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महमूद ग़ज़नवी
तुर्क वंश / From Wikipedia, the free encyclopedia
महमूद ग़ज़नवी (फ़ारसी: محمود غزنوی) मध्य अफ़ग़ानिस्तान में केन्द्रित गज़नवी राजवंश के एक महत्वपूर्ण शासक था जो पूर्वी ईरान भूमि में साम्राज्य विस्तार के लिए जाना जाता हैं।[1][2] गजनवी तुर्क मूल का था और अपने समकालीन (और बाद के) सल्जूक़ तुर्कों की तरह पूर्व में एक सुन्नी इस्लामी साम्राज्य बनाने में सफल हुआ। इसके द्वारा जीते गए प्रदेशों में आज का पूर्वी ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और संलग्न मध्य-एशिया (सम्मिलित रूप से ख़ोरासान), पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत शामिल थे। इसके युद्धों में फ़ातिमी ख़िलाफ़त (शिया), काबुल शाही (हिन्दू) और कश्मीर का नाम प्रमुखता से आता है। भारत में इस्लामी शासन लाने और अपने लूट के कारण भारतीय हिन्दू समाज में गजनवी को एक आक्रामक शासक के रूप में जाना जाता है। उसने भारत मे काफी लूटपाट एवं कत्लेआम किये और महिलाओं के साथ काफी बर्बरतापूर्ण व्यवहार किये जो भारतीयों द्वारा अक्षम्य है और भारतीय इतिहास में उसे हमेशा बहुत ही हीनदृष्टि से देखा जायेगा ।
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सुल्तान महमूद ग़ज़नवी | |
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सुरत्राण गर्जनेश गर्जनकाधिराज | |
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शासनावधि | 998-1030 |
राज्याभिषेक | 1002 |
पूर्ववर्ती | सबुक तिगिन |
उत्तरवर्ती | मोहम्मद ग़ज़नवी |
जन्म | 2 नवम्बर 971 (लगभग) ग़ज़नी, अफ़ग़ानिस्तानਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
निधन | 30 अप्रैल 1030 (उम्र 59 वर्ष में) ग़ज़नी, अफगानिस्तानਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
समाधि | ग़ज़नी ਬਿਜਲੀ ਰਾਜਭਰ |
पिता | [[सबुक तिगिन]] |
धर्म | सुन्नी इस्लाम |
वह पिता के वंश से तुर्क था पर उसनेफ़ारसी भाषा के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हाँलांकि गजनवी के दरबारी कवि फ़िरदौसी ने शाहनामा की रचना की पर वह हमेशा फ़िरदौसी का समर्थन नहीं करता था। ग़ज़नी, जो मध्य अफ़ग़ानिस्तान में स्थित एक छोटा-सा शहर था, इसकी बदौलत साहित्य और संस्कृति के एक महत्वपूर्ण केंद्र में बदल गया। बग़दाद के अब्बासी ख़लीफ़ा ने महमूद को फ़ातिमी ख़िलाफ़त के विरुद्ध जंग करने के इनाम में ख़िल'अत और सुल्तान की पदवी दी। सुल्तान की उपाधि इस्तेमाल करने वाला गजनवी पहला शासक था।
महमूद गजनवी को भारतीय सूत्रों में गर्जनेश और गर्जनकाधिराज कहा गया है।