शिल्पशास्त्र वे प्राचीन हिन्दू ग्रन्थ हैं जिनमें विविध प्रकार की कलाओं तथा हस्तशिल्पों की डिजाइन और सिद्धान्त का विवेचन किया गया है।
इस प्रकार की चौसठ कलाओं का उल्लेख मिलता है जिन्हे 'बाह्य-कला' कहते हैं। इनमें काष्ठकारी, स्थापत्य कला, आभूषण कला, नाट्यकला, संगीत, वैद्यक, नृत्य, काव्यशास्त्र आदि हैं। इनके अलावा चौसठ अभ्यन्तर कलाओं का भी उल्लेख मिलता है जो मुख्यतः 'काम' से सम्बन्धित हैं, जैसे चुम्बन, आलिंगन आदि।
यद्यपि सभी विषय आपस में सम्बन्धित हैं किन्तु शिल्पशास्त्र में मुख्यतः मूर्तिकला और वास्तुशास्त्र में भवन, दुर्ग, मन्दिर, आवास आदि के निर्माण का वर्णन है।
३५० से भी अधिक ग्रन्थों में स्थापत्य की चर्चा मिलती है। इनमें से प्रमुख ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-[1][2]
- अपराजितपृच्छा (रचयिता : भुवनदेवाचार्य ; विश्वकर्मा और उनके पुत्र अपराजित के बीच वार्तालाप)
- ईशान-गुरुदेवपद्धति
- कामिकागम
- कर्णागम (इसमें वास्तु पर लगभग ४० अध्याय हैं। इसमें तालमान का बहुत ही वैज्ञानिक एवं पारिभाषिक विवेचन है।)
- मनुष्यालयचन्द्रिका (कुल ७ अध्याय, २१० से अधिक श्लोक)
- प्रासादमण्डन (कुल ८ अध्याय)
- राजवल्लभ (कुल १४ अध्याय)
- तंत्रसमुच्चय
- वास्तुसौख्यम् (कुल ९ अध्याय)
- विश्वकर्मा प्रकाश (कुल १३ अध्याय, लगभग १३७४ श्लोक)
- विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र (कुल ८४ अध्याय)
- सनत्कुमारवास्तुशास्त्र
- वास्तुमण्डन
- मयशास्त्र (भित्ति सजाना)
- बिम्बमान (चित्रकला)
- शुक्रनीति (प्रतिमा, मूर्ति या विग्रह निर्माण)
- सुप्रभेदागम
- विष्णुधर्मोत्तर पुराण
- आगम (इनमें भी शिल्प की चर्चा है।)
- अग्निपुराण
- ब्रह्मपुराण (मुख्यतः वास्तुशास्त्र, कुछ अध्याय कला पर भी)
- वास्तुविद्या
- प्रतिमालक्षणविधानम्
- गार्गेयम्
- मानसार शिल्पशास्त्र (कुल ७० अध्याय; ५१०० से अधिक श्लोक; कास्टिंग, मोल्डिंग, कार्विंग, पॉलिशिंग, तथा कला एवं हस्तशिल्प निर्माण के अनेकों अध्याय)
- अत्रियम्
- प्रतिमा मान लक्षणम् (इसमें टूटी हुई मूर्तियों को सुधारने आदि पर अध्याय है।)
- दशतल न्याग्रोध परिमण्डल
- शम्भुद्भाषित प्रतिमालक्षण विवरणम्
- मयमतम् (मयासुर द्वारा रचित, कुल ३६ अध्याय, ३३०० से अधिक श्लोक)
- बृहत्संहिता (अध्याय ५३-६०, ७७, ७९, ८६)
- शिल्परत्नम् (इसके पूर्वभाग में 46 अध्याय कला तथा भवन/नगर-निर्माण पर हैं। उत्तरभाग में ३५ अध्याय मूर्तिकला आदि पर हैं।)
- युक्तिकल्पतरु (आभूषण-कला सहित विविध कलाएँ)
- शिल्पकलादर्शनम्
- समरांगणसूत्रधार (रचयिता : राजा भोज ; कुल ८४ अध्याय, ८००० से अधिक श्लोक)
- वास्तुकर्मप्रकाशम्
- मत्स्यपुराणम्
- गरुणपुराण
- कश्यपशिल्प (कुल ८४ अध्याय तथा ३३०० से अधिक श्लोक)
- भविष्यपुराण (मुख्यतः वास्तुशिल्प, कुछ अध्याय कला पर भी)
- अलंकारशास्त्र
- अर्थशास्त्र (खिडकी एवं दरवाजा आदि सामान्य शिल्प, इसके अलावा सार्वजनिक उपयोग की सुविधाएँ)
- चित्रकल्प (आभूषण)
- चित्रकर्मशास्त्र
- मयशिल्पशास्त्र(तमिल में)
- विश्वकर्मा शिल्प (स्तम्भों पर कलाकारी, काष्ठकला)
- अगत्स्य (काष्ठ आधारित कलाएँ एवं शिल्प)
- मण्डन शिल्पशास्त्र (दीपक आदि)
- रत्नशास्त्र (मोती, आभूषण आदि)
- रत्नपरीक्षा (आभूषण)
- रत्नसंग्रह (आभूषण)
- लघुरत्नपरीक्षा (आभूषण आदि)
- मणिमहात्म्य (lapidary)
- अगस्तिमत (lapidary crafts)
- अनंगरंग (काम कलाएँ)
- कामसूत्र
- रतिरहस्य (कामकलाएँ)
- कन्दर्पचूणामणि (कामकलाएँ)
- नाट्यशास्त्र (फैशन तथा नाट्यकलाएँ)
- नृतरत्नावली (फैशन तथा नाट्यकलाएँ)
- संगीतरत्नाकर ((फैशन, नृत्य तथा नाट्यकलाएँ)
- नलपाक (भोजन, पात्र कलाएँ)
- पाकदर्पण (भोजन, पात्र कलाएँ)
- पाकविज्ञान (भोजन, पात्र कलाएँ)
- पाकार्णव (भोजन, पात्र कलाएँ)
- कुट्टनीमतम् (वस्त्र कलाएँ)
- कादम्बरी (वस्त्र कला तथा शिल्प पर अध्याय हैं)
- समयमात्रिका (वस्त्रकलाएँ)
- यन्त्रकोश (संगीत के यंत्र Overview in Bengali Language)
- चिलपटिकारम् (शिल्पाधिकारम्); दूसरी शताब्दी में रचित तमिल ग्रन्थ जिसमें संगीत यंत्रों पर अध्याय हैं)
- मानसोल्लास (संगीत यन्त्रों से सम्बन्धित कला एवं शिल्प, पाकशास्त्र, वस्त्र, सज्जा आदि)
- वास्तुविद्या (मूर्तिकला, चित्रकला, तथा शिल्प)
- उपवन विनोद (उद्यान, उपवन भवन निर्माण, घर में लगाये जाने वाले पादप आदि से सम्बन्धित शिल्प)
- वास्तुसूत्र (संस्कृत में शिल्पशास्त्र का सबसे प्राचीन ग्रन्थ; ६ अध्याय; छबि रचाना; इसमें बताया गया है कि छबि कलाएँ किस प्रकार हाव-भाव एवं आध्यात्मिक स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के साधन हैं।)
अन्य भारतीय भाषाओं के शिल्पशास्त्रीय ग्रन्थ
- शिल्प प्रकाश - रामचन्द्र भट्टारक (ओड़िया में , इसमें विस्तृत चित्र तथा शब्दावली भी दी गयी है।)
विश्वकर्मा प्रकाश के अध्यायों के नाम हैं-
- भूमिलक्षण, गृह्यादिलक्षण, मुहुर्त, गृहविचार, पदविन्यास, प्रासादलक्षण, द्वारलक्षण, जलाशयविचार, वृक्ष, गृहप्रवेश, दुर्ग, शाल्योद्धार, गृहवेध।
मयमतम् के ३६ अध्यायों के नाम इस प्रकर हैं-
- संग्रहाध्याय, वास्तुप्रकार, भूपरीक्षा, भूपरिग्रह, मनोपकरण, दिक्-परिच्छेद, पाद-देवता-विन्यास, बालिकर्मविधान, ग्रामविन्यास, नगरविधान, भू-लम्ब-विधान, गर्भन्यासविधान, उपपित-विधान, अधिष्ठान विधान, पाद-प्रमान-द्रव्य-संग्रह, प्रस्तर प्रकरण, संधिकर्मविधान, शिखर-करण-विधान समाप्ति-विधान, एक-भूमि-विधान, द्वि-भूमि-विधान, त्रि-भूमि-विधान, बहु-भूमि-विधान, प्रकर-परिवार, गोपुर-विधान, मण्डप-विधान, शाला-विधान, गृहप्रवेश, राज-वेस्म-विधान, द्वार-विधान, यानाधिकार, यान-शयनाधिकार, लिंगलक्षण, पीठलक्षण, अनुकर्म-विधान, प्रतिमालक्षण।
नारद शिल्पशास्त्र के अध्यायों के नाम-
ग्रन्थारम्भः
1. कल्पादौ वर्षधारा
2. जनकृतदेवस्तुतिः
3. नारदागमनम्
4. वास्तुपुरुषस्वरूपम्
5. भवनयोग्यभूमिस्वरूपम्
6. ग्रामसीमालक्षणम्
7. ग्रामस्थलसमीकरणम्
8. मार्गलक्षणम्
9. जलाशयतटाकलक्षणम्
10. प्रणालीसेतुनिर्माणम्
11. आयादिप्रमाणलक्षणम्
12. दशविधग्रामलक्षणम्
13. ग्रामः
14. महाग्रामः
15. ब्रह्मपथग्रामः
16. शाङ्करग्रामः
17. वासवग्रामः
18. संकीर्णग्रामः
19. मुखभद्रग्रामः
20. मङ्गलग्रामः
21. शुभग्रामः
22. नगरनिर्माणम्
23. प्रस्तरनगरम्
24. निगमनगरम्
25. पट्टणम्
26. सर्वतोभद्रनगरम्
27. कार्मुकनगरम्
28. स्वस्तिकनगरम्
29. चतुर्मुखनगरम्
30. अष्टमुखनगरम्
31. वैजयन्तपुरम्
32. भूपालनगरम्
33. देवेशनगरम
34. पुरन्दरनगरम्
35. श्रीनगरम्
36. पंचविधदुर्गाणि
37. गिरिदुर्गम्
38. जलदुर्गम्
39. वाहिनीदुर्गम्
40. युद्धदुर्गम्
41. संकीर्णनगरम्
42. ग्रामनगरवीथीप्रमाणम्
43. ग्रामगृहम
44. नगरसदनप्रमाणम्
45. क्षत्रियप्रासादः
46. राजभवनद्वारम्
47. महिषीभवनद्वारशाला
48. विवाहशाला
49. भूमिलंबः
50. भित्तिः
51. अधिष्ठानम्
52. उपपीठम्
53. स्तंभलक्षणम्
54. भौमभित्तिः
55. सन्धिकर्म ,
56. तिर्यकदारुकम्
57. चन्द्रशाला
58. शिखरकलशम्
59. भौमान्तर्गेहम्
60. शयनशाला
61. भोजनशाला
62. नानागेहानि
63. चत्वरम्
64. नीतिशाला
65. नाटकशाला
66. चित्रशाला
67. वातायनलक्षणम्
68. डोलालक्षणम
69. पर्यकशिबिकालक्षणम्
70. सिंहासनम्
71. चित्रालंकृतिः
72. देवालयबलिकर्म
73. दैवगर्भविन्यासः
74. गर्भगृहम्
75. गोपुरकल्पनम्
76. प्राकारकल्पनम्
77. मण्टपलक्षणम्
78. बलिपीठम्
79. ध्वजस्तंभः
80. देवबिम्बनिर्माणम्
81. बिम्बपीठम
82. गृहप्रवेश:
83. नानायाननिर्माणम्