सारागढ़ी का युद्ध
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सारागढ़ी युद्ध 12 सितम्बर 1897 को ब्रिटिश भारतीय सेना और अफ़गान ओराक्जजातियों के मध्य तिराह अभियान से पहले लड़ा गया। यह उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रान्त (वर्तमान खैबर-पखतुन्खवा, पाकिस्तान में) में हुआ।
सामान्य तथ्य सारागढ़ी का युद्ध, तिथि ...
सारागढ़ी का युद्ध | |||||||
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तिराह अभियान युद्ध का भाग | |||||||
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योद्धा | |||||||
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पठान (अफ़्रीदी/ओराक्ज़ई) | ||||||
सेनानायक | |||||||
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गिल बादशाह | ||||||
शक्ति/क्षमता | |||||||
21[1] | 12000[2][3] | ||||||
मृत्यु एवं हानि | |||||||
21 मारे गये (१००%)[1] | 180 मारे गये (अफ़गान दावा)[4] ~४५० मारे गये[5] (ब्रितानी भारतीय प्राक्कलन)* विभिन्न घायल[6] (संख्या अज्ञात) | ||||||
* युद्धक्षेत्र में 600 अफ़गान शव प्राप्त हुये। इनमें से अधिकतर लोग किले पर पुनः कब्ज़ा करने वाली ब्रिटिश भारतीय राहत दल के तोपखानों की आग से मारे गये।[7][8] |
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![Thumb image](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/c/c2/Battle_of_Saragarhi.png/320px-Battle_of_Saragarhi.png)
ब्रिटिश सैन्यदल में ३६ सिख (सिख रेजिमेंट की चौथी बटालियन) के 21 majhabi सिख थे जिन पर 12000 अफ़गानों ने हमला किया। अंग्रेज सेना का नेतृत्व कर रहे हवलदार ईशर सिंह ने मृत्यु पर्यन्त युद्ध करने का निर्णय लिया। इसे सैन्य इतिहास में इतिहास के सबसे बडे अन्त वाले युद्धों में से एक माना जाता है।[9] युद्ध के दो दिन बाद अन्य ब्रिटिश सेना द्वारा उस स्थान पर पुनः अधिकार प्राप्त किया गया।