Loading AI tools
मेवाड़ के सिसोदिया वंश के शासक (1423 - 1468) विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
महाराणा कुम्भा या महाराणा कुम्भकर्ण (मृत्यु 1468 ई.) सन 1433 से 1468 तक मेवाड़ के राजा थे। भारत के राजाओं में उनका बहुत ऊँचा स्थान है। उनसे पूर्व राजपूत केवल अपनी स्वतंत्रता की जहाँ-तहाँ रक्षा कर सके थे। कुंभकर्ण ने मुसलमानों को अपने-अपने स्थानों पर हराकर राजपूती राजनीति को एक दोहरा रूप दिया। इतिहास में ये 'राणा कुंभा' के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। महाराणा कुुुम्भा को चित्तौड़ दुर्ग का आधुुुनिक निर्माता भी कहते हैं क्योंकि इन्होंने चित्तौड़ दुर्ग के अधिकांश वर्तमान भाग का निर्माण कराया।
कुंभा | |
---|---|
राणा | |
शासनावधि | 1433 - 1468 |
राज्याभिषेक | 1433 |
पूर्ववर्ती | [मोकल]] |
उत्तरवर्ती | ऊदा सिंह (उदयसिंह प्रथम) |
जन्म | 1423 |
संतान | ऊदा सिंह, राणा रायमल, रमाबाई (वागीश्वरी) |
राजवंश | सिसोदिया राजवंश |
पिता | राणा मोकल, मेवाड़ |
माता | सौभाग्यवती परमार |
मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के शासक (1326–1948 ईस्वी) | ||
---|---|---|
राणा हम्मीर सिंह | (1326–1364) | |
राणा क्षेत्र सिंह | (1364–1382) | |
राणा लखा | (1382–1421) | |
राणा मोकल | (1421–1433) | |
राणा कुम्भ | (1433–1468) | |
उदयसिंह प्रथम | (1468–1473) | |
राणा रायमल | (1473–1508) | |
राणा सांगा | (1508–1527) | |
रतन सिंह द्वितीय | (1528–1531) | |
राणा विक्रमादित्य सिंह | (1531–1536) | |
बनवीर सिंह | (1536–1540) | |
उदयसिंह द्वितीय | (1540–1572) | |
महाराणा प्रताप | (1572–1597) | |
अमर सिंह प्रथम | (1597–1620) | |
करण सिंह द्वितीय | (1620–1628) | |
जगत सिंह प्रथम | (1628–1652) | |
राज सिंह प्रथम | (1652–1680) | |
जय सिंह | (1680–1698) | |
अमर सिंह द्वितीय | (1698–1710) | |
संग्राम सिंह द्वितीय | (1710–1734) | |
जगत सिंह द्वितीय | (1734–1751) | |
प्रताप सिंह द्वितीय | (1751–1754) | |
राज सिंह द्वितीय | (1754–1762) | |
अरी सिंह द्वितीय | (1762–1772) | |
हम्मीर सिंह द्वितीय | (1772–1778) | |
भीम सिंह | (1778–1828) | |
जवान सिंह | (1828–1838) | |
सरदार सिंह | (1838–1842) | |
स्वरूप सिंह | (1842–1861) | |
शम्भू सिंह | (1861–1874) | |
उदयपुर के सज्जन सिंह | (1874–1884) | |
फतेह सिंह | (1884–1930) | |
भूपाल सिंह | (1930–1948) | |
नाममात्र के शासक (महाराणा) | ||
भूपाल सिंह | (1948–1955) | |
भागवत सिंह | (1955–1984) | |
महेन्द्र सिंह | (1984–वर्तमान) | |
महाराणा कुंभा राजस्थान के शासकों में सर्वश्रेष्ठ थे। मेवाड़ के आसपास जो उद्धत राज्य थे, उन पर उन्होंने अपना आधिपत्य स्थापित किया। 35 वर्ष की अल्पायु में उनके द्वारा बनवाए गए बत्तीस दुर्गों में चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़ जहां सशक्त स्थापत्य में शीर्षस्थ हैं, वहीं इन पर्वत-दुर्गों में चमत्कृत करने वाले देवालय भी हैं। उनकी विजयों का गुणगान करता विश्वविख्यात विजय स्तंभ भारत की अमूल्य धरोहर है। कुंभा का इतिहास केवल युद्धों में विजय तक सीमित नहीं थी बल्कि उनकी शक्ति और संगठन क्षमता के साथ-साथ उनकी रचनात्मकता भी आश्चर्यजनक थी। ‘संगीत राज’ उनकी महान रचना है जिसे साहित्य का कीर्ति स्तंभ माना जाता है।
महाराणा कुम्भा कि उपाधियाँ :- अभिनवभृताचार्य, राणेराय, रावराय, हालगुरू, शैलगुरु, दानगुरु, छापगुरु, नरपति, परपति, गजपति, अश्वपति, हिन्दू सुरतान, नन्दीकेशवर, परम भागवत, आदि वराह। [उद्धरण चाहिए]
महाराणा कुम्भकर्ण, महाराणा मोकल के पुत्र थे और उनकी हत्या के बाद गद्दी पर बैठे। उन्होंने अपने पिता के मामा रणमल राठौड़ की सहायता से शीघ्र ही अपने पिता के हत्यारों से बदला लिया। इनके तीन संताने थी जिसमें दो पुत्र उदा सिंह , राणा रायमल तथा राणा एक पुुत्री रमाबाई (वागीश्वरी) थे |[उद्धरण चाहिए] 1437 ई. में मालवा के सुलतान महमूद खिलजी को भी उन्होंने उसी साल सारंगपुर के पास बुरी तरह से हराया और इस विजय के स्मारक स्वरूप चित्तौड़ का विख्यात विजय स्तम्भ बनवाया। राठौडों के बढ़ते प्रभाव और हस्तक्षेप से आशंकित होकर चुण्डा को वापस बुलवाया गया, जिसने रणमल को मरवा दिया और फिर कुछ समय के लिए मंडोर का राज्य भी मेवाड़ के अधिकार में आ गया। राज्यारूढ़ होने के सात वर्षों के भीतर ही उन्होंने सारंगपुर, नागौर, नराणा, अजमेर, मंडोर, मांडलगढ़, बूंदी, खाटू, चाटूस आदि के सुदृढ़ किलों को जीत लिया और दिल्ली के सुलतान सैयद मुहम्मद शाह और गुजरात के सुलतान अहमदशाह को भी परास्त किया। उनके शत्रुओं ने अपनी पराजयों का बदला लेने का बार-बार प्रयत्न किया, किंतु उन्हें सफलता न मिली। मालवा के सुलतान ने पांच बार मेवाड़ पर आक्रमण किया। नागौर के स्वामी शम्स खाँ ने गुजरात की सहायता से स्वतंत्र होने का विफल प्रयत्न किया। यही दशा आबू के देवड़ों की भी हुई। मालवा और गुजरात के सुलतानों ने मिलकर महाराणा पर आक्रमण किया किंतु मुसलमानी सेनाएँ फिर परास्त हुई। महाराणा ने अन्य अनेक विजय भी प्राप्त किए। उसने डीडवाना(नागौर) की नमक की खान से कर लिया और खंडेला, आमेर, रणथंभोर, डूँगरपुर, सीहारे आदि स्थानों को जीता। इस प्रकार राजस्थान का अधिकांश और गुजरात, मालवा और दिल्ली के कुछ भाग जीतकर उसने मेवाड़ को महाराज्य बना दिया।
किंतु महाराणा कुंभकर्ण की महत्ता विजय से अधिक उनके सांस्कृतिक कार्यों के कारण है। उन्होंने अनेक दुर्ग, मंदिर और तालाब बनवाए तथा चित्तौड़ को अनेक प्रकार से सुसंस्कृत किया। कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला उनकी कृति है। बंसतपुर को उन्होंने पुनः बसाया और श्री एकलिंग के मंदिर का जीर्णोंद्वार किया। चित्तौड़ का कीर्तिस्तम्भ तो संसार की अद्वितीय कृतियों में एक है। इसके एक-एक पत्थर पर उनके शिल्पानुराग, वैदुष्य और व्यक्तित्व की छाप है। अपनी पुत्री रमाबाई ( वागीश्वरी ) के विवाह स्थल के लिए चित्तौड़ दुर्ग मेंं श्रृंगार चंवरी का निर्माण कराया तथा चित्तौड़ दुर्ग में ही विष्णु को समर्पित कुम्भश्याम जी मन्दिर का निर्माण कराया।
मेवाड़ के राणा कुुुम्भा का स्थापत्य युग स्वर्णकाल के नाम से जाना जाता है, क्योंकि कुुुम्भा ने अपने शासनकाल में अनेक दुर्गों, मन्दिरों एंव विशाल राजप्रसादों का निर्माण कराया, कुम्भा ने अपनी विजयों के लिए भी अनेक ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण कराया, वीर-विनोद के लेखक श्यामलदस के अनुसार कुुुम्भा ने कुल 32 दुर्गों का निर्माण कराया था जिसमें कुभलगढ़, अलचगढ़, मचान दुर्ग, भौसठ दुर्ग, बसन्तगढ़ आदि मुख्य माने जाते हैं तथा कुुुम्भा के काल में धरणशाह नामक व्यापारी ने देपाक नामक शिल्पी के निर्देशन मे रणकपुर के जैन मदिंरो का निर्माण करवाया था।
राणा कुम्भा बड़े विद्यानुरागी थे। संगीत के अनेक ग्रंथों की उन्होंने रचना की और चंडीशतक एवं गीतगोविन्द आदि ग्रंथों की व्याख्या की। वे नाट्यशास्त्र के ज्ञाता और वीणावादन में भी कुशल थे। कीर्तिस्तम्भों की रचना पर उन्होंने स्वयं एक ग्रंथ लिखा और मंडन आदि सूत्रधारों से शिल्पशास्त्र के ग्रंथ लिखवाए। इस महान राणा की मृत्यु अपने ही पुत्र उदयसिंह के हाथों हुई।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.