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सरिय्या ज़ैद बिन हारिसा रज़ि० (हस्मी) या सरिय्या हस्मी (अंग्रेज़ी: Expedition of Zayd ibn Harithah (Hisma)
सरिय्या ज़ैद बिन हारिसा रज़ि० (हस्मी) | |||||||
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मुहम्मद की सैन्य उपलब्धियाँ का भाग | |||||||
Saudi Arabia relief location map (cropped).jpg उत्तर पश्चिमी अरब में इस्मा क्षेत्र (छायांकित लाल) का स्थान | |||||||
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सेनानायक | |||||||
ज़ैद बिन हारिसा | अल-हुनायद इब्न अरिद | ||||||
शक्ति/क्षमता | |||||||
500 | अनजान | ||||||
मृत्यु एवं हानि | |||||||
अनजान | बंदी बनाए गए 100 मुखिया सहित कई मारे गए |
प्रारंभिक इस्लाम में ज़ैद बिन हारिसा का सैन्य अभियान था जो इस्लामिक कैलेंडर के 7 हिजरी के 6 वें महीने, अक्टूबर, 628 में हुआ था। इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद के द्वारा अपने दत्तक पुत्र और आज़ाद किये गये ग़ुलाम ज़ैद बिन हारिसा के नेतृत्व में 500 सहाबा के साथ किया गया यह अभियान लुटेरों द्वारा हमला किए जाने के बाद देहया ख़लीफ़ा कल्बी रज़ि० की मदद की पुकार का जवाब था। मुसलमानों ने जवाबी कार्रवाई की और कई लुटेरों को मार डाला और 100 जनजाति के सदस्यों को पकड़ लिया।
इस्लाम के विद्वान सफिउर्रहमान मुबारकपुरी लिखते हैं कि मुहम्मद ने कैसर रूम के बादशाह हिरक़्ल के नाम पत्र लिखा था, उससे खुश हो कर ले जाने वाले देहया ख़लीफ़ा कल्बी रज़ि० को माल और दौलत से नवाज़ा, लेकिन हज़रत देहया रज़ि० ये तोहफे लेकर वापस हुए तो हिस्मा में कबीला जुज़ाम के कुछ लोगों ने उन पर डाका डाल कर सब कुछ लूट लिया। हज़रत देहया रज़ि० मदीना पहुंचे तो अपने घर के बजाए सीधे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और सारा माजरा कह सुनाया। बातें सुन कर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ि० के नेतृत्त्व में पांच सौ सहाबा किराम की एक जमाअत हिस्मा रवाना फ़रमाई हज़रत ज़ैद रज़ि० ने क़बीला जुज़ाम पर रात को छापा मारकर उनकी ख़ासी तायादाद को कत्ल कर दिया और उनके चौपाया और औरतों को हांक लाए। चौपायों में एक हज़ार ऊंट और पांच हज़ार बकरियां थीं और कैदियों में एक सौ औरतें और बच्चे थे।
चूंकि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और क़बीला जुजाम में पहले से समझौता चला आ रहा था, इसलिए इस क़बीले के एक सरदार ज़ैद बिन रिफाआ जुज़ामी रज़ि० ने झट नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में विरोध प्रकट किया और फरियाद की। जैद बिन रिफाआ रज़ि० इस क़बीले के कुछ और लोगों के साथ पहले ही मुसलमान हो चुके थे और जब हज़रत देहया रज़ि० पर डाका पड़ा था तो उनकी मदद भी की थी, इसलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनका विरोध स्वीकार करते हुए गनीमत के माल और कैदी वापस कर दिए।
आम तौर से युद्ध का वर्णन करने वाले लेखकों ने इस घटना को सुलह हुदैबिया से पहले बताया है, मगर यह भारी गलती है, क्योंकि कैसर के पास पत्र हुदैबिया के समझौते के बाद रवाना किया गया था, इसलिए अल्लामा इब्ने कृय्यिम ने लिखा है कि यह घटना निःसन्देह हुदैबिया के बाद की है। [देखिए जादुल-मआद 2 / 122, हाशिया तलकीहुल- फहूम 29][2] [3]
पैग़म्बर मुहम्मद ने उन दिनों कई बादशाहों को खत लिखे थे।
1. नज्जाशी शाहे हबश के नाम पत्र
2. मुकौकिस शाहे मिस्र के नाम पत्र
3. शाहे फारस खुसरु परवेज़ के नाम पत्र
4. कैसर शाहे रुम के नाम पत्र
5. मुजिर बिन सावी के नाम पत्र
6. हौजा बिन अली साहिबे यमामा के नाम पत्र
7. हारिस बिन अबी शिन गुस्सानी हाकिमे दमिश्क के नाम पत्र
8. शाहे उमान के नाम पत्र
अरबी शब्द ग़ज़वा [4] इस्लाम के पैग़ंबर के उन अभियानों को कहते हैं जिन मुहिम या लड़ाईयों में उन्होंने शरीक होकर नेतृत्व किया, इसका बहुवचन है गज़वात, जिन मुहिम में किसी सहाबा को ज़िम्मेदार बनाकर भेजा और स्वयं नेतृत्व करते रहे उन अभियानों को सरियाह(सरिय्या) या सिरया कहते हैं, इसका बहुवचन सराया है।[5] [6]
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