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मापन की अन्तर्राष्ट्रीय इकाई विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
अन्तर्राष्ट्रीय मात्रक प्रणाली (संक्षेप में SI ; IN ENGLISH (SYSTEM OF INTERNATIONAL UNITS) का संक्षिप्त रूप), मीटरी पद्धति का आधुनिक रूप है। इसे सामान्य रूप में दशमलव एवं दस के गुणांकों में बनाया गया है। यह विज्ञान एवं वाणिज्य के क्षेत्र में विश्व की सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली प्रणाली है। [1][2][3]
पुरानी मेट्रिक प्रणाली में कई इकाइयों के समूह प्रयोग किए जाते थे। SI को 1960 में पुरानी मीटर-किलोग्राम-सैकण्ड यानी (MKS) प्रणाली से विकसित किया गया था, बजाय सेंटीमीटर-ग्राम-सैकण्ड प्रणाली की, जिसमें कई कठिनाइयाँ थीं। SI प्रणाली स्थिर नहीं रहती, वरन इसमें निरंतर विकास होते रहते हैं, परंतु इकाइयां अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों के द्वारा ही बनाई और बदली जाती हैं।
यह प्रणाली लगभग विश्वव्यापक स्तर पर लागू है और अधिकांश देश इसके अलावा अन्य इकाइयों की आधिकारिक परिभाषाएं भी नहीं समझते हैं। परंतु इसके अपवाद संयुक्त राज्य अमरीका और ब्रिटेन हैं, जहाँ अभी भी गैर-SI इकाइयों उनकी पुरानी प्रणालियाँ लागू हैं।भारत मॆं यह प्रणाली 1 अप्रैल, 1957 मॆं लागू हुई। इसके साथ ही यहां नया पैसा भी लागू हुआ, जो कि स्वयं दशमलव प्रणाली पर आधारित था।[4]
इस प्रणाली में कई नई नामकरण की गई इकाइयाँ लागू हुई। इस प्रणाली में सात मूल इकाइयाँ (मीटर, किलोग्राम, सैकण्ड, एम्पीयर, कैल्विन, मोल, कैन्डेला, कूलम्ब) और अन्य कई व्युत्पन्न इकाइयाँ हैं। कुछ वैज्ञानिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में एस आई प्रणाली के साथ अन्य इकाइयाँ भी प्रयोग में लाई जाती हैं। SI उपसर्गों के माध्यम से बहुत छोटी और बहुत बड़ी मात्राओं को व्यक्त करने में सरलता होती है।
किसी इकाई की परिभाषा और कार्यान्वयन (implementation) के बीच अन्तर महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक SI मूल इकाई की परिभाषा सावधानी पूर्वक बनाई गई है ताकि वह अपूर्व और अद्वितीय हो और साथ साथ एक ठोस सैद्धांतिक आधार प्रस्तुत करे जिस पर आधारित सबसे परिशुद्ध और पुनरुत्पादनीय मापन किये जा सकें। एक इकाई की परिभाषा के कार्यान्वयन की प्रक्रिया वह होती है जिससे कि वह परिभाषा उस इकाई की भांति ही उसकी मात्रा के मान और उससे जुड़ी अनिश्चितता को स्थापित करने हेतु; प्रयोग की जा सके। कुछ महत्त्वपूर्ण इकाइयों की परिभाषाएं कैसे कार्यान्वित की जाती हैं, यह BIPM की वेबसाईट पर दिया गया है[5] एक SI व्युत्पन्न इकाई अद्वितीय रूप केवल SI मूल इकाइयों के रूप में ही परिभाषित होती है। उदाहरणतः विद्युत प्रतिरोध की SI व्युत्पन्न इकाई, ओह्म (चिन्ह Ω), इस संबंध से ही अद्वितीय रूप से परिभाषित होती है: Ω = m2 kg s−3 A−2, जो कि विद्युत प्रतिरोध की मात्रा, की परिभाषा का ही परिणाम है। वैसे कोई भी तरीका, जो कि भौतिकी के सिद्धांतों/नियमों से सामंजस्य रखता हो, वह किसी भी SI इकाइयों के कार्यान्वयन हेतु प्रयोग हो सकता है।[6]
मीट्रिक प्रणाली को वैज्ञानिकों के समूह द्वारा अभिकल्पित किया गया था। इनमें एन्टोनी लॉरियेट लैवाशिए प्रमुख थे, जिन्हें आधुनिक रसायनशास्त्र का जनक कहा जाता है। इस समूह को तर्कसंगत मापन प्रणाली का निर्माण करने हेतु; फ्रांस के सम्राट लुई XVI द्वारा एकीकृत एवं अधिकृत किया गया था। फ्रांसीसी क्रांति के उपरांत नई सरकार द्वारा यह प्रणाली अंगीकृत कर ली गई थी।[7] 1 अगस्त, 1793, को राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा नया दशमलव मीटर भी अंगीकृत किया गया और एक अस्थायी लम्बाई के साथ-साथ ही अन्य दशमलव इकाइयाँ भी परिभाषित हुईं। 7 अप्रैल, 1795 (Loi du 18 germinal, an III) को, gramme एवं kilogramme ने पुरानी शब्दावली "gravet" (शोधित रूप "milligrave") एवं "ग्रेव" का स्थान लिया। 10 दिसंबर, 1799 को, मीट्रिक प्रणाली को स्थाई रूप से फ्रांस में अपनाया गया।
आज विश्व भर में प्रयोग हो रही मीट्रिक प्रणाली ने कई बदलाव देखे हैं। इसने कई परंपरागत प्रणालियों को अधिक्रमित भी किया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बहुत बाद तक कई भिन्न मापन प्रणालियाँ विश्व भर में प्रयुक्त हो रहीं थीं। इनमें से कई प्रणालियाँ, मीट्रिक प्रणाली की ही भिन्नक थी, जबकि अन्य या तो इम्पीरियम प्रणाली या फिर अमरीकी प्रणाली पर आधारित थीं। तब यह आवश्यकता सिद्ध हुई कि इन सब का मीट्रीकरण होना चाहिए, जिससे एक विश्वव्यापी मापन प्रणाली बनाई जा सके। फलतः नौवां भार एवं मापन पर सामान्य सम्मेलन (CGPM) 1948 में हुआ जिसमें भार एवं मापन अन्तर्राष्ट्रीय समिति (CIPM) को वैज्ञानिक, प्रौद्योगिक एवं शिक्षण समितियों की मापन संबंधी आवश्यकताओं का एक अन्तर्राष्ट्रीय अध्ययन करने को निर्देशित किया गया।
इस अध्ययन के परिणामों पर आधारित, दसवीं CGPM ने 1954 में यह निर्णय किया कि छः मूल इकाइयों से एक अन्तर्राष्ट्रीय प्रणाली व्युतपन्न की जाए, जो कि यांत्रिक एवं विद्युतचुम्बकीय मात्राओं की साथ ही तापमान एवं दृष्टि संबंधी विकिरणों का मापन उपलब्ध करा पाए। अनुमोदित की गईं छः मूल इकाइयाँ थीं मीटर, किलोग्राम, सैकण्ड, एम्पीयर, डिग्री कैल्विन एवं कॅण्डेला। 1960 में, 11वें CGPM ने इस प्रणाली का नामकरण अन्तर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली या International System of Units, संक्षेप में SI जो मूलतः बना है फ्रेंच से: [Le Système international d'unités] Error: {{Lang}}: text has italic markup (help). सातवीं मूल इकाई, मोल या the mole, को 1971 में 14वें CGPM में जोडा़ गया।
अन्तरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन या ISO के मानक ISO 31 में अन्तर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली के विद्युत अनुप्रयोगों में प्रयोग हेतु अन्तर्राष्ट्रीय विद्युततकनीकी आयोग या IEC की सिफारिशें है जिनमें की उनके मानक IEC 60027 भी ध्यानयोग्य हैं। वह कार्य अभी प्रगति पर है जिससे की दोनों का एकीकरण कर एक संयुक्त मानक ISO/IEC 80000 बने, जिसे मात्राओं की अन्तर्राष्ट्रीय प्रणाली या International System of Quantities (ISQ) कहा जाए।
अन्तरराष्ट्रीय इकाई प्रणाली में इकाइयों का समूह है, जिसके सदॄश ही उपसर्गों के समूह भी हैं। SI इकाइयों को दो उपसमूहों में बांटा जा सकता है :-
इन इकाइयों के साथ ही
मात्रा | चिन्ह | नाम |
---|---|---|
मीटर | m | लम्बाई |
किलोग्राम | kg | भार |
सैकण्ड | s | समय |
एम्पीयर | A | विद्युत धारा |
कैल्विन | K | ऊष्मगतिकीय तापमान |
मोल (इकाई) | mol | पदार्थ की मात्रा |
कॅन्डेला | cd | प्रकाशीय तीव्रता |
मूल इकाई के गुणक बनाने हेतु, SI उपसर्ग को जोड़ा जा सकता है। सभी गुणक दस की पूर्ण संख्या घात के हैं। उदाहरणतः
किलो-= सहस्र या हजार
मिलि-= हजारवां भाग यानि एक मीटर में एक हजा़र मिलिमीटर होते हैं, साथ ही एक हजा़र मीटर से एक किलो मीटर बनता है।
उपसर्गों को मिलाया नहीं जा सकता है। एक किलोग्राम का दस लाखवाँ भाग है मिलिग्राम परंतु उसे एक माइक्रो-किलोग्राम नहीं कहेंगे।
नाम | क्वेट्टा- | रोना- | योट्टा- | जी़ट्टा- | एक्जा- | पेटा- | टैरा- | गीगा- | मैगा- | किलो- | हैक्टो- | डैका- |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
चिह्न | Q | R | Y | Z | E | P | T | G | M | k | h | da |
कारक | १०३० | १०२७ | १०२४ | १०२१ | १०१८ | १०१५ | १०१२ | १०९ | १०६ | १०३ | १०२ | १०१ |
नाम | डेसी- | सैंटी- | मिली- | माइक्रो- | नैनो- | पीको- | फ़ैम्टो- | एट्टो- | जैप्टो- | योक्टो- | रोंगटे- | क्वेक्टे- |
चिह्न | d | c | m | µ | n | p | f | a | z | y | r | q |
कारक | १०-१ | १०-२ | १०-३ | १०-६ | १०-९ | १०-१२ | १०-१५ | १०-१८ | १०-२१ | १०-२४ | १०-२७ | १०-३० |
विभिन्न प्रणालियों में प्रयोग की जाने वाली इकाइयों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने हेतु इकाई परंपरा या इकाई की मूल परिभाषा से बनाया जाता है। इकाइयों के बीच अंतरण हेतु अंतरण कारकों का प्रयोग किया जाता है। अंतरण कारकों के कई संस्करण हैं, उदाहरणतः देखें परिशिष्ट बी, NIST SP 811.[10]
स्पेसिफिक ग्रैविटी (विशिष्ट घनत्व) को प्रायः SI इकाइयों में, या पानी के सन्दर्भ में दर्शित किया जाता है। क्योंकि एक घन जिसके नाप हैं 10 cm x 10 cm x 10 cm, उसकी आयतन होगी 1000 cm3 (प्रायः 1000 cc लिखा जाता है), जो बराबर है 1 L के; और जब जल से भरा जाये, तो उसका भार 1 kg होता है, अतएव पानी की स्पेसिफिक ग्रैविटी है 1 g/cm3 और यह 0 डिग्री सेल्सियस पर जम जायेगा।
मीट्रिक प्रणाली को अर्थ एवं दैनिक वाणिज्य (व्यापार सम्बंधी) साधन के रूप में विश्वव्यापी समर्थन मिला है। इसका कारण बहुत हद तक यह भी था कि कई देशों में रूढ़िगत प्रणालियों में कई सिद्धांतों को समझाने का सामर्थ्य नहीं थी। साथ ही क्षेत्रीय बदलावों का मानकीकरण कर एक विश्व व्यापी प्रणाली, जो सर्व मान्य हो, बनी। इससे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को भी बढ़ावा मिला। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो इसमें अत्यधिक बड़ी और अतिसूक्ष्म इकाइयों को भी दशमलव के प्रयोग से बताया जा सकता है।
दैनिक एवं वैज्ञानिक प्रयोग की कई इकाइयाँ, सात मूल इकाइयों से व्युत्पन्न नहीं हैं। कई मामलों में यह बदलाव BIPM. द्वारा मान्य भी है।[14] कुछ उदाहरणों में शामिल हैं:
यूरोपियन संघ ने एक निर्देश दिया है[17] जो गैर-SI चिन्हित सामान की बिक्री को 31 दिसंबर 2009 के बाद से प्रतिबंधित करता है। यह सभी उत्पादों, संलग्न निर्देशों और कागजों, पैकिंग तथा विज्ञापनों पर लागू होता है। लेकिन 11 सितंबर 2007 को, EU ने घोषित किया है, कि ब्रिटेन को इस निर्देश से मुक्त करते हैं और उनका इम्पेरियल प्रणाली अभी भी अनियत रूपेण मान्य होगा, साथ साथ में मेट्रिक प्रणाली के दिया हो तो।[18]
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