias TADGARH could be gathered from Mr. Bhikam Chand Kothari'Bhramar', Secretary of the "Sahitya Sansthan" C/O Pragya-Shikhar-Charitable Trust, Tadgarh (Ajmer)
4. Freitag, Jason (2007). "Travel, history, Politics, Heritage: James Tod's "Personal Narrative"". In Henderson, Carol E.; Weisgrau, Maxine K. Raj rhapsodies: tourism, heritage and the seduction of history. Aldershot: Ashgate Publishing. ISBN 978-0-7546-7067-4
5.Freitag, Jason (2007). "Travel, history, Politics, Heritage: James Tod's "Personal Narrative"". In Henderson, Carol E.; Weisgrau, Maxine K. Raj rhapsodies: tourism, heritage and the seduction of history. Aldershot: Ashgate Publishing. ISBN 978-0-7546-7067-4. Retrieved 2011-08-08.
Freitag, Jason (2009). Serving empire, serving nation: James Tod and the Rajputs of Rajasthan. Leiden: Brill. ISBN 978-90-04-17594-5. Retrieved 2011-07-27.
Gupta, R. K.; Bakshi, S. R. (2008). Studies In Indian History: Rajasthan Through The Ages The Heritage Of Rajputs 1. New Delhi: Sarup & Sons. ISBN 81-7625-841-5. Retrieved 2014-03-16.