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असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति एक हिन्दीसेवी संस्था है जिसकी स्थापना ३ नवम्बर, १९३८ को ‘असम हिन्दी प्रचार समिति’ नाम से की की गयी थी। बाद में इसका नाम ‘असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ पड़ा।
असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति प्राथमिक स्तर से स्नातक स्तर तक की छः परीक्षाएँ संचालित करती है- परिचय, प्रथमा, प्रवेशिका, प्रबोध, विशारद, और प्रवीण। प्रबोध, विशारद और प्रवीण परीक्षाओं को भारत सरकार द्वारा क्रमशः मैट्रिक, इण्टर और बी.ए. के हिन्दी स्तर के समतुल्य स्थायी मान्यता मिली हुई है। समिति का अपना एक केंद्रीय पुस्तकालय है जिसे भाषा गवेषणागार का रूप दिया गया है। अब तक इसमें हिन्दी, असमिया, बंगला, उर्दू आदि की लगभग दस हजार पुस्तकें हैं। समिति ने अखिल भारतीय हिन्दी परिषद की सर्वोच्च उपाधि हिन्दी ‘पारंगत’ परीक्षा के शिक्षण के लिए सन् 1953 में गुवाहाटी में 'हिन्दी विद्यापीठ' की स्थापना की। इस दृष्टि से असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने सन् 1940 से अपनी तरफ से साहित्य-निर्माण तथा प्रकाशन की योजनाओं को अपने हाथ में लिया। राज्य के हिन्दी तथा अहिन्दीभाषी स्कूलों की पाठ्य-पुस्तकें भी समिति की तरफ से प्रकाशित की गईं। राष्ट्रभाषा प्रचार के उद्देश्यों की पूर्ति और सामासिक संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु सन् 1951 से समिति का त्रैमासिक मुखपत्र 'राष्ट्र सेवक' प्रकाशित होता है।
सन् 1934 में गांधीजी के अनुयायी और जननेता व समाजसेवक, बाबा राघवदास ने बापू के आदेश से असम में हिन्दी प्रचार प्रारम्भ किया। उस समय तक असम में समिति की स्थापना नहीं हुई थी। बाद में इसकी आवशयकता अनुभव की जाने लगी, अतः असम के स्वतंत्रता सेनानी गोपीनाथ बारदोलायी के आग्रह पर ३ नवम्बर १९३८ को ‘असम हिन्दी प्रचार समिति’ नामक एक संस्था स्थापित की गयी। बाद में इसका नाम ‘असम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ पड़ा।
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