कण्व वंश
प्राचीन भारत का एक राजवंश विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
शुंग वंश के अन्तिम शासक देवभूति के मन्त्रि वासुदेव ने उसकी हत्या कर सत्ता प्राप्त की और कण्व वंश की स्थापना की। कण्व वंश ने ७५ इ.पू. से ३०इ.पू. तक शासन किया। वसुदेव पाटलिपुत्र के कण्व वंश का प्रवर्तक था। वैदिक धर्म एवं संस्कृति संरक्षण की जो परम्परा शुंगो ने प्रारम्भ की थी उसे कण्व वंश ने जारी रखा।[1]
इस वंश का अन्तिम सम्राट सुशर्मन कण्व अत्यन्त अयोग्य और दुर्बल था और मगध क्षेत्र संकुचित होने लगा। कण्व वंश का साम्राज्य वर्तमान बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित हो गया और अनेक प्रान्तों ने अपने को स्वतन्त्र घोषित कर दिया। तत्पश्चात उसका पुत्र नारायण और अन्त में सुशमी जिसे सातवाहन वंश के प्रवर्तक सिमुक ने पदच्युत कर दिया था।[2] यह साम्राज्य मगध तक ही सीमित था
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वंशावली
क्रम-संख्या | शासक | शासन अवधि (ई.पू) | टिप्पणी |
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1. | सम्राट वासुदेव कण्व | 73–66 | देवभूति की हत्या करने के बाद राजवंश की 73 ई.पू स्थापना की। |
2. | सम्राट भूमिमित्र कण्व | 66–52 | सम्राट वासुदेव का पुत्र |
3. | सम्राट नारायण कण्व | 52–40 | सम्राट भूमिमित्र का पुत्र |
4. | सम्राट सुषरमन कण्व | 40–28 | अंतिम शासक, सातवाहन साम्राज्य के प्रवर्तक शिमुक ने हत्या कर दी। |
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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