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भारतीय राजनीतिज्ञ विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
जयपाल सिंह मुंडा (3 जनवरी 1903 – 20 मार्च 1970)[2] भारतीय आदिवासियों और झारखंड आंदोलन के एक सर्वोच्च नेता थे। वे एक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद् और 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे।[3] उनकी कप्तानी में 1928 के ओलिंपिक में भारत ने पहला स्वर्ण पदक प्राप्त किया।[4]। ओपनिवेशिक भारत में जयपाल सिंह मुंडा सर्वोच्च सरकारी पद पर थे ।
व्यक्तिगत जानकारी | |||||||||||||||
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जन्म |
03 जनवरी 1903 टकरा पाहानटोली, रांची, बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखण्ड), भारत[1] | ||||||||||||||
मृत्यु |
20 मार्च 1970 67 वर्ष) नई दिल्ली, भारत | (उम्र||||||||||||||
खेलने का स्थान | Defender | ||||||||||||||
Senior career | |||||||||||||||
वर्ष | टीम | Apps | (Gls) | ||||||||||||
– | Wimbledon Hockey Club | ||||||||||||||
राष्ट्रीय टीम | |||||||||||||||
भारत | |||||||||||||||
पदक की जानकारी
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जयपाल सिंह मुंडा ने सबसे पहले अलग झारखंड राज्य की मांग की थी। वर्ष 1940 में झारखंड को अलग राज्य बनाने की मांग की थी.जयपाल सिंह मुंडा ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सामने अलग झारखंड राज्य के गठन का प्रस्ताव रखा था.[5]
जयपाल सिंह छोटा नागपुर (अब झारखंड) राज्य की मुंडा जनजाति के थे। मिशनरीज की मदद से वह ऑक्सफोर्ड के सेंट जॉन्स कॉलेज में पढ़ने के लिए गए।[6] वह असाधारण रूप से प्रतिभाशाली थे। उन्होंने पढ़ाई के अलावा खेलकूद, जिनमें हॉकी प्रमुख था, के अलावा वाद-विवाद में खूब नाम कमाया।
उनका चयन भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) में हो गया था। आईसीएस का उनका प्रशिक्षण प्रभावित हुआ क्योंकि वह 1928 में एम्सटरडम में ओलंपिक हॉकी में पहला स्वर्णपदक जीतने वाली भारतीय टीम के कप्तान के रूप में नीदरलैंड चले गए थे। वापसी पर उनसे आईसीएस का एक वर्ष का प्रशिक्षण दोबारा पूरा करने को कहा गया, उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। जयपाल सिंह मुंडा ने हॉकी के लिए छोड़ दी थी आइसीएस की नौकरी, फिर बने थे आदिवासियों की आवाज। आदिवासियों की स्थिति देख राजनीति में आने का फैसला किया था।[7]
उन्होंने बिहार के शिक्षा जगत में योगदान देने के लिए तत्कालीन बिहार कांग्रेस अध्यक्ष डा. राजेन्द्र प्रसाद को इस संबंध में पत्र लिखा. परंतु उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला. 1938 की आखिरी महीने में जयपाल ने पटना और रांची का दौरा किया. इसी दौरे के दौरान आदिवासियों की खराब हालत देखकर उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया.[8]
1938 जनवरी में उन्होंने आदिवासी महासभा की अध्यक्षता ग्रहण की जिसने बिहार से इतर एक अलग झारखंड राज्य की स्थापना की मांग की। इसके बाद जयपाल सिंह देश में आदिवासियों के अधिकारों की आवाज बन गए। उनके जीवन का सबसे बेहतरीन समय तब आया जब उन्होंने संविधान सभा में बेहद वाकपटुता से देश की आदिवासियों के बारे में सकारात्मक ढंग से अपनी बात रखी। संविधान सभा में 'अनुसूचित जनजाति' की जगह आदिवासियों को 'मूलवासी आदिवासी' करने की बात कही।
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