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असग़र वजाहत (जन्म - 5 जुलाई, 1946) हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में मुख्यतः साठोत्तरी पीढ़ी के बाद के महत्त्वपूर्ण कहानीकार एवं सिद्धहस्त नाटककार के रूप में मान्य हैं। इन्होंने कहानी, नाटक, उपन्यास, यात्रा-वृत्तांत, फिल्म तथा चित्रकला आदि विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण रचनात्मक योगदान किया है। ये दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रह चुके हैं।
असगर वजाहत | |
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जन्म |
5 जुलाई, 1946 फतेहपुर, उत्तर प्रदेश, भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
असग़र वजाहत का जन्म 5 जुलाई 1946 को फतेहपुर, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम॰ए॰ तक की पढ़ाई की एवं वहीं से पी-एच॰डी॰ की उपाधि भी पायी। पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से किया। 1971 से जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली के हिंदी विभाग में अध्यापन किया। 5 वर्ष ओत्वोश लोरांड विश्वविद्यालय, बुडापेस्ट, हंगरी में भी अध्यापन किया। यूरोप और अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में उनके व्याख्यान हो चुके हैं।[1]
मूलतः और प्रथमतः असग़र वजाहत कहानीकार हैं। कहानी के बाद उन्होंने गद्य साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन किया और अपने लिए हमेशा नए प्रतिमान बनाए। अपने लिए जिस भी विधा को उन्होंने चुना वहाँ हमेशा पहले दर्जे की रचना संभव हुई।[2] असग़र वजाहत के लेखन में अनेक कहानी संग्रह, पाँच उपन्यास, आठ नाटक और कई अन्य रचनाएँ शामिल हैं। इनकी पहली कहानी 1964 के आसपास छपी थी तथा पहला कहानी संग्रह 'अंधेरे से' 1976 में आपातकाल के दौरान पंकज बिष्ट के साथ (संयुक्त रूप से) छपा था।[3] इनकी कहानियों के अनुवाद अंग्रेजी, इतालवी, रूसी, फ्रेंच, ईरानी, उज्बेक, हंगेरियन, पोलिश आदि भाषाओं में हो चुके हैं।
असगर वजाहत का पहला नाटक 'फिरंगी लौट आये' 1857 की पृष्ठभूमि पर आधारित था। आपातकाल के दौरान 'फरमान' नाम से इसे टेली प्ले के रूप में फिल्माया गया तथा इसके प्रसारण भी हुए थे।[4] इनके नाटकों का देश भर में मंचन और प्रदर्शन हुआ है। इनके नाटकों का निर्देशन हबीब तनवीर, एम के रैना, दिनेश ठाकुर, राजेंद्र गुप्ता, वामन केंद्रे, शहीम किरमानी तथा टाम आल्टर जैसे निर्देशकों ने किया है।[5] 'जिस लाहौर नई देख्या ओ जम्याइ नई' ने देश एवं देश के बाहर भी लोकप्रियता के नये मानदंड कायम किये। हबीब तनवीर ने इस नाटक का पहला शो 27 सितंबर 1990 को किया था। इसके बाद यह नाटक इतनी चर्चा में आ गया कि इसके प्रदर्शन कराची, दुबई, वाशिंगटन डीसी, सिडनी, लाहौर तथा अन्य शहरों में हुए। भारत की कई भाषाओं में इसके अनुवाद किये गये और इसका मंचन हुआ। हबीब तनवीर के अतिरिक्त इस नाटक को ख़ालिद अहमद, उमेश अग्निहोत्री, दिनेश ठाकुर, कुमुद मीरानी आदि निर्देशकों ने किया। इस नाटक के बीस वर्ष पूरे होने पर एक अंतर्राष्ट्रीय आयोजन हुआ जिसके तहत विश्व के कई नगरों में इसके मंचन तथा गोष्ठियां आयोजित की गयीं।[6]
बुडापैस्ट, हंगरी में इनकी दो एकल चित्र प्रदर्शनियाँ भी हो चुकी हैं। ये टेलीविज़न व फ़िल्म लेखन और निर्देशन से भी जुड़े रहे हैं। कई वृत्ताचित्रों, धारावाहिकों और कुछ फीचर फ़िल्मों के लिए पटकथा लेखन भी इन्होंने किया है।
असगर वजाहत नियमित रूप से अखबारों और पत्रिकाओं के लिए भी लिखते रहे हैं। 2007 में उन्होंने अतिथि संपादक के रूप में बी॰बी॰सी॰ वेब पत्रिका का संपादन किया था। सुप्रसिद्ध हिंदी पत्रिका 'हंस' के 'भारतीय मुसलमान : वर्तमान और भविष्य' विशेषांक का तथा 'वर्तमान साहित्य' के 'प्रवासी साहित्य' विशेषांक का संपादन भी उन्होंने किया था।
बनास जन, अंक-21, जनवरी-मार्च 2017, संपादक-पल्लव, (असग़र वजाहत पर केंद्रित 428 पृष्ठों का समृद्ध विशेषांक हर क़ैद से आज़ाद : असग़र वजाहत)
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