सारण ज़िला
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सारण भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त में स्थित एक प्रमंडल (कमिशनरी) एवं जिला है। यहाँ का प्रशासनिक मुख्यालय छपरा है। गंगा, गंडक एवं घाघरा नदी से घिरा यह जिला भारत में मानव बसाव के सार्वाधिक प्राचीन केंद्रों में एक है। संपूर्ण जिला एक समतल एवं उपजाऊ प्रदेश है। भोजपुरी भाषी क्षेत्र की पूर्वी सीमा पर स्थित यह जिला सोनपुर मेला, चिरांद पुरातत्व स्थल एवं राजनीतिक चेतना के लिए प्रसिद्ध है।[1]
सारण 𑂮𑂰𑂩𑂝 | |||||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||||
देश | भारत | ||||||
सांसद | राजीव प्रताप रूडी (भारतीय जनता पार्टी) | ||||||
जनसंख्या • घनत्व |
३२,४८,७०१ (२००१ के अनुसार [update]) • १,२३१ | ||||||
क्षेत्रफल | २,६४१ sq. kms कि.मी² | ||||||
विभिन्न कोड
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आधिकारिक जालस्थल: http://facebook.com/KFAKWorld |
प्राचीन काल में सारण की भूमि वनों के असीम विस्तार और इसमें विचरने वाले हिरणों के कारण प्रसिद्ध था। हिरण (सारंग) एवं वन (अरण्य) के कारण इसे सारंग अरण्य कहा गया जो कालक्रम में बदलकर सारन हो गया। ब्रिटिस विद्वान जेनरल कनिंघम ने यह ऐसी धारणा व्यक्त की है कि मौर्य सम्राट अशोक के काल में यहाँ लगाए गए धम्म स्तंभों को 'शरण' कहा जाता था जो बाद में सारन कहलाने लगा और इस क्षेत्र का नाम बन गया। सारण का मुख्यालय छपरा काफी प्रसिद्ध रहा है और अक्सर इसे छपरा जिला भी कहा जाता है। जिले का छपरा नाम के आगे धार्मिक कारण भी बतलाया जाता है कि भगवान श्री राम अपने वनवास के दौरान यहां 6 दिनों तक रुके थे। इस लिए इसका नाम छपरा पड़ा है। यहां पर भगवान श्री राम अपने भाई भरत जी से मिले थे जिस कारण इस स्थल को आज भी भरत मिलाप चौक के नाम से जाना जाता है।
चिरांद, छपरा से ११ किलोमीटर स्थित, सारण जिला का सबसे महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थल (2000 ईस्वी पूर्व) है। महाजनपद काल में सारण की भूमि कोसल का अंग रहा है। कोसल राज्य के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में सर्पिका (साईं) नदी, पुरब में गंडक नदी तथा पश्चिम में पांचाल प्रदेश था। इसके अंतर्गत आज के उत्तर प्रदेश का फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, गोरखपुर तथा देवरिया जिला के अतिरिक्त बिहार का सारण क्षेत्र आता है। इसा के शुरूआत से लेकर वर्तमान समय तक समस्त सारण क्षेत्र पर बघोचिया भूमिहार राजवंश का शासन कायम है। अंग्रेजों के आने के पूर्व इस क्षेत्र का मुख्यालय वर्तमान गोपालगंज शहर के नजदीक हुआ करता था। छठी शताब्दी के दौरान इस क्षेत्र पर बघोच साम्राज्य ( बघोचिया राजवंश) का शासन कायम था जिसका मुख्यालय उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में स्थित था। बघोच साम्राज्य के संस्थापक के रूप में राजा बीरसेन का नाम आता है। इस साम्राज्य के अंतर्गत समस्त पूर्वांचल, सारण , चंपारण और मोतिहारी के इलाके आते थे। बघोच साम्राज्य के पतन के बाद उनके वंशजों ने कल्याणपुर राज्य स्थापित किया जो मुगल के समय तक कायम था। बाद में शासन का मुख्यालय हुस्सेपुर गांव, गोपालगंज जिले में स्थापित हुआ। इस वंश के 99 वें शासक राजा फतेह बहादुर शाही ने बक्सर युद्ध के बाद 1765 ईस्वी में अंग्रेजों को कर देने से मना कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप राजा फतेह बहादुर शाही और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें फतेह बहादुर शाही हार गए और हुस्सेपुर राज्य का पतन हो गया। राजा के पराजित होने के बाद अंग्रेजी सेना ने तोप का प्रयोग करके राजा फतेह शाही के किले को ध्वस्त कर दिया जिसके अवशेष आज भी मौजूद है। बघोचिया राजवंश को विश्व में सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाले राजवंश के रूप में भी जाना जाता है। वीकिपीडिया पर ब्रह्मण राजवंश की सूची में भी बघोचिया राजवंश को देखा जा सकता है। हुस्सेपुर राज्य के पतन के बाद इस राजपरिवार के सदस्यों ने दो नए राज्य- हथुआ राज और तमकुही राज की स्थापना किया। दोनों राज्य अभी तक कायम है। महाराजा बहादुर मृगेंद्र प्रताप शाही हथुआ राज के वर्तमान मुखिया हैं। राजा महेश्वर प्रताप शाही तमकुही राज्य के वर्तमान मुखिया हैं । दोनों राजपरिवार विश्व के सबसे प्राचीन बघोचिया राजवंश के वंशज हैं।[2] बाबर के समय ही सारण मुगल शासन का हिस्सा हो गया था। अकबर के शासनकाल पर लिखे गए आईना-ए-अकबरी के विवरण अनुसार कर संग्रह के लिए बनाए गए ६ राज्यों (राजस्व विभाग) में सारण एक राज्य था और इसके अंतर्गत वर्तमान बिहार के हिस्से आते थे।[3] बक्सर युद्ध में विजय के बाद सन १७६५ में अंग्रेजों को यहाँ का दिवानी अधिकार मिल गया। १८२९ में जब पटना को प्रमंडल बनाया गया तब सारन और चंपारण को एक जिला बनाकर साथ रखा गया लेकिन १८६६ में चंपारण को जिला बनाकर सारण से अलग कर दिया गया। १९०८ में तिरहुत प्रमंडल बनने पर सारण को इसके साथ कर इसके अंतर्गत गोपालगंज, सिवान तथा सारण अनुमंडल बनाए गए। स्वतंत्रता पश्चात १९८१ में सारण को प्रमंडल का दर्जा देकर तीनों अनुमंडलों को जिला (मंडल) बना दिया गया। स्वतंत्रता की लड़ाई में यहाँ के मजहरुल हक़, राजेन्द्र प्रसाद जैसे महान सेनानियों नें बिहार का नाम ऊँचा किया है। 1942 की अगस्त क्रांति में पटना के सचिवालय पर तिरंगा फहराने के क्रम में शहीद होने वालों उन सात वीर सपूतों में से 2 सारण जिले के युवा थे .. एक थे नरेंद्रपुर गाँव के उमाकांत प्रसाद सिंह और दूसरे बनवारी चक - नयागांव के राजेन्द्र सिंह । इन्दिरा गाँधी द्वारा देश में लगाए गए आपातकाल के विरुद्ध यहाँ के जय प्रकाश नारायण ने समूचे देश में जनक्रांति की लहर पैदा कर सत्ता परिवर्तन किया।
सितंबर 2016 में सारण सृजन’ विवरणिका (गजेटियर) का लोकार्पण किया गया।[4] इस विवरणिका में सामान्य परिचय, इतिहास परिचय सहित 18 अध्याय 222 पृष्ठों का है।[5][6][7][8]
गंगा, गंडक तथा घाघरा नदियों से घिरा सारण जिला एक त्रिकोणीय भूक्षेत्र है। यह जिला 25°36' से 26°13' उअत्तरी अक्षांश तथा 84°24' से 85°15' पूर्वी देशांतर के बीच बसा है। जिले के उत्तर में सिवान तथा गोपालगंज, दक्षिण में गंगा एवं घाघरा नदियों के पार पटना एवं भोजपुर जिला, पूर्व में मुजफ्फरपुर एवं वैशाली जिला तथा पश्चिम में सिवान तथा उत्तर प्रदेश का बलिया जिला अवस्थित है। समतल एवं उपजाऊ कृषि योग्य भूमि पर जिले की सघन आबादी बसती है। सिवान को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है।:
छपरा में भारत का सबसे बड़ा डबल डेकर फ्लाईओवर का निर्माण किया जा रहा है।[9] गांधी चौक से nagarपालिका चौक के 3.5 किमी लंबी डबल डेकर फ्लाईओवर, ₹ 411.31 करोड़ की लागत से बनाया जा रहा है,[10][11] सांता क्रूज़-चेम्बूर लिंक रोड में 1.8 किमी डबल-डेकर फ्लाईओवर से अधिक है।[12] मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जुलाई 2018 में इस डबल डेकर फ्लाईओवर का आधारशिला रखा,[13] जो जून 2022 तक पूरा होने वाला है।[14] फ्लाईओवर की चौड़ाई 5.5 मीटर होगी।[15] डबल-डेकर फ्लाईओवर का निर्माण एनएच -19 पर पुलिस लाइन, गांधी चौक, मौना चौक, नगरपालिका (राजेंद्र) चौक, बस स्टैंड और जिला स्कूल के पास दरोगा राय चौक में खत्म होने पर एनएच -19 पर भिखारी ठाकुर चौराहे के पूर्वी तरफ से किया जाएगा, छपरा के पश्चिमी तरफ।
सारण जिले के कुल 270245 हेक्टेयर भूमि में से 199300 हेक्टेयर खेती योग्य है। 3789.20 हेक्टेयर स्थायॉ रूप से जल से ढँका है। कृषि योग्य भूमि में से 27% ऊँची भूमि, 7% मध्यम ऊँची भूमि, 15% मध्यम भूमि, 12% नीची भूमि, 21% चौर एवं 15% दियार क्षेत्र है।[16] गेंहूँ, धान, मक्का, आलू, दलहन एवं तिलहन मुख्य फसलें हैं। कुल जोत का सार्वाधिक हिस्सा गेंहूँ एवं धान की बुआई में इस्तेमाल होता है। जिले में कोई वन क्षेत्र नहीं है और आम, इमली, सीसम जैसी लकड़ियाँ निजी भूक्षेत्र पर ८२७० हेक्टेयर में लगी हैं।
1972 से पहले अविभाजित सारण जिले को मनीआर्डर इकोनाॅमी का जिला कहा जाता था।[17][18]
ए. औद्योगिक संस्थानों
बी. सरकार शिक्षण संस्थान
सी.अन्य संस्थान
जिले के सभी महाविद्यालय जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय के अंतर्गत आते हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार सारण जिले की जनसंख्या:[22]
सारण जिले में प्रति वर्ग किलोमीटर (3,870 / वर्ग मील) 1,493 निवासियों की आबादी घनत्व है। 2001-2011 के दशक में इसकी जनसंख्या वृद्धि दर 21.37% थी। सारण के प्रत्येक 1000 पुरुषों के लिए 9 4 9 महिलाओं का लिंग अनुपात है, और साक्षरता दर 68.57% है।
भाषाओं में भोजपुरी, बिहारी भाषा समूह में एक जीभ है जिसमें लगभग 40 000 000 वक्ताओं हैं, जो देवनागरी और कैथी दोनों स्क्रिप्ट में लिखे गए हैं।
छपरा से ११ किलोमीटर दक्षिण पूर्व में डोरीगंज बाजार के निकट स्थित यह गाँव एक सारण जिले का सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है।[23] घाघरा नदी के किनारे बने स्तूपनुमा भराव को हिंदू, बौद्ध तथा मुस्लिम प्रभाव एवं उतार-चढाव से जोड़कर देखा जाता है।[24] भारत में यह नव पाषाण काल का पहला ज्ञात स्थल है। यहाँ हुए खुदाई से यह पता चला है कि यह स्थान नव-पाषाण काल (२५००-१३४५ ईसा पूर्व) तथा ताम्र युग में आबाद था।[25] खुदाई में यहाँ से हड्डियाँ, गेंहूँ की बालियाँ तथा पत्थर के औजार मिले हैं जिससे यह पता चलता है कि यहाँ बसे लोग कृषि, पशुपालन एवं आखेट में संलग्न थे।[26] स्थानीय लोग चिरांद टीले को द्वापर युग में ईश्वर के परम भक्त तथा यहाँ के राजा मौर्यध्वज (मयूरध्वज) के किले का अवशेष एवं च्यवन ऋषि का आश्रम मानते हैं। १९६० के दशक में हुए खुदाई में यहाँ से बुद्ध की मूर्तियाँ एवं धम्म से जुड़ी कई चीजें मिली है जिससे चिरांद के बौद्ध धर्म से लगाव में कोई सन्देह नहीं।
हाजीपुर के सामने सोनपुर में प्रत्येक वर्ष लगने वाला पशु मेला विश्व प्रसिद्ध है। सोनपुर एक नगर पंचायत और पूर्व मध्य रेलवे का मंडल है। इसकी प्रसिद्धि लंबे रेलवे प्लेटफार्म के कारण भी है। भागवत पुराण में वर्णित इस हरिहर क्षेत्र में गज-ग्राह की लडाई हुई थी जिसमें भगवान विष्णु ने ग्राह (घरियाल) को मुक्ति देकर गज (हाथी) को जीवनदान दिया था। उस घटना की याद में प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को गंडक स्नान तथा एक पक्ष तक चलनेवाला मेला लगता है।
● द्वारिकाधीश मंदिर :- सारण जिला मुख्यालय छपरा से 8 किलोमीटर की दूरी पर छपरा-जलालपुर NH-331 के बगल में स्थित मंदिर अपने आप में कलाकारी का बेजोड़ नमूना है। गुजरात के कारीगरों ने मंदिर का निर्माण 14 वर्षों में किया है। पूरे मंदिर में एक भी लोहे का इस्तेमाल नहीं किया गया है। दरवाजे और चौखट भी लकड़ी के कील और गोंद से तैयार किया गया है। बिना ईंट-सीमेंट, सरिया और बालू के बने इस मंदिर में दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। पूरा मंदिर गुजरात में पाए जाने वाले विशेष किस्म के पत्थर धागगरा (लाल पत्थर) से बनाया गया है। इस मंदिर के आसपास 2-3 और मंदिर है तथा पीछे बगीचा और एक बड़ा सा खेल का मैदान है जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते है ।
11 मई 2005 को मंदिर का शिलान्यास किया गया था। इसके बाद 2019 में मंदिर का उद्घाटन हुआ। मंदिर का निर्माण नैनी गांव के ही ई. राजीव कुमार सिंह उर्फ संटू सिंह ने अपने निजी कोष के 8 करोड़ की लागत से करवाया है।
● डच मकबरा :- सारण जिला मुख्यालय छपरा से 5 किलोमीटर के दूरी पर छपरा- जलालपुर NH 331 पर करिंगा गाँव में डच मकबरा अवस्थित है. ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार, यह स्थान 1770 तक डच के नियंत्रण में था. यह स्थान यूरोपीय व्यापारियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा. उस अवधि के दौरान डच गवर्नर जैकवॉर्न का कब्रिस्तान यहाँ बनाया गया था जो आज भी खंडहर के रूप में मौजूद है.
करिंगा का इतिहास बहुत पुराना है और ऐतिहासिक अभिलेखों से पता चलता है कि 1770 ई. तक यह डच के कब्जे में रहा है। करिंगा के पास एक पुराना डच सिमेट्री था, जहां डच गर्वनर जैकवस वैन हर्न की याद में एक स्मारक बनाया गया था, जो उस समय की महता का प्रमाण है। 17 वीं सदी के अंत और 18 वीं सदी के प्रारंभ में यूरोपियन व्यापारी कंपनी के यह आकर्षण का केन्द्र भी रहा है।
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