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सरदार हरि सिंह नलवा
सिख सरदार और खालसा फौज के सेनापति / From Wikipedia, the free encyclopedia
सरदार हरि सिंह नलवा (ਹਰੀ ਸਿੱਘ ਨਲੂਆ ; 26 अप्रैल 1791 - 1837), महाराजा रणजीत सिंह के सेनाध्यक्ष थे जिन्होने पठानों के विरुद्ध किये गये कई युद्धों का नेतृत्व किया। रणनीति और रणकौशल की दृष्टि से हरि सिंह नलवा की तुलना भारत के श्रेष्ठ सेनानायकों से की जा सकती है। उन्होने कसूर, सियालकोट, अटक, मुल्तान, कश्मीर, पेशावर और जमरूद की जीत के पीछे हरि सिंह का नायकत्व था। उन्होने सिख साम्राज्य की सीमा को सिन्धु नदी के परे ले जाकर खैबर दर्रे के मुहाने तक पहुँचा दिया। हरि सिंह की मृत्यु के समय सिख जाट साम्राज्य की पश्चिमी सीमा जमरुद तक पहुंच चुकी थी।
सरदार हरि सिंह नलवा ਹਰੀ ਸਿੱਘ ਨਲੂਆ | |
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![]() सरदार हरि सिंह नलवा का ब्रिटिश संग्रहालय में स्थित चित्र | |
नाम | हरि सिंह नलवा |
उपनाम | बाघ मार |
जन्म |
१७९१ गुजरांवाला, सिख जाट साम्राज्यਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
देहांत |
१८३७ जमरूद, सिख जाट साम्राज्यਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
निष्ठा | साम्राज्य]]. |
सेवा/शाखा | सिख जाट खालसा सेना |
सेवा वर्ष | 1804–1837 |
उपाधि |
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नेतृत्व | |
युद्ध/झड़पें |
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सम्मान | इजाज़ी-ए-सरदारी |
सम्बंध |
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हरि सिंह नलवा ने कश्मीर पर विजय प्राप्त कर अपना लोहा मनवाया। यही नहीं, काबुल पर भी सेना चढ़ाकर जीत दर्ज की। खैबर दर्रे से होने वाले अफगान आक्रमणों से देश को मुक्त किया। इतिहास में पहली बार हुआ था कि पेशावरी पश्तून, पंजाबियों द्वारा शासित थे।
हरि सिंह नलवा कश्मीर, पेशावर और हजारा के प्रशासक (गवर्नर) थे। सिख साम्राज्य की तरफ से उन्होने एक मुद्रालय (mint) स्थापित किया था ताकि कश्मीर और पेशावर में राजस्व इकट्ठा किया जा सके।
महाराजा रणजीत सिंह के निर्देश के अनुसार हरि सिंह नलवा ने सिख जाट साम्राज्य की भौगोलिक सीमाओं को पंजाब से लेकर काबुल बादशाहत के बीचोंबीच तक विस्तार किया था। महाराजा रणजीत सिंह के जाट
शासन के दौरान 1807 ई. से लेकर 1837 ई. तक हरि सिंह नलवा लगातार अफगानों के खिलाफ लड़े। अफगानों के खिलाफ जटिल लड़ाई जीतकर नलवा ने कसूर, मुल्तान, कश्मीर और पेशावर में सिख शासन की व्यवस्था की थी।
सर हेनरी ग्रिफिन ने हरि सिंह को "खालसाजी का चैंपियन" कहा है। ब्रिटिश शासकों ने हरि सिंह नलवा की तुलना नेपोलियन से भी की है। इन्हे "शेर ए पंजाब" भी कहा जाता है।