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कैल्विनवाद (Calvinism) अथवा सुधारित यैशव धर्म (Reformed Christianity)[1][lower-alpha 1] प्रोटेस्टेंटवाद की एक बड़ी शाखा है जो ईश्वरमीमांसा परम्परा का अनुसरण करते हैं। यह जॉन कैल्विन और कई अन्य सुधार-युग के धर्मशास्त्रियों द्वारा स्थापित यैशव धर्म साधना है। यह ईश्वर की सम्प्रभुता और बाइबिल के अधिकार पर जोर देता है।
कैल्विनवाद षोड़श शतक में रोमन कैथोलिक चर्च से अलग हुआ। कैल्विनवाद और लूथरवाद विभिन्न हैं जबकि दोनों का उद्भव धर्मसुधार से हुआ। इनकी भिन्नता के मुख्य बिन्दु आध्यात्मिकता में मसीह की उपस्थिति, पूजा का सिद्धान्त, बप्तिस्मा का अर्थ और उद्देश्य और भक्तों हेतु ईश्वर के नियम इत्यादि शामिल हैं।[3][4]
फ्रांसीसी धर्म सुधार सुधारक जॉन कैल्विन ने 1520 के दशक के उत्तरार्ध या 1530 के दशक की पूर्वार्ध में प्रोटेस्टेंट मान्यताओं को अपनाया। इससे पूर्व और बाद की सुधार परम्पराओं की प्रारम्भिक धारणाएँ पहले से ही हुल्द्रिख ज्विंगली द्वारा अनुमोदित थीं। 1550 के दशक की आरम्भ में लूथरवादियों ने इस सुधार को विरोधस्वरूप "कैल्विनवाद" बोलना आरम्भ कर दिया। तथापि परम्परा में कई लोग इसे या तो एक वर्णनातीत या अनुचित शब्द मानते हैं और धर्म सुधार शब्द को पसन्द करते हैं।[2][5]
केल्विन की ईश्वर और मनुष्य की अवधारणाओं ने उन विचारों को जन्म दिया जिन्हें उनकी मृत्यु के बाद धीरे-धीरे व्यवहार में लाया गया। विशेष रूप से राजनीति और समाज के क्षेत्र में इन्हें अपनाया जाने लगा। कैल्विनवादी नेतृत्व ने स्पेन से स्वतंत्रता के लिए उनकी लड़ाई (1579) के बाद नीदरलैंड ने धार्मिक अल्पसंख्यकों को शरण दी। इनमें फ्रांसीसी हुगुएनॉट्स, अंग्रेजी स्वतंत्र (कांग्रेगेशनलिस्ट) और स्पेन और पुर्तगाल के यहूदी शामिल थे।
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